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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ शान्ति -साध्वी महेन्द्रश्री मनुष्य शान्ति चाहता है, वह अपनी प्रत्येक समस्या का समाधान चाहता है । वह चाहता है कि मेरे जीवन में कोई समस्या न आये और अगर आये तो वह शीघ्र हल हो जावे । वह चाहता है कि उसका जीवन शान्त जल के समान रहे, पर क्या यह सम्भव है | कदापि नहीं, जीवन है तो समस्या है, जल है तो हलचल है, अतः ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसके जीवन में अशान्ति न हो, समस्या न हो जब तक समस्या का समाधान न होता है, वह बेचैन रहता है, अशान्त रहता है जैसे ही समस्या हल हो जाती है, उसकी बेचैनी चली जाती है और शान्ति आ जाती है । आखिर जीवन में अशान्ति क्यों आती है । जीवन में अशान्ति नहीं आये इस हेतु क्या प्रयास करना चाहिये, आदि बातें विचारणीय है, चिंतन करने वाली है | जिन व्यक्तियों का आदर्श ऊंचे होते हैं लक्ष्य ऊंचे होते हैं, वे उन्हें प्राप्त करने हेतु प्रयत्नशील रहते हैं, सतत् प्रयास में लगे रहते हैं, उन्हें जीवन में अशान्ति कम रहती है वे आस्थावान रहते हैं, क्योंकि वे जानते हैं उन्हें लक्ष्य तक पहुंचने में अनेक बाधाओं प्रतिरोधों का सामना करना होता है, कई खतरे उठाना पडते हैं अतः वे कर्म में विश्वास कर प्रयत्नशील रहते हैं । जीवन में जो हम चाहते हैं वे सभी नहीं होते हैं जिसे होना है वह होकर रहता है, और जिसे न होना है वह नहीं होता है । धूप में गर्मी है तपन है । गर्मी में बेचैनी होती है, वृक्ष की छाया होती है, छाया में शीतलता होती है, गर्मी में प्यास लगती है, पानी प्यास बुझाता है, रात्रि में अंधकार होता है, दीपक में रोशनी होती है, रोशनी अंध कार का हरण कर लेती है, यह सब अटल सत्य है । अतः हमें भी इस अटल सत्य को स्वीकार कर जीवन जीना चाहिये। इस सत्य को स्वीकार करने वाला कभी भी बेचैन न होगा, अशान्त न होगा । जो आज है वह कल नहीं रहेगा जो कल था वह आज नहीं है, अतः इस स्थाईपन को स्वीकार करते हुये मनुष्य को जीवन जीना ही शान्ति को प्राप्त करना है । एक कहानी है । एक व्यापारी था वह किसी गुरु के पास गया, गुरुने उसे एक डिब्बी देते हुये कहा इसे जीवन के गम्भीर समय पर ही खोलना । कुछ दिनों बाद उस व्यापारी को व्यापार में बड़ा घाटा हुआ वह बड़ा बेचैन हो गया । यहां तक की वह आत्महत्या करने हेतु तैयार हो गया । जैसे ही वह आत्महत्या करने वाला था कि उसे सामने रखी डिब्बी दिखाई दी, वह कुछ क्षण रूका उसने सोचा कि डिब्बी देते वक्त गुरु ने कहा था कि उसे किसी गम्भीर क्षण में ही खोलना, इस वक्त से गम्भीर क्षण और कौन सा होता, उसने वह डिब्बी खोली उसमें एक कागज था उस पर एक इबारत लिखी थी जो इस प्रकार से थी "वह समय नहीं रहा तो यह समय भी नहीं रहेगा" इस इबारत को पढ़ते ही उस व्यापारी के मन में एक नई चेतना जागृत हुई उसने सोचा कि यह कठिन समय भी निकल जायेगा मुझे आत्मा हत्या न करते हुए पुनः इन कठिनाइयों का सामना करना चाहिये, उसने ऐसा ही किया और कुछ दिनों के बाद पुनः अपने पुराने वैभव को प्राप्त कर लिया । अतः मनुष्य को अपने अशान्ति के क्षणों में भी शान्ति रखना चाहिये । हमें शान्ति पाना है तो कर्मवीर बनना होगा, अपने लक्षणे को ऊंच रखना होगा । लोक कल्याण की भावना से कर्म करना होगा समस्त विश्व को ईश्वर रूप में देखना होगा, और आसक्ति रहित जीवन जीना होगा । अपना हर कार्य, हर लक्ष्य बिना आसक्ति के करना होगा । परमार्थ और स्वार्थ का भाव मिटाना होगा । यह भी ध्यान रखना होगा कि शान्ति पाना किसी अन्य में निहित न होकर स्वयं के मन में, हृदय में है । शान्ति कोई बाहरी वस्तु न होकर आंतरिक दशा है, जो कभी वस्तु पर तो कभी भावना पर टिकी रहती है । मनुष्य की कुशलता भी इसीमें है कि चाहे जेसी परिस्थितियों हो हर्ष में शोक में वह अपने मन को स्थिर रखे, शांत रखे । शांति भंग न होने दे जिस प्रकार समुद्र में कितनी ही नदियां गिरती है । कितना ही कूड़ा कर्कट लाती है पर उसके मन में कोई विकार नहीं होता है, वह सभी को अपने में समाहित कर अविचल गति से लहराता है । जो व्यक्ति शान्ति भंग करने वाली कामनाओं का त्याग कर ममता रहित, अहंकार रहित जीवन जीता है, वह शान्ति को प्राप्त करता है, जिस प्रकार वृक्ष काटने वाले पर क्रोध नहीं करता, सींचनेवाले से मोह नहीं रखता | धूप सहता है और यात्रियों को छाया देता है । पत्थर मारनेवालों को फल देता है वैसी भी भावना शांत पुरुष की भी होती है । हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्या ज्योति 125 हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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