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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन था।
सागर में स्थान दिया है और मेरा कल्याण किया है । आप अमर रहें हम सभी का उद्धार करें जैन जगत में चमकते रहे दमकते रहें, खिलते रहें । शासन की सुरभि को चिहूं दिशा में फैलाते रहें आपके अनेक गुणों में से एक बिन्दु भी मेरी जीवन में उतर जाये यही आशा रखती हूँ।
आपको ज्ञान, ध्यान, चारित्र की जितनी प्रशंसा की जाये थोड़ी है । आपश्री के जीवन की विशेषता है कि त्याग अप्रमत्त साधना शुद्ध चारित्र होते हुए भी अहंकार की बिल्कुल भी नहीं हैं ।
अभिनन्दन है उनका, अभिनन्दन है उनका जिन्होंने जीवन के एक एक पल को सतर्कता के साथ जिया है एवं अप्रमत्तता के साथ जी रहे हैं । आपश्री सदैव स्वस्थ एवं दीर्घायु को प्राप्त का जिनशासन की अभिवृद्धि करते रहें यह मेरी मंगल भावना है ।
जनम जनम तक तव चरणों का साज मिले बढ़े कदम जिन पथ की ओर नव निर्माण का राज मिले ।
जीवन की इस मधुर एवं पावन सुबेला में प्रभु से प्रार्थना है कि हजारों वर्ष की उम्र आपको मिले ।।
4 शतायु हो
मानवमुनि, इन्दौर (म.प्र.) संत किसी जाति सम्प्रदाय के नहीं होते हैं । जैन धर्म जीवन दर्शन है, जीने की कला सिखाता है । भगवान महावीर ने सम्प्रदाय नहीं बनाया था । चार तीर्थ साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका जो त्याग, संयम साधना में रहता हैं । त्याग से मनुष्य अमर हो जाता हैं । उसका यश रूपी शरीर कभी नहीं मरता । दानी दधीचि ने देवताओं के हित में अपने प्राण त्याग कर अपनी अस्थियों का दान कर दिया और अमरत्व को प्राप्त कर लिया । जिस व्यक्ति में यह चिन्तन जग गया कि यह संसार नश्वर है, यह जीवन क्षणभंगुर है, तब वैराग्य भावना जागृत हो जाती है ।
धर्म दुनिया में मंगलकारी तत्त्व है । धर्म को प्राप्त करनेवाला निर्भय बन जाता है । वीतराग पथ को प्राप्त कर मोक्षगामी हो जाता है । उसी सिद्धांत को लेकर ग्राम बागरा जिला जालोर में जन्म लिया नाम संस्कार दिया पूनमचंद । याने पूर्णिमा का चांद शीतल होता है, सबको आनन्द देने वाला होता है । वैसे ही श्री पूनमचंदजी को स्वयं आत्मज्ञान हो गया संसार असार हैं । त्याग ही जीवन का सार समझ का दीक्षा ग्रहण कर वीतराग पथ पर कदम बढ़ाते चले आप सुशोभित है । आचार्य पद का बड़ा महत्त्व होता है । महामंत्र नवकार में तीसरा पद नमो आयरियाणं, आचार्य 36 गुणों का धारी होता है । आप आचार्यदेव श्रीमद् विजय हेमेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. सरल स्वभावी हैं। त्याय संयम साधना के धनी हैं । इन्हें शत शत वंदन ।
वे स्वस्थ एवं शतायु हो । अहिंसा परमोधर्म का ध्वज जनजन में फहराते रहें । संत किसी जाति सम्प्रदाय के नहीं होते वे स्वयं की आत्मा का कल्याण करने लिये मानव का कल्याण की भावना रखते हो हृदय ये करुणा, दया, मैत्री की भावना होती हैं । सम्यक दृष्टि होती है समताभाव होता है प्राणिमात्र को अभयदान मिले यह मनोभावना रहती है । ग्रन्थ जन जन के लिये प्रेरणादायक हो यह मंगल भावना है।
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
32 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द ज्योति