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जैन आगम में पर्यावरण और आचार
डॉ. रजनीश शुक्ल
आधुनिक युग में पर्यावरण पर विशेष महत्व दिया जा रहा है। इससे संबंधित सभी तरह का चिन्तन एवं इसे बचाने पर पर्याप्त प्रयत्न भी किया जा रहा है। इसके बचाने के लिए विज्ञान जगत के विचारकों से लेकर सभी तरह के विचारक प्रयत्नशील हैं, सभी का एक ही लक्ष्य है कि प्रकृति के मौलिक स्वरूप को सुरक्षित रखा जाए। प्रकृति पर विजय प्राप्त करने वाले विचारशील व्यक्तियों को यह बोध कराया जा रहा है कि पर्यावरण का प्रकृति के समस्त प्राणियों के साथ अटूट बंधन है। हमारी संस्कृति का इतिहास इस बात का साक्षी है कि सृष्टि में घातक तत्व आने पर मानसिक, नैतिक, शारीरिक सभी तरह का पतन आता है, उससे सभ्यता पर भी प्रभाव पड़ता है। मनुष्य भी उसके दुष्प्रभाव से नहीं बच सकता। अतः हमारी संस्कृति के प्रमुख आगमों ने जो कुछ भी हमें दिया, वह हजारों वर्ष से भी विषाक्त कर देने वाली राक्षसी वृत्तियों से छुटकारा प्राप्त कराने में समर्थ हैं।
जैन आगम साहित्य में जिन तथ्यों का विश्लेषण किया गया है, उन्हें आधुनिक वैज्ञानिक जगत में समीचीन माना जा रहा है। जैन आगमों में ज्ञान ही ज्ञान नहीं, विज्ञान भी है। युवा पीढ़ी के लिए दिशा-निर्देश तथा पर्यावरण के विनाशक व्यक्तियों के लिए वैज्ञानिक तथा समाधानयुक्त विचार भी हैं। उनके मूल में ऐसा विज्ञान है जो सदैव नवीन ही बना रहेगा, जिसे जीवन पद्धति का सबसे सुन्दर सूत्र कहा जा सकता है। मनुष्य स्वयं इसके मूल से जो शिक्षा लेगा वह सभी प्राणियों, जीवों, तत्वों तथा भूतों के संरक्षण में प्रयासरत होगा। इनके चिन्तन से नित्य नई उलझनें एवं समस्याएं भी समाप्त होगी, इसके अन्तःचेतना में धर्म के प्रति अपूर्व श्रद्धा है। इसके गर्भ में वैज्ञानिक सुख-सुविधाएं भी हैं जिन्हें देखना, उन पर विचार करना और उन्हीं के मार्ग पर चलकर आचार-विचार को सुरक्षित रखना मूल उद्देश्य होता है। अतः हमारे प्राणभूत तथा विश्व पर्यावरण के संरक्षक आगमों का यह चिन्तन यदि सुई के अग्रभाग भी काम आ सका तो हमारी संस्कृति के लिए बहुत कुछ प्राप्त हो सकेगा। पर्यावरण सामान्य रूप से पर्यावरण का अर्थ है जीवन और जीव समूह को समेटे रखना, भौतिक वस्तुओं व परिस्थितियों का निर्धारित करना। पर्यावरण वह आवरण है जिसमें सभी ओर से सुरक्षा प्रदान की जाती है। पर्यावरण शब्द आधुनिक युग
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