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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ चूंकि समय बहुत कम था और वर्षावास स्थल की दूरी अधिक थी । इसलिये पू. आचार्यश्री एवं पू. कोंकण केसरी जी म. आदि साधु-साध्वी वृन्द ने दिनांक 17-5-99 को श्री मोहनखेडा तीर्थ से राणीबेन्नूर की ओर विहार कर दिया । दक्षिण भारत की ओर : श्री मोहनखेडा तीर्थ से विहार हुआ और मार्गवर्ती ग्राम नगरों को पावन करते हुए आप मनावर पधारे । पू. आचार्य भगवन का यहां प्रथम बार ही आगमन हुआ । आपके आगमन से यहां हर्षोल्लास की लहर फैल गई। आपका समारोहपूर्वक नगर प्रवेश करवाया गया । प्रवेशोत्सव का चल समारोह नगर के विभिन्न मार्गों से होता हुआ उपाश्रय पहुंचा और वहां धर्मसभा में परिवर्तित हो गया । इस धर्मसभा में विभिन्न वक्ताओं ने अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति प्रदान की । पू. कोंकण केसरी जी म. का सामयिक सारगर्भित प्रवचन हुआ । श्री संघ ने आपसे कुछ दिन ठहरने की आग्रहभरी विनती भी किंतु समयाभाव में उसे स्वीकार नहीं किया जा सका और आपने मनावर से विहार कर दिया । मनावर से सेन्धवा, सिरपुर आदि नगरों को पावन करते हुए आप धूलिया पधारे । आपके स्वागत में धूलिया के गुरुभक्त बैण्ड बाजों के साथ नगर के बाहर उपस्थित थे । आपके दर्शन होते ही वाद्य यंत्र बज उठे । रंगीन परिधानों में सुसज्जित ललनाओं के कोमल कंठों से स्वागत गीतों की स्वर लहरियों गूंज उठी । नगर प्रवेश का यह चल समारोह यहां से चल पड़ा और नगर के विभिन्न मार्गों से होता हुआ उपाश्रय जाकर धर्म सभा में परिवर्ति हो गया । इस धर्मसभा में विभिन्न गुरुभक्तों ने अपनी भावना को अभिव्यक्त किया और पू. आचार्यश्री तथा साधु-साध वी मंडल के धूलिया पधारने को अपना सौभाग्य माना। कोंकण केसरीजी म. का प्रभावशाली एवं प्रेरक प्रवचन हुआ। यहां आचार्य श्री के सान्निध्य में अ.भा. श्री राजेन्द्रसूरि जैन फेडरेशन की शाखा की स्थापना हुई । समाज के गरीब भाइयों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के लिये नवगठित शाखा ने संकल्प लिया और दो लाख रुपये का कोष भी तत्काल एकत्र कर लिया । धूलिया से विहार हुआ और मालेगांव, मनमाड़, शिर्डी आदि मार्गवर्ती ग्राम नगरों को पावन करते हुए आपका पदार्पण अहमदनगर हुआ । स्मरण रहे कि आपका इस ओर पदार्पण पहली बार ही हुआ और संयम व्रत अंगीकार करने के पश्चात् आप पहली बार दक्षिण भारत की धरा पर पधारे । यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक ही होगा कि पू. राष्ट्रसंत श्री अपने सांसारिक जीवन में कर्नाटक प्रदेश के बागेवाडी कस्बे में रहकर कपड़े का व्यवसाय कर चुके हैं । इस तथ्य से न केवल बागेवाडी कस्बे के आसपास के गुरुभक्त परिचित है, वरन् कर्नाटक के समीपवर्ती प्रदेशों के गुरुभक्त भी भलीभांति परिचित हैं । राष्ट्रसंत श्री आचार्य के रूप में उस क्षेत्र में प्रथमबार ही पधार रहे हैं । अतः जहां भी आपका आगमन होता, वहां गुरुभक्त आपके दर्शनों के लिये उमड़ पड़ते । प्रत्येक गुरुभक्त आपके श्रीमुख से जिनवाणी का अमृतपान कर आशीर्वचन प्राप्त करने के लिये लालायित हो उठता । अहमदनगर एक ऐतिहासिक नगर है, अपनी ऐतिहासिकता के अनुरूप ही राष्ट्रसंतश्री एवं समस्त साधु-साध्वी वृंद का यहां ऐतिहासिक स्वागत सम्मान अभिनन्दन भी हुआ । आपका यहां पदार्पण एक चिरस्मरणीय स्मृति प्रदान कर गया। अहमदनगर से आपका विहार हुआ और विभिन्न ग्राम नगरों में गुरुगच्छ का नाम उज्ज्वल करते हुए आप अपने साधु - साध्वीवृंद के साथ दूसरे ऐतिहासिक नगर बीजापुर पधारे | आपके बीजापुर पदार्पण से यहां के श्रीसंघ में हर्ष एवं उल्लास की लहर व्याप्त हो गई समस्त गुरुभक्त उमड़ पडे । बैण्ड बाजों एवं स्वागत गीतों की मधुर स्वर लहरी के साथ | राष्ट्रसंत श्री आदि का भव्य समारोह के साथ नगर प्रवेश हुआ । नगर के मुख्य मार्गों से हुआ आपके नगर प्रवेश का चल समारोह उपाश्रय पहुंचकर धर्मसभा में परिवर्तित होगया । धर्मसभा में विभिन्न व वक्ताओं ने आपके स्वागत सम्मान में अपनी भावना प्रकट की । कोंकण केसरी जी म. का सामयिक प्रभावशाली एवं प्रेरक प्रवचन हुआ । आचार्यश्री के मंगलवचन के साथ धर्मसभा समाप्त हुई । बीजापुर से विहार कर आचार्यश्री आदि हुबली पधारे । यहां कुछ दिनों की स्थिरता रही । हुबली में पू. दादा गुरुदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी म.सा. का 131 वाँ क्रियोद्धार दिवस एवं पू. आचार्यश्री के परम उपकारी गुरुदेव तपस्वी रत्न पू. मुनिप्रवर श्री हर्षविजयजी म.सा. का बयालीसवां महाप्रयाण दिवस समारोहपूर्वक सानन्द सम्पन्न किया । वर्षावास के समय की निकटता को देखकर आपने यहां से राणीबेन्नूर की ओर विहार कर दिया। हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति 48 हेमेन्द्र ज्योति* हेमेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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