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________________ श्री राष्ट्रसंत शिरोमणि अभिनंदन ग्रंथ आचार्य श्री के निधन के पश्चात् गुरुदेव मुनिराज श्री हेमेन्द्र विजयजी म.सा. संघनायक के रूप में लगभग तीन वर्ष तक संघ का नेतृत्व कर मार्गदर्शन प्रदान करते रहें । सं 2040 का वर्षावास आपका दादावाड़ी पालीताणा में श्री किशोरचन्द्र एम. वर्धन परिवार की ओर से हुआ वर्षावास कलीन धार्मिक क्रियाओं और नवकार महामंत्र की सामूहिक आराधना के साथ वर्षावास सानंद सम्पन्न हुआ । कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को श्रीमती अंकीबाई घमंडीराम गोवाणी की ओर से नवाणुयात्रा प्रारम्भ हुई। मगसर कृष्णा पंचमी को पालीताणा से राजस्थान की ओर विहार हुआ। शंखेश्वर, धराद, वरमाण, सिरोही, सुमेरपुर आदि नगरों में धर्मप्रचार करते हुए पौष शुक्ला पंचमी संवत 2040 को आहोर मे समारोहपूर्वक प्रवेश किया । गुरुसप्तमी का पर्व समारोहपूर्वक मनाया गया और इसी दिन हमारे चरितनायक को प.पू. कविरत्न शासन प्रभाव आचार्यश्रीमद् विजय विद्याचन्द्र सूरिजी म. के पट्टधर के रूप में घोषित किया गया। पौष शुक्ला चतुर्दशी को आहोर में पाटोत्सव आयोजित करने का निर्णय हुआ। पाटोत्सव माघ शुक्ला नवमी को अष्टान्हिका महोत्सव के साथ मनाया जाना निश्चित हुआ । भेंसवाडा में मुनिश्री ऋषभचन्द विजयजी म. एवं चार अन्य साध्वियांजी की बड़ी दीक्षा सम्पन्न हुई । : आचार्यपद से अलंकृत : आचार्यपद को अधिक समय तक तो रिक्त नहीं रखा जा सकता था। अतः संघ समाज के कर्णधरों ने एक स्वर से निर्णय कर वरिष्ठ मुनिराज श्री हेमेन्द्रविजयजी म. को आचार्यपद से अलंकृत करने का निर्णय कर लिया और आचार्यपद प्रदान महोत्सव के लिये सं. 2040 माघ शुक्ला नवमी शनिवार दिनांक 11-2-1984 का दिन भी निश्चित हो गया । जब आचार्यपद के महोत्सव का शुभमुहूर्त निश्चित हो गया तो अब सबका लक्ष्य यही दिन हो गया। पाटोत्सव के आयोजन के लिये आहोर श्रीसंघ की विनती को मान देकर उसे स्वीकृति प्रदान कर दी गई। जैसे जैसे उक्त तिथि निकट आती गई वैसे वैस तैयारियां होने लगी । अब सबका लक्ष्य आहोर पहुंचना हो गया। श्रीसंघ के प्रमुख पदाधिकारीगण भी आहोर पहुंच गये। इसके पूर्व पाटोत्सव की सफलता पूर्वक सम्पन्नता के लिये विभिन्न समितियों का गठन कर दिया गया था। प्रत्येक समिति के सदस्यगण सौंपे गये कार्य को पूर्णनिष्ठा और लगन के साथ कर रहे थे । मुख्य दिवस के दो चार दिन पूर्व से ही गुरुभक्तों का आना प्रारम्भ हो गया था । छोटे से आहोर ने एक नगर का स्वरूप ग्रहण कर लिया था । दिनांक 10-2-1984 को तो स्थिति यह हो गई थी कि आहोर के मुख्य मार्ग ही नहीं गली गली में रंग बिरंगें वस्त्रों से सुसज्जित नर-नारी के समूह के समूह दिखाई दे रहे थे । सभी हसते खिलखिलाते मुख्य दिवस की प्रतीक्षा में थे कई स्थानों से नारियों के सुमधुर कंठो से गीतों की स्वरलहरियां फूट पड़ रही थी । | समूचे आहोर को बंदनवारों और तोरण द्वारों से सजाया गया था। भवन स्वामियों ने भी अपने अपने भवन को सुन्दर रीत्यानुसार सजाया था । अजैन लोगों ने भी अपने घरों को सजाया । इस अवसर पर स्थान स्थान पर ही गई विद्युत की साज-सज्जा सूर्यास्त होते ही खिल उठती थी । अनेक स्थानों की विद्युत साज सज्जा देखने के लिये दर्शनार्थी एकत्र हो जाते जिससे आवागमन अवरूद्धसा हो जाता तब विनम्रतापूर्वक उनसे हटकर मार्ग देने का आग्रह करना पड़ता । दिनांक 10-2-1984 की संध्या तक हजारों की संख्या में गुरूभक्तों का आगमन हो चुका था । स्वगच्छीय साधु साध्वियां भी इस अवसर पर उपस्थित हुए थे । दिनांक 11-2-1984 का सूर्योदय अभी हुआ भी नहीं था किंतु नगर में चहल पहल प्रारम्भ हो गई थी। जय जयकार के निनाद भी सुनाई दे रहे थे । गुरुभक्तों का जमावड़ा श्री गोड़ी पार्श्वनाथ भगवान के मन्दिर की ओर हो रहा था । सूर्योदय हुआ और पृथ्वी का कण कण चमक उठा । आजका सूर्योदय कुछ विशेष संदेश लेकर आया, ऐसा अनुभव हो रहा था । पक्षियों की चहचहाहट संगीत का अनुपम आनन्द प्रदान कर रही थी । कुल मिलाकर सारा वातावरण बहुत ही आनन्दायक और मनोरम लग रहा था। कार्यक्रम जिस स्थान पर होनेवाला था उसे भव्यातिभव्य रीत्यानुसार सजाया गया था । साधु-साध्वियों के बैठने के लिये पृथक पृथक व्यवस्था थी । दर्शनार्थियों हेमेन्द्र ज्योति हेमेन्द्र ज्योति 37 ज्योति मे ज्योति ** www.minelibrary.or
SR No.012063
Book TitleHemendra Jyoti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLekhendrashekharvijay, Tejsinh Gaud
PublisherAdinath Rajendra Jain Shwetambara Pedhi
Publication Year2006
Total Pages688
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size155 MB
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