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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
4हार्दिक मंगल कामना
-धर्मचन्द्र नागदा, खाचरोद प्रातः स्मरणीय विश्वपूज्य श्रीमज्जैनाचार्य श्रीमद विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. की परम्परा के षष्ठ पट्टधर राष्ट्रसंत शिरोमणि की उपाधि से अलंकृत परम पूज्य आचार्य भगवन् श्रीमद्विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जन्म अमृत महोत्सव और संयम यात्रा की हीरक जयंती के अवसर पर गुरुभक्तों ने उनका अभिनन्दन कर अभिनन्दन ग्रन्थ उनके पावन कर कमलों में समर्पित करने का संकल्प कर स्तुत्य प्रयास किया है।
श्रद्धेय आचार्यश्री का जीवन सरलता, सहजता, करुणा, क्षमा, समता, विनयशीलता जैसे गुणों से ओतप्रोत रहा है । उनके जीवन का एक प्रमुख अंग सेवा भी रहा है, जो उन्हें अपने गुरुदेव पूज्य तपस्वी मुनिराज श्री हर्षविजयजी म.सा. से विरासत में मिला है | उसके अतिरिक्त आपने अपने अभी तक के संयमी जीवन में बालकों में सुसंस्कार वपन का भी महत्वपूर्ण कार्य किया है ।
ऐसे आचार्य भगवन के लिये आयोजित इस सारस्वत सम्मान की सफलता के लिये मैं अपने हृदय की गहराई से मंगल कामना करता हूं और पू. आचार्य भगवन के स्वस्थ सुदीर्घ जीवन की कामना शासन देव से करता हूं । पू. आचार्यश्री के चरणों में सविनय कोटि कोटि वंदन । A जन जन के प्रेरणा स्रोत
-तेजराज बी. नागौरी, बेंगलोर संयम जीवन की हीरक जयंती मनाना अपने आपमें एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है । परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत शिरोमणि गच्छाधिपति आचार्य श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. ने अपनी इस संयम यात्रा की अवधि में ज्ञानाराधना, धर्माराधना के साथ साथ सुसंस्करों का वपन कर व्यसन रहित समाज की संरचना में महत्वपूर्ण योगदान दिया हे । मारवाड़ की पावन धरा पर जन्म लेकर पूज्य आचार्यश्री ने ज्ञान, त्याग और वैराग्य की त्रिवेणी से अपने जीवन को पावन किया है और जन जन के प्रेरणा स्रोत बने हैं ।
इस अवसर पर आपके अनुयायियों ने आपके कर कमलों में एक अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर समर्पित करने का संकल्प लेकर एक स्तुत्य प्रयास किया है । मैं इस प्रयास की पूर्ण सफलता की अन्तर्मन से कामना करता हूं और शासनदेव से विनम्र विनती करता हूं कि वे पू. आचार्य भगवन को सुदीर्घकाल तक स्वस्थ बनाये रखें ताकि वे संघ और समाज का समुचित मार्गदर्शन करते रहें । पू. आचार्यश्री के पावन चरणों में सविनय सादर वंदना ।
श्रुत व शील सम्पन्न व्यक्तित्व
-संघवी सुमेरमल लुक्कड़, मुम्बई जब हम जैन साहित्य का अनुशीलन करते हैं, तो पाते हैं कि चरम तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी ने मानव जीवन का गम्भीर विश्लेषण करते हुए मानव चार प्रकार के बताये हैं । यथा 1. श्रुत सम्पन्न 2. शील सम्पन्न 3. श्रुत-शील सम्पन्न और 4. श्रुत व शील रहित । महान वही होता है जो श्रुत और शील सम्पन्न होता है | श्रुत सम्पन्न व्यक्ति उस पंगु के समान होता है जिसके नेत्र तो होते हैं किंतु पैर नहीं होते अर्थात् वह देख तो सकता है, किन्तु चल नहीं सकता और शील सम्पन्न व्यक्ति उस अंधे व्यक्ति के समान होता है जो चल तो सकता है किंतु देख नहीं सकता । शील रहित व्यक्ति न चल सकता है और न देख सकता है, वह अंधा और पंगु है । अतः श्रेष्ठ व्यक्ति वही होता है जिसमें शील और श्रुत दोनों हैं । जब हम पूज्य आचार्य श्रीमदविजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. के जीवन पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि वे श्रुत और शील सम्पन्न हैं, उनके जीवन की महत्ता भी यही है ।
पू. आचार्यश्री के जन्म अमृत महोत्सव और दीक्षा हीरक जयंती के अवसर पर प्रकाशित होने वाला अभिनन्दन उनके इन्हीं गुणों का अभिनन्दन हैं । मैं इस आयोजन की सफलता की हृदय से मंगलकामना करता हूं और आचार्यश्री के चरणों में वंदन करते हुए शासनदेव से उनके सुदीर्घ एवं स्वस्थ जीवन किसी हार्दिक कामना करता हूं।
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