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टीका
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तपागच्छ का इतिहास
२०७ ३. देवेन्द्रसूरि कृत कर्मग्रन्थों पर अवचूरि में हुआ था। इनके पिता का नाम सज्जन और माता का नाम माल्हण ४. पयन्नाप्रकीर्णक पर अवचूरि
था। वि० सं० १४३७ में सात वर्ष की आयु में इन्होंने जयानंदसूरि ५ सोमतिलकसूरिविरचित क्षेत्रसमास पर अवचूरि के पास दीक्षा ग्रहण की और सोमसुन्दर नाम प्राप्त किया। वि०सं० ६. नवतत्त्वअवचूरि
१४५० में पाटण में इन्हें वाचक पद मिला और वि०सं० १४५७ ७. अंचलमतनिराकरण
में पाटण में ही देवसुन्दरसूरि द्वारा आचार्य पद प्राप्त हुआ। मुनिसुन्दरसूरि ८. ओधनियुक्तिउद्धार
कृत गर्वावली३० (रचनाकाल वि०सं० १४६६); चारित्ररत्नगणिकृत ९. क्रियारत्नसमुच्चय
चित्रकूटमहावीरप्रासादप्रशस्ति३१ (रचनाकाल वि० सं० १४९५); १०. घट्दर्शनसमुच्चय पर तत्त्वरहस्यदीपिका नामक प्रतिष्ठासोमकृत सोमसौभाग्यकाव्य३२ (रचनाकाल वि०सं०१५३४)
सोमचरित्रगणिकृत गुरुगुणरत्नाकर३३ (रचनाकाल वि० सं० १५४१) ११. कत्याणमंदिरस्तोत्रटीका
आदि ग्रन्थों से इनके जीवन के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त होती १२. सत्तरियाअवचूरि वि०सं० १४५९ के लगभग १३. आतुरप्रत्याख्यानअवचूरि
आचार्य सोमसुन्दरसूरि द्वारा रचित कृतियां ३४ इस प्रकार १४. चतुःशरणअवचूरि १५. संथारकअवचूरि
आराधनारास १६. भक्तपरिज्ञा अवचूरि
उपदेशमालाबालावबोध (रचनाकाल वि०सं० १४८५) वि०सं० १४६९ के दो प्रतिमा लेखों में प्रतिमाप्रतिष्ठापक ३. षष्ठिशतकबालावबोध (रचनाकाल वि०सं० १४९६) के रूप में भी इनका नाम मिलता २३ है।
४. योगशास्त्रबालावबोध देवसुन्दरसूरि के चौथे शिष्य साधरत्न ने १४५६ में ५. भक्तामरस्तोत्रबालावबोध यतिजीतकल्प पर वृत्ति की रचना की२४। इसी काल के आस- ६. आराधनापताकाबालावबोध पास इनके द्वारा रचित नवतत्त्वअवचूरि२५ नामक कृति भी प्राप्त ७. षडावश्यकबालावबोध होती है।
नवतत्त्वबालावबोध (रचनाकाल वि०सं० १५०३) उन्ही के ही पांचवें शिष्य सोमसुन्दरसूरि अपने समय के ९. अष्टादशस्तवी (रचनाकाल वि०सं० १४९० के आसपास) सर्वश्रेष्ठ रचनाकार थे। इनके सम्बन्ध में आगे विस्तार से विवरण दिया १०. आतुरप्रत्याख्यानटीका गया है।
११. आवश्यकनियुक्तिअवचूरि छठे शिष्य साधुराजगणि द्वारा वि०सं०१४७० के लगभग १२. इलादुर्गऋषभजिनस्तवन साधारणजिनस्तुति की वृत्ति२६ के साथ रचना की गयी। श्री हरिदामोदर १३. चैत्रवन्दनसूत्रभाष्यटीका वेलणकर ने उक्त वृत्ति के रचनाकार का नाम श्रुतसागर बताया है २५, १४. जिनकल्याणकादिस्तवन जो कापडिया के अनुसार भ्रांति हैं।
१५. जिनभवस्तोत्र सातवें शिष्य क्षेमंकर गणि द्वारा रचित सिंहासनबत्तीसी२९ १६. पार्श्वस्तोत्र (रचनाकाल वि०सं० १४५० के आसपास) नामक कृति मिलती है। १७ श्राद्धजीतकल्पवृत्ति सोमसुन्दरसूरि
१८. षटभाषामयस्तव तपागच्छ के प्रमुख नायकों में सोमसुन्दरसूरि का विशिष्ट स्थान १९. सप्ततिकासूत्रचूर्णि है। इनका जन्म वि०सं० १४३० में प्रह्लादनपुर (वर्तमान पालनपुर) २०. साधुसामाचारीकुलक
८.
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