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________________ देश की स्वतन्त्रता और स्वदेशी खादी को अपनाने (जिस को पहनने का जीवन पर्यन्त, प्रण लिया) और विदेशी कपड़े एवं लाडोरानी जैन, वस्तओं के बहिष्कार के लिये जनता को न उत्साहित किया। संक्रान्ति महोत्सव कैसे भूले हम उन गुरुओं के उपकारों को जिन्होंने समाज में पैदा होंगे। भगवान के सामने जाकर बैठेंगे तो भगवान के वैराग्य क्रान्ति लाकर एक सच्ची राह पर चलकर सच्चा रास्ता अपनाया। का ही ध्यान आवेगा। भगवान ने कितने-कितने कष्ट सहे। मोक्ष आज से लगभग 48 वर्ष पूर्व गुजरांवाला के एक सुथावक अपना कल्याण तो किया ही मगर उन्होंने जनता का भी कल्याण मिलना कोई आसान नहीं मन में फिर भगवान के लिए श्रद्धा पैदा ला० छोटे लाल जी (ला० माणेक चन्द छोटे लाल) की विनती पर किया। धर्म का जो बीज पंजाब में उन्होंने बोया था, उसी का हम होती है और मस्तक अपने आप झुक जाता है। यह सब हमारे पूज्य आचार्य श्री विजयवल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने संक्राति (जो फल ले रहे हैं। क्या-क्या कठिनाइयाँ सही थी। गुरु आत्माराम जी महाराज के बोये बीज का फल है। देसी माह की पहली तिथि को कहते हैं) जिस दिन सूर्य एक राशि से दुसरी राशि में प्रवेश करते है, का प्रकाश प्रारम्भ किया। । जैसे एक माली जमीन को तैयार करने में कितनी मेहनत वल्लभ सूरीश्वर महाराज जी ने धर्म का खूब डंका बजाया करता जमीन खोदता है खाद मिलाकर जमीन तैयार करता है, और अपने गुरु का नाम चमकाया। गुरु वल्लभ निडर गुरूदेव ने अपनी दिग्दृष्टि में देखा कि यह संक्राति, जिस का बीज डालता है पानी देता है। रोज पानी देता है। हर रोज पानी क्रान्तिकारी थे जिस वक्त गुरु महाराज ने लाऊडस्पीकर पर भले ही आज चन्द महानुभाव लाभ ले रहे हैं परन्तु आगे चल कर देना फिर उसकी रखवाली करता है कहीं उसके डाले बीज को व्याख्यान दिया तो जैन समाज में हलचल मच गई। साधु साध्वियों यह एक महोत्सव का रूप लेगी। इस महोत्सव के माध्यम से कोई रोंद ना दे फिर उस जमीन में अंकुर फूटते हैं और उसकी ने घोर विरोध किया मगर गुरु महाराज किसी से डरते नहीं थे वह समाज को बहुत लाभ मिल सकता है। समाज के अधूरे कार्य इस रखवाली के लिये माली को तैयार करता है। इसी प्रकार गुरु आने वाले कल की सोचा करते थे। कोई भी साध्वी जी महाराज संक्रान्ति के माध्यम से परिपूर्ण हो सकेंगे और नई योजनाएं जो महाराज ने भी सोये जैनियों को उठाया समझाया, उन्हें तैयार पाट पर बैठ कर व्याख्यान नहीं दे सकते थे ऐसी ही परम्परा थी। समाज के हर वर्ग के लिये हर क्षेत्र के लिये उपयोगी होगी प्रारम्भ किया क्रान्ति लायें। ऐसा बीज बोया जो कि आज है वहीं बीज एक मगर गुरु वल्लभ सूरि जी ने साध्वी महत्तरा श्री मृगावती को हो सकेंगी। गुरूदर्शनों, जिससे समाज काफी देर तक बंचित रहता बड़ वृक्ष बन कर आपके सामने है। फिर माली भी ऐसे तैयार किए आदेश दिया कि पाट कर बैठकर व्याख्यान करो। वह भी गुरु की था, के लाभ के साथ साथ गुरूवाणी का श्रवण कर जीव अपने जो कि बड़ वृक्ष की छाया में जनता को बढ़ाते रहें उनकी तरह निडर थे उन्होंने पाट कर बैठकर व्याख्यान दिया गुरु आप को पावन बना सकेगा। तीर्थयात्रा का लाभ मिल सकेगा। शाखाओं को भी सींचा। अगर माली बीज को बहुत होशियारी से महाराज फरमाते थे कि स्त्री में बहुत भारी शक्ति है। उसी शक्ति आत्मगुरू