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________________ Jain श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन चोरी की आदत गोविन्द कक्षा पांचवीं का छात्र था । उसके माता-पिता अत्यन्त गरीब थे । सुबह से दोनों मजदूरी करने जाते तो शाम को ही लौटते इस बीच गोविन्द स्कूल में रहता । उसके पास पढ़ने के लिये पुस्तकें नहीं थी । इस कारण प्रतिदिन अध्यापक सब छात्रों के सामने उसे डाँटकर अपमानित करते, जिससे उसके बालमन पर गहरा आघात लगता । पर करता क्या? घर की स्थति उससे छिपी नहीं थी । माता-पिता को जो मजदूरी मिलती वह सुबह शाम के खाने पर ही खर्च हो जाती । एक पैसा नहीं बचता क्योंकि छः प्राणियों का परिवार था । चार भाई-बहिनों में गोविन्द सबसे बड़ा था। ग्रंथ एक दिन गोविन्द ने रात्रि में बिस्तर पर लेटे लेटे विचार किया कि मेरे माता-पिता मेरा व अन्य छोटे भाई-बहिनों का पेट भरने के लिये मेहनत मजदूरी करते हैं। मजदूरी भी कभी मिलती, कभी नहीं भी मिलती क्यों न मैं अध्यापक जी की डाँट व अपमान से बचने के लिये दोपहर की छुट्टी में एक दो छात्रों की कॉपी, किताबें पार कर दूँ। 1 इस विचार को मूर्त रूप देने के लिये वह दूसरे दिन से ही सतर्क हो कर स्कूल गया । दोपहर की छुट्टी में सब छात्र बस्ते कक्षा में छोड़कर चल दिये। सबके बाद गोविन्द निकला। उसने जो किताबें कापियां खुली पड़ी थी, छात्रों की नजर बचा कर अपने बस्ते में रखकर घर ले गया । दोपहर की छुट्टी समाप्त होने के पश्चात् जब सभी छात्र कक्षा में आए, गोविन्द भी आया जिन छात्रों की पुस्तकें और गृहकार्य की कापियां चोरी गई थी। उन्होंने अध्यापक जी से शिकायत की। अध्यापकजी ने सभी छात्रों से पूछा पर किसी ने चोरी करना या बस्ते में से निकालना स्वीकार नहीं किया। अन्त में सबके वस्तों की तलाशी ली गई, किसी के बस्ते में नहीं मिली । छात्रों ने अध्यपापक जी से कहा सर ! गोविन्द सबके पीछे था, हो न हो इसी ने चोरी की है । गोविन्द अन्य छात्रों से हृष्ट-पुष्ट और बलिष्ठ था, कितनी ही बार शाला द्वारा आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में उसने पुरस्कार जीते थे । ग्रामवासी उसे गांव की नाक समझते थे । जब छात्रों ने गोविन्द के ऊपर चोरी का आरोप लगाया तो उसने घूर कर उन छात्रों की ओर देखा जिसने उसका नाम लिया था । गोविन्द ने कड़कदार आवाज में कहा सोच समझकर मेरे ऊपर चोरी का आरोप लगाना, वरना स्कूल आना भूल जाओगे । रोबीली आवाज सुनकर वे छात्र बगलें झांकने लगे। धीरे-धीरे गोविन्द का प्रभाव देखकर दो चार छात्र उसके साथ हो गये । शाम के समय जब उसके माता-पिता मजदूरी से आए तो उन छात्रों ने जाकर गोविन्द की शिकायत कर कहा गोविन्द ने हमारी कॉपी किताबें चुरा ली। क्योंकि दोपहर की छुट्टी के समय वह सब छात्रों के पीछे था। हमने उससे कहा तो हमें आँखें बता कर डराने लगा । माता-पिता ने उसे बुलाकर पूछा तो स्पष्ट इंकार कर दिया । और कहा हमारा घर छोटा सा है यदि तुम्हें विश्वास न हो तो घर में आकर ढूँढ लो। घर का कोना-कोना छान मारा पर कापी किताबें नहीं मिली । छात्र छोटा-सा मुँह लेकर चले गये । अब वह समय पर गृहकार्य करने लगा, अभ्यास करता और अनुशासन में रहता । अध्यापकजी जितने उससे नाराज थे उतने ही उसकी प्रशंसा करने लगे । वार्षिक परीक्षा सम्पन्न हो गई, परिणाम आया तो पूरी कक्षा में वह प्रथम आया । पर उसकी चोरी की प्रवृत्ति छूटी नहीं । धीरे-धीरे उसने अपना एक दल बना लिया, जिसमें गाँव के अतिरिक्त आसपास के गाँवों के व्यक्ति भी सम्मिलित थे। हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 31 हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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