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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरामणि आभनंदन गया से इस सम्बन्ध में सतत् आग्रहपूर्ण विनती भी की जा रही थी । अंतत: मेरी आकांक्षापूर्ति का मार्ग प्रशस्त उस समय हुआ जब पू.आचार्य भगवन ने मेरे दीक्षा समारोह के लिये फाल्गुन कृष्णा द्वितीया सं. 2051 दिनांक 27-2-1994 का मुहूर्त प्रदान कर दिया । पू. आचार्य भगवन एवं मुनिमण्डल ग्रामानुग्राम धर्म प्रचार करते हुए पावा पधारे जहां प्रतिष्ठा की जाजम हुई पावा से शंखेश्वर पधारें जहां अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न किया और दि. 21-2-1994 को मुमुक्षु सुनीलकुमार मणिलाल गुगलिया को जैन भागवती दीक्षा प्रदान कर मुनि श्री लाभेशविजयजी म. के नाम से पन्यास प्रवर श्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा. के शिष्य के रूप में प्रसिद्ध किया । दिनांक 27-2-1994 को प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर मुमुक्षु नरेशकुमार विजयजकुमार मादरेचा अर्थात् मुझे पू. गुरुदेव आचार्य भगवन ने जैन भागवती दीक्षा प्रदान कर मुनिश्री प्रीतेशचन्द्रविजय के नाम से अपना शिष्य घोषित किया । यहां के कार्यक्रम सम्पन्न कर आपश्री ने मुनिमण्डल सहित पुनः पावा की ओर विहार किया जहां भगवान श्री संभवनाथ की अंजनशलाका एवं प्रतिष्ठाकार्य सानन्द सम्पन्न का आहोर की ओर विहार किया । आपके आहोर पधारते ही वहां हर्ष और उल्लास का वातावरण छा गया । आहोर में वैशाख शुक्ला दशमी सं. 2051 दिनांक 20-5-1994 को तीन वैरागन बहनों को दीक्षाव्रत प्रदान किया जिनके नाम इस प्रकार है-1. कु. निर्मला मांगीलाल तिलेसरा 2. कु. कान्ता मांगीलाल तिलेसरा एवं 3. श्रीमती सेवन्ती बहन पत्नी प्रकाशचन्दजी । इन तीनों नवदीक्षित साध्वियां को सुसाध्वीजी श्री संघवणाश्रीजी म.सा. की शिष्या घोषित किया गया । इंसी समय आपश्री के वि.सं. 2051 के वर्षावास की आग्रहभरी विनतियां भी हो रही थी । श्री सुमेरमलजी लुंकड परिवार की ओर से आपश्री के वर्षावास की घोषणा पालीताणा के लिये हुई । पालीताणा के लिये वर्षावास की घोषणा होने के पश्चात् आपश्री का विहार पालीताणा की ओर हो गया । निश्चित समय पर वर्षावास के लिये आपका प्रवेश श्री राजेन्द्र दादावाडी पालीताणा में हुआ । इस वर्षावास में लगभग 800 आराधकों ने धर्माराधना की । इस वर्षावास में तपस्यायें भी खूब हुई । अर्हत योगी मुनिराजश्री रवीन्द्र विजयजी म.सा. ने मासखमण की तपस्या की । तपस्या के पारणे के अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री दिग्विजयसिंह पालीताणा आये थे । इस वर्षावास की एक अन्य उल्लेखनीय बात यह रही कि इस समय सम्मेदशिखरजी तीर्थ विषयक राजेन्द्र दादावाडी में साधु सम्मलेन का आयोजन भी पू. आचार्य भगवन के सान्निध्य में हुआ। जिसमें तेरह आचार्य भगवन् भी पधारे थे । गच्छाधिपति श्री प्रद्युम्नविमल सूरीश्वरजी म.सा. ने ग्यारह उपवास की तपस्या की थी। यहीं पू. आचार्यश्री द्वारा मुनिराज श्री रवीन्द्रविजयजी म.सा. एवं मुनिराज श्री लोकेन्द्रविजयजी म.सा. से श्री भगवतीसूत्र के योगोदवहन भी करवाये और यहीं उक्त दोनों मुनिराजों को पन्यास पद से समारोहपूर्व अलंकृत किया। यहां श्री पुखराजजी केसरीमलजी कंकू चौपड़ा निवासी आहोर एवं श्री हस्तीमलजी केसरीमलजी बागरेचा के आयोजन में नवाणु की दो यात्राएं भी आपश्री ने सम्पन्न करवाई। इस प्रकार आपश्री का यह वर्षावास सभी दृष्टि से अति सफल एवं ऐतिहासिक रहा । वर्षावास समाप्त होने के पश्चात् आपश्री ने मुनि मण्डल के साथ बम्बई की ओर विहार कर दिया । विभिन्न ग्राम नगरों को पावन करते हुए आपका पर्दापण नवसारी हुआ। जहां आपश्री के पावन सान्निध्य में गुरुसप्तमी पर्व पंचान्हिका महोत्सव सहित भव्यरूप से मनाया गया। नवसारी से विहार कर मार्गवर्ती ग्राम-नगरों में धर्मप्रचार करते हुए आपका पर्दापण बम्बई में हुआ । आपके यहां पधारते ही गुरुभक्तों में जागृति उत्पन्न हो गई । कमाठीपुरा, बम्बई में पू. आचार्यश्री के सान्निध्य में भगवान श्री नमिनाथ जैन मंदिर की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । फिर यहां से आप सुमेर टावर पधारे जहां भगवान श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा सम्पन्न कर नीलमनगर पधारे । जहां पर आपके सान्निध्य में प्रतिष्ठोत्सव सम्पन्न हुआ और यहीं पर आपके सान्निध्य में एवं भारत जैन महामण्डल के नूतन अध्यक्ष श्री किशारेचंद एम. वर्धन की अध्यक्षता में भारत जैन महामण्डल का अधिवेशन हुआ । इस अवसर पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लालकृष्ण अडवाणी एवं महाराष्ट्र के उपमुख्य मंत्री श्री गोपीनाथ मुण्डे भी विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे । उल्लेखनीय बात यह है कि भा. ज. पा. के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लालकृष्ण अडवाणी ने पू. आचार्यश्रीजी को राष्ट्रसंत की उपाधि से अलंकृत किया और आपको एक अभिनन्दन पत्र भी भेंट किया । यहां के कार्यक्रम सम्पन्न कर आपने यहां से विहार कर दिया । मार्गवर्ती विभिन्न ग्राम नगरों को पावन करते हुए आपका पदार्पण भीनमाल हुआ । जहां आपके पावन सान्निध्य में भगवान श्री लक्ष्मीवल्लभ पार्श्वनाथ बहत्तर जिनालय का शिलान्यास सम्पन्न हुआ। और इसी अवसर पर आपके कर कमलों हेमेन्द्र ज्योति * हेमेन्द्र ज्योति 44 हेमेन्द्र ज्योति * हेगेन्द्र ज्योति
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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