के पट्ट के रखवाले गुरूदेवों से वासक्षेप रूपी | डालता है तो ही वह बीज एक बहुत बड़ा पेड़ बन जाता है। इसी को महत्तराजी ने दिखा दिया स्त्री भी किसी से कम नहीं है। आज आर्शीवाद प्राप्त कर कुछ फंड में डालकर जीव आध्यात्कि, प्रकार हमारे गुरु न्यायम्भोनिधी जैनाचार्य विजयानन्द सूरीश्वर हमारी साध्वी वर्ग (स्त्री वर्ग) का गर्व से सिर ऊंचा हो गया है। सामाजिक, व्यवहारिक, एवं धार्मिक एवं धार्मिक क्षेत्र में सफलता जी महाराज ने जगह-जगह शहर-शहर, गाँव-गाँव, घर-घर अपने गुरु का ऐसा विशाल स्मारक बनवाना कोई मामूली बात की चोटी पर पहुंच सकेगा। और इसी वासक्षेप फंड से विधवाओं, घूम कर नसों में धर्म की लहर का जोश भरा। जनता में क्रान्ति नहीं है। अबलाओं, बेसहारा और शिक्षार्थियों को सहायता मिल सेगी। लाए सोई जनता को जगाया कितने दूरदर्शी थे। उन्होंने गुरु समुद्र सूरीश्वर जी महाराज ने शान्त स्वाभावी रोबदार आपसी मेल मिलाप से सभी सम्प्रदाय जैन, जैनेत्तर एवं प्रांतीय शहर-शहर में मन्दिर बनवाये और अपने माली विजय वल्लभ आज्ञा जब महत्तराजी को दी कि अब गुरु के उपकार के उऋण समाज एकता के सूत्र में बंध जायेगी। सूरीश्वर जी महाराज को कहा कि तुम सरस्वती मन्दिर बनवाना, होने का मौका है उनके नाम को चार चांद लगा दो। स्मारक के इसी दृष्टिकोण से आचार्य देव ने संक्रान्ति महोत्सव का | स्कूल खुलवाना, कालेज खुलवाना, गुरुकुल बनवाना उनकी रक्षा काम में महत्तरा जी जुट गये। उसी स्मारक की प्रतिष्ठा करवाने संचालन किया और समाज को एक बहत बड़ी उपलिब्ध प्रदान के लिये माली भी तैयार करना। गुरु वल्लभ चाहते थे कि समाज आचार्य श्री समद्र सूरीश्वर जी महाराज के पद्रधर गच्छाधिपति को कोई बच्चा शिक्षा विहीन न रहे इसके लिये गुरु वल्लभ ने श्री विजेन्द्र सरिजी महाराज अपने छोटे-छोटे शिष्यों को लेकर गुरू विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने 84 वर्ष की दीर्घ । | मीठा छोड़ा, चावल छोड़ा, दूध छोड़ा, और ना मालूम किस-किस उग्र गर्मी में कठिन विहार कर गुरु के स्मारक पर पधारे। विशाल अवस्था तक समाज के सातों क्षेत्रों का सींचन करने हेतु सभी का | चीज का त्याग किया। जब कोई शिक्षा लेगा तो पता चलेगा कि प्रतिमा के दर्शन किये फिर धन्य हो गये। हमारे ऊपर कितने ध्यान आकर्षित किया और समाज में नई चेतना डाली। जिससे हर मन्दिर किस लिए बनाय जात ह। उपकार किये है सभी गुरु महाराजों ने। आज महत्तराजी होते तो पहलू में समाज को जागृति मिली। गरूदेव ने समाज के लिये कई ____बह यह जान सकें कि धर्म क्या है मन्दिर में क्यों जाना फूले नहीं समाते उनके किये कार्य को सराहने वाले उनके गुरु काय किये परन्तु कहीं भी अपना नाम नहीं दिया। हर संस्था गरू । चाहिए। मन्दिर जी में बैठे कर शुद्ध भाव पैदा होते हैं, कहावत है पधारे हैं। मगर विधाता को तो कुछ और ही मंजूर था यद्यपि के नाम से ही प्रचलित की। और गुरू के पैगाम को भुला कर हर | जैसा बोईये, वैसा पाइये, जैसे में बैठेंगे वैसे ही बनेंगे। अगर हम महत्तरा मृगावती जी महाराज नहीं रहे किन्तु सब साधु साध्वी Smm वक्त जस का प्रचार किया। . मन्दिर जी में जाकर बैठेंगे तो हमारा मन शुद्ध होगा शुद्ध भाव भाई-बहन स्मारक को देख कर गद्-गद् हो रहे हैं। .. mod की।
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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