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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
पाने का
लड़का बोला - देखो मुनीमजी, आप वेतन पाते हैं, तो आपको मेरी बात माननी ही पड़ेगी । मुझे दुःख उपाय बताना ही पड़ेगा ।
विवश हो मुनीम ने कहा
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कुछ दिन पश्चात् विशेष त्योहार आया और इस अवसर पर राजा की शोभा यात्रा निकली, नगर के हजारों नर-नारी शोभा यात्रा का दृश्य देखने के लिये उमड़ पड़े सेठ का लड़का और मुनीम अपनी दुकान से ही यात्रा का दृश्य देख रहे थे । सहसा मुनीम को लडके की बात याद आ गई । उसने कहा बाबू साहब ! क्या वास्तव में ही आपकी इच्छा दुःख का स्वाद लेने की है?
अवसर आने पर दुःख का उपाय बता दूंगा । आप निश्चित रहिये ।
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लड़के ने कहा- क्या झूठ कहता हूँ। मैं वास्तव में दुःख देखना चाहता हूँ । नहीं जी, इच्छित वस्तु की प्राप्ति होती है तो तुम्हें दोष क्यों दूंगा ?
मुनीम ने कहा मुनीम बोला तो देखिए, राजा की शोभा यात्रा आ रही है। उन्हें पीने के लिये शरबत का गिलास दिया जा रहा है। आप दूसरा गिलास हाथ में लेकर ऐसा निशाना साधकर मारो कि आपका गिलास उस गिलास से टकरा जाए और वह गिलास राजा के हाथ से छूट कर गिर जाए ऐसा होने पर रक्षक आपको पकड़ लेंगे और आपकी इच्छा पूरी हो जायेगी।
लड़का तो दुःख चाहता ही था, उसने मुनीम के कहे अनुसार ही गिलास को फेंका और राजा के हाथ का गिलास टकरा कर नीचे गिर गया ।
शोभा यात्रा में भगदड़ मच गई । सब उसी ओर देखने लगे जिस ओर से गिलास आया था । रक्षक दौड़े और उसे पकड़ लिया। वे उसे राजा के पास ले गए, बोले- महाराज! इस नासमझ लड़के ने आपके ऊपर गिलास फेंका है।
राजा यद्यपि राज पथ से जा रहा था, तो भी जिस स्थान पर गिलास फेंका गया, उस स्थान पर मार्ग के एक ओर कोई भवन था । उसकी छत में एक खुले मुँह का सर्प था। जिसके मुँह से विष की बूँदे टपक रही थी ।
यह देखकर राजा ने कहा- सिपाहियो ! इसे क्यों पकड़ कर लाए हो? इसने गिलास फेंक कर मेरे प्राणों की रक्षा की है । यदि यह गिलास न फेंकता और मैं शरबत पी लेता तो बेमौत मर जाता । वास्तव में यह लड़का मेरा प्राण रक्षक है।
राजा ने धन्यवाद दिया और पुरस्कार देकर लड़के को छुड़वा दिया। लड़का मुनीम के पास पहुँचा और बोला -मुनीमजी ! आपने दुःख प्राप्त करने का अच्छा उपाय नहीं बतलाया ।
मुनीम ने कहा अच्छा पुनः अवसर आने दीजिए, दूसरा कोई उपाय बतलाऊँगा ।
कुछ दिन पश्चात् की घटना है। राजा महल के में बैठे थे । मुनीम लड़के को लेकर वहां गया और बोला टोक उनके पास जा सकते हो । वहाँ चले जाओ जाते ही तुम्हें दुःख प्राप्त हो जाएगा ।
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झरोखे में बैठा था। दूसरे सैकड़ों व्यक्ति महाराज की सेवा
राजा साहब! तुम्हारे ऊपर प्रसन्न है। तुम बिना रोक राजा को धक्का देकर नीचे गिरा देना । ऐसा करने से
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लड़का भीड़ में से होता हुआ राजा के पास पहुँच गया। उसने आव देखा न ताव और अचानक राजा को हाथ से खींचकर और धक्का देकर नीचे गिरा दिया। राजा के नीचे गिरते ही वह झरोखा भी उसी समय गिर पड़ा । जब सिपाही पकड़कर उसे राजा के पास ले गए तो राजा ने कहा- यह लड़का तो बड़ा ज्ञानी है। यदि यह हाथ से खींचकर मुझे न गिराता तो में गवाक्ष के नीचे दबकर मर जाता, क्योंकि गवाक्ष तो गिरनेवाला ही था । इसने सही अवसर पर आकर मेरे प्राण बचा लिये । इसके इस कार्य से मैं बहुत प्रसन्न हूँ ।
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राजा ने उसे पुनः पुरस्कृत किया और आदर के साथ घर के लिये विदा किया ।
हेमे ज्योति ज्योति
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हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति
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