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________________ २१४ जैन विद्या के आयाम खण्ड-७ सोमसन्दरसरि के विशाल शिष्य परिवार में कई प्रसिद्ध विद्वान् रचना की। और प्रभावक आचार्य हुए हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है: सोमसुन्दरसूरि के एक अन्य शिष्य जिनकीर्तिसूरि हए जिनके १. मुनिसुन्दरसूरि द्वारा रची गयी विभिन्न कृतियां४२ मिलती हैं जो इस प्रकार हैंसोमसुन्दरसूरि के प्रथम शिष्य और पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि अपने १. नमस्कारस्तवन पर स्वोपज्ञवृत्ति (रचनाकाल वि०सं० युग के प्रख्यात् आचार्यों में एक थे। वि० सं० १४२६ अथवा वि०सं० १४९४) २. उत्तमकुमारचरित्र ३. शीलगोपालकथा ४. १४३६ में इनका जन्म हुआ। वि०सं० १४४३ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण चम्पक श्रेष्ठिकथा ५. पंचजिनस्तवन ६. धन्यकुमारचरित्र (रचनाकाल की, वि० सं०१४६६ में इन्हें वाचक पद प्राप्त हुआ। वि० सं० १४७८ वि० सं०१४९७) ७. दानकल्पद्रुम ८. श्राद्धगुणसंग्रह में सोमसुन्दरसूरि ने इन्हें सूरि पद प्रदान किया और वि०सं० १५०३ तपागच्छ के ५२ वें पट्टधर रत्नशेखरसूरि भी सोमसुन्दरसूरि में इनकी मृत्यु हुई३५। इनके सम्बन्ध में आगे विस्तृत विवरण प्रस्तुत के ही शिष्य थे। किया जा रहा है। सोमसुन्दरसूरि के अन्य शिष्यों में सोमदेवसूरि, सुधानंदनसूरि, जिनमंडनगणि, रत्नहंसगणि, विवेकसमुद्र, प्रतिष्ठासोम आदि का नाम २. भावसुन्दर मिलता है।४३ इन्होंने उज्जैन में 'पानविहारमंडनमहावीरस्तवन ६' की रचना की। इनके बारे में विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है। मुनिसुन्दरसूरि तपागच्छीय आचार्य सोमसन्दरसूरि के प्रतिभा सम्पन्न पट्टधर ३. भुवनसुन्दरसूरि और शिष्य मनिन्दिरसुरि के प्रारम्भिक जीवन के बारे में कोई जानकारी इनके द्वारा रचित कृतियाँ३७ इस प्रकार हैं नहीं मिलती। पट्टावलियों के अनुसार वि०सं० १४२६ या १४३६ १. परब्रह्मोवोत्थापन स्थलवाद २. महाविद्याविडंबनवृत्ति में इनका जन्म हुआ, वि० सं० १४४३ में इन्होंने दीक्षा ग्रहण की और ३. महाविद्याविडंबनटिप्पणविवरण ४. लघुमहाविद्याविडंवन ५. वि० सं० १४६६ में वाचक पद प्राप्त किया। वि० सं० १४७८ में व्याख्यान वडनगर में इन्हें आचार्य पद प्राप्त हुआ और वि० सं० १५०३ में इनका निधन हुआ४। इनके द्वारा रचित कृतियां४५ इस प्रकार है: जयचन्द्रसूरि १. विद्यगोष्ठी (वि०सं० १४५५/ई० स०१३९८-९९) इनके द्वारा रचित प्रत्याख्यानस्थानविवरण, समयकत्त्वकौमुदी २. अध्यात्मकल्पद्रुम अपरनाम शांतसुधारस वि०सं० १४५५/ और प्रतिक्रमणविधि नामक कृतियां३८ प्राप्त हुई हैं। इनके द्वारा ई०स० १३९८-९९) प्रतिष्ठापित जिनप्रतिमायें भी पर्याप्त संख्या में प्राप्त हुई हैं जो ३. त्रिदशतरंगिणी (वि० सं०१४६६/ई०स०१४०६) यह वि० सं०१४९६ से १५०६ तक की हैं। इनका संक्षिप्त विवरण इस महाविज्ञप्ति पत्र मुनिसुन्दरसूरि ने देवसुन्दरसूरि के पास भेजा प्रकार है था। १०८ हाथ लम्बे इस विज्ञप्ति पत्र का केवल गुर्वावली वाला वि० सं० १४९६ १ प्रतिमा लेख अंश ही आज प्राप्त हो सका है। वि० सं० १५०० १ प्रतिमा लेख चतुर्विंशतिस्तोत्ररत्नकोश वि० सं० १५०२ ५ प्रतिमा लेख जयानन्दचरित (वि० सं० १४८३/ई०स० १४२७) वि०सं० १५०३ १७ प्रतिमा लेख मित्रचतुष्ककथा (वि०सं०) १४८४/ई० स० १४२८) वि० सं० १५०४ ९ प्रतिमा लेख उपदेशरत्नाकरस्वोपज्ञवृत्ति के साथ (वि० सं० १४९३/ वि० सं० १५०५ १७ प्रतिमा लेख ई०स० १४३७) वि० सं० १५०६ १ प्रतिमा लेख ८. संतिकरथोत्त (शांतिकरस्तोत्र) (वि० सं० १४९३ अथवा जयचन्द्रसूरि के शिष्य जिनहर्षगणि हए जिनके द्वारा रचित १५०३) वस्तु पालचरित (वि० सं०१४९७), रयणसेहरीकहा, ९. सीमंधरस्तुति विंशतिस्थानप्रकरण, (विचारामृतसंग्रह), प्रतिक्रमणविधि (वि०सं० १०. पाक्षिकसत्तरी १५२५), आरामशोभाचरित्र, अनर्घराघववृत्ति, अष्टभाषामय ११. योगशास्त्र के चतुर्थ प्रकाश पर बालावबोध सीमंधरजिनस्तवन आदि कृतियां मिलती हैं३९। इसके अलावा इनके द्वारा रचित कुछ स्तवन४६ भी मिलते जिनहर्षगणि की शिष्यसंतति में साधुविजय, शुभवर्धन आदि हैं जो इस प्रकार हैं: मुनि हुए। १. चतुर्विंशतिजिनकल्याणकस्तवन दीपमालिकाकल्प (रचनाकाल वि०सं०१४८३) के २. जीरापल्लीपार्श्वनाथस्तवन (रचनाकाल वि०सं० १४७३/ रचनाकार जिनसुन्दरसूरि भी सोमसुन्दरसूरि के ही शिष्य थे। ई०स० १४१७) सोमसुन्दरसूरि के एक शिष्य अमरसुन्दर हुए, जिनके द्वारा ३. शत्रुजयश्रीआदिनाथस्तोत्र (वि० सं० १४७६/ई० स० १४२०) रचित कोई कृति नहीं मिलती किन्तु अमरसुन्दर के शिष्य धीरसुन्दर ४. गिरनारमौलिमण्डनश्रीनेमिनाथस्तवनम् (वि० सं० १४७६/ ने वि० सं० १५०० के लगभग आवश्यकनियुक्ति पर अवचूरि४१ की ई०स० १४२० » y Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012065
Book TitleBhupendranath Jain Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1998
Total Pages306
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size10 MB
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