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श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ
जिन शासन के चमकते सितारे -
साध्वी शीतलगुणाश्री स्नेही साधकों की साधना भूमि कहलाने वाली इस भारतभूमि पर अनेकानेक धर्मवीर, कर्मवीर, महापुरुषों ने जन्म लेकर अपने कर्मक्षेत्र को उज्ज्वल समुज्ज्वल ही नहीं पर अत्युज्ज्वल किया है । उसी कड़ी में जुड़ने वाले जीवन के अंधियारे में प्रकाशवत् उज्ज्वल व्यक्तित्व के धनी स्वनाम धन्य प.पू. राष्ट्रसंत शिरोमणि गुरुदेवश्री ।
जिनके सुगंधमय व्यक्तित्व की सुरभि पृथ्वी की अंतिम सीमाओं तक फैली हुई है । जिनके व्यक्तित्व का आलोक हम सभी के अंधकारमय जीवन मार्गों को प्रकाशमान कर रहा है । जो स्वयं अपने जीवन के प्रति सतत प्रतिपल प्रतिक्षण जागृत हैं । अतः उनके सम्बन्ध में जिव्हा अनायास ही 'गुणिषु प्रमोदम' के नाते कह उठती है -
तव गुण गरिमा गाने, अतुलित आनंद मिला
मम मानस मधुकर को, सद्गुण मकरंद मिला प. पू. गुरुदेव श्री को अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित किया जा रहा है सुनकर अतीव आत्म प्रसन्नता हुई जैसे कि आम्रमंजरी खिलने पर कोयल गाती हैं, मेघ बरसने पर मयूर के पांव स्वतः थिरकने लगते हैं, अरुणोदय पर कमल खिल उठता है, वैसे ही मेरा हृदय कमल भी प्रसन्नता से प्रफुल्लित हो खिल उठा ।
इस पावन प्रसंग पर मेरे दिल के भाव उमड़-उमड़ कर बरसना चाहते हैं स्वाभाविक ही है । मराठी में कहावत हैं। सत्य तेथे अहिंसा, गुण तेथे प्रशंसा अतः
संयम जीवन के सही बन, नित्य कराते जिनामृत पान
शब्द कहां से लाऊं इतने, तब गुण गाथा है महान " गुणियों के प्रति मुखरित हुए बिना नहीं रह सकती आपकी जीवन महिमा को देखते हुए कहना चाहूंगी -
"जीवन को मधुर बनाया आपने | मधुरता से जीवन को सजाया आपने ||
सहगुण गरिमा से मंडित होकर -
शालीनता से संयमदीप जलाया आपने || दीपकवत् महापुरुष बोलते नहीं प्रकाशित होते हैं तथा बादलों में छिपी बिजली की तरह गरजते नहीं चमकते हैं । संत वसंतवत् प्रफुल्लित हो महकते रहते हैं । जब-जब भी देखा आपश्री हृदय के स्नेह को वचनों की मिठास से व्यक्त करते रहते हैं | आपके मुखारविंद पर शान्ति-समता के परागकण बिखरे नजर आते हैं । जीवन हिमाचल से निस्पृह पावनी प्रेमगंगा शुष्क जन जीवन में नव चेतना का संचार करती रही है । मंदिर के घंटे की तरह सभी में जागृति प्रदान करते रहे हैं । सेवा धर्म के मूलमंत्र को जीवन में पूर्णरूपेण अपनाकर गुरुगच्छ एवं संघसेवा के अगम्य दुर्गम पथ पर अविराम गति से चलते रहे हैं । आपके जीवनोद्यान में अनेकानेक बहुरंगी, बहुगुणी सद्भावों के कोमल किसलय खिले है, उसकी सौरभ पाकर मानव सहज ही प्रशंसा रूपी उपहार भेंट किये बिना नहीं रह सकते।
आपने जीवन व संयम यात्रा के बीते वसंतों में संतत्व का ही विकास किया व संत भी वही है जो "वसंतवत् लोकहित चरन्त' वृक्ष का ऐश्वर्य वैभव वंसत से ही प्रकट होता है किंतु जीवन के पतझड़ में सद्भावों के अंकुर प्रस्फुटित करने प्रेम एवं स्नेह के नानाविधि पुष्पों को खिलाने का श्रेय आप जैसे सन्त महापुरुषों को जाता है । सरिता का किनारा हरा भरा रहता है । वैसे ही आपके सान्निध्य को पानेवाले का दिल-दिमाग सरसब्ज बना रहता है । आपके उज्ज्वल और पवित्र जीवन का यशोगीत आपकी यह सलोनी सूरत ही सुना रही है । एक खिलते हुए गुलाब
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति 62
हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
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