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स्थानीय पुरातत्व संग्रहालय महोन्द्रा, जिला पन्ना (मध्य प्रदेश) की जैन मूर्तियां
337 में संग्रहीत हैं। परिकर खण्ड में त्रिछत्र, गजाभिषेक, प्रभामण्डल, बांयीं ओर दो लघु जिन व उनके नीचे पुष्प लिये पुरूष आकृतियां निरूपित हैं। एक पादपीठ (४१ x ३० सेमी, पं. क्र. १४८) पर यक्ष एवं यक्षी आकृतियों का क्षरण हो चुका है। दूसरे पादपीठ खण्ड (५५ X ६८ x १६ सेमी, पं. क्र. १८३ ) पर पद्मासनस्थ जिन आकृति उत्कीर्ण है। दोनों पादपीठ खण्ड परम्परागत सिंह आकृतियों से युक्त हैं। एक जिन प्रतिमा (४८ x २६ x १५ सेमी, पं. क्र. ५०) का मध्य भाग भी इस संग्रहालय में संरक्षित है। इसमें कायोत्सर्ग मुद्रा में जिन वक्षस्थल पर श्रीवत्स के साथ प्रदर्शित हैं (चित्र ५०.२) । ९. शान्तिनाथ एवं कुन्थुनाथ की द्वितीर्थी प्रतिमा
एक शिलाखण्ड पर कायोत्सर्ग मुद्रा में जिन शान्ति एवं कुन्थुनाथ की द्वितीर्थी प्रतिमा (५२ x ४६ x १४ सेमी, पं. क्र. ७६) का अंकन मिलता है। दांयीं और शान्तिनाथ हैं और उनका सिर भग्न हो चुका है। पादपीठ पर लांछन मृग अंकित है। बांयी ओर तीर्थंकर कुन्थुनाथ हैं। दोनों ओर चंवरधर आकृतियां सुशोभित हैं। ये प्रतिमा चार खण्डों में है । १०. सर्वतोभदिका
इस संग्रहालय में दो सर्वतोभद्रिका प्रतिमाएं सुरक्षित हैं। एक सर्वतोभद्रिका प्रतिमा (८२४३८x२६ सेमी, पं. क्र. १७) के चारों ओर पद्मासन मुद्रा में पार्श्वनाथ, नेमिनाथ और दो ओर तीर्थंकर आकृतियां भग्न हो चुकी हैं। पार्श्वनाथ के सिर पर तीन सर्पफण का छत्र है और पादपीठ पर यक्ष-यक्षी धरण व पद्मावती का अंकन है। नेमिनाथ का लांछन शंख अंकित है और पादपीठ पर यक्षी अंबिका निरूपित हैं । अन्य दोनों तीर्थंकर आकृतियां बुरी तरह खंडित हो चुकी हैं, अतः उनकी निश्चित पहचान संभव नहीं है (चित्र ५०.३) ।
दूसरी सर्वतोभद्रिका (२४४ x ५८ x ५८ सेमी, पं. क्र. १७६) एक विशाल स्तम्भ के शीर्ष भाग पर निर्मित है। इस पर उत्कीर्ण चारों जिन आकृतियों में केवल पार्श्वनाथ की ही पहचान संभव हो सकी है। शेष तीनों जिन आकृतियों के लांछन मिट चुके हैं।
११. गोमेध - अम्बिका
बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के यक्ष-यक्षी गोमेध एवं अम्बिका की इस संग्रहालय में दो प्रतिमाएं सुरक्षित हैं। पहली प्रतिमा (११३ X ७० x २७ सेमी, पं. क्र. ३०) में द्विभुजी यक्ष- यक्षी को आम्रवृक्ष के नीचे अर्धपर्यंक मुद्रा में बैठे दिखाया गया है। दांयीं और गोमेध एवं बांयीं ओर अम्बिका बैठी हैं। दोनों के दाहिने हाथ खंडित हैं। गोमेघ के बांयें हाथ में आम्रलुम्बी है और अम्बिका के बांयें हाथ में लघु पुत्र प्रियंकर को बैठा दिखाया गया है। आम्रवृक्ष के ऊपरी भाग में तीर्थंकर नेमिनाथ की एक लघु मूर्ति उत्कीर्ण है। परिकर में उड्डीयमान मालाधर आकृतियां सुशोभित हैं। पादपीठ पर आठ मानव आकृतियां अंकित हैं।
दूसरी प्रतिमा (७२ X ४४ सेमी, पं. क्र. १२३) में द्विभुजी यक्ष-यक्षी पद्म पीठिका पर बैठे हैं। गोमेघ का दाहिना हाथ खंडित और बांयें हाथ में सनाल पद्म है। अम्बिका के दांयें हाथ में श्रीफल और बांयें हाथ में लघु पुत्र प्रियंकर है । सिरोभाग में जिन नेमिनाथ की लघु प्रतिमा उत्कीर्ण है। पादपीठ पर ६ मानव आकृतियां प्रदर्शित हैं। दोनों ही प्रतिमाएं वस्त्राभूषणों से सज्जित हैं (चित्र ५०.४) ।
इस प्रकार महोन्द्रा से प्राप्त जैन प्रतिमाएं चंदेलकालीन कला के महत्वपूर्ण उदाहरण हैं।
संदर्भ ग्रन्थ
१. इण्डियन आर्कोलोजी रिव्यू १६६० - ६१, पृ. ४५ एवं शर्मा, राजकुमार, मध्य प्रदेश के पुरातत्व का संदर्भ ग्रन्थ, भोपाल, १६७४, २५१ क्रमांक १०६१ ।
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