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________________ 54 गुरु बल्लभ और संक्रान्ति महोत्सव रघुवीर कुमार जैन गुरू आत्माराम महाराज की सेवा में पहुंच कर असीम ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासा को उद्धृत किया और ज्ञान के विशाल कोश के गुरू चरणों में स्थिर रहकर पाने की चेष्टा प्रकट की प्रार्थना की। जिससे आत्म कल्याण हो सके। आत्मसाधना हो सके। समाज को सच्चा ज्ञान दे सके। सच्ची राह दिखा सके और भवसागर से पार हो सके। लेख क्यों लिखे जाते हैं, लेख लिखने का तात्पर्य क्या होता है, लेखों का लेख माला में क्यों पिरोया जाता है। क्यों संजोया जाता है। क्यों स्मारिकाओं में प्रकाशित किया जाता है। सिर्फ इसलिये, ताकि लेखों के माध्यम से तीर्थों (चाहे स्थावर तीर्थ हो या जंगम तीर्थ) का इतिहास एवं महिमा की तस्वीर सामने आ सके, तीर्थंकर भगवन्तों के गुणों एवं उपकारों की गाथा का बखान किया जा सके। महापुरुषों एवं उपकारी सद्गुरुओं की जीवन झांकी, उनके समाज के प्रति कृत्यों उनके सचरित्र पर प्रकाश डाला जा सके। जिससे उन द्वारा दर्शाये मार्ग पर चलने की प्रेरणा समाज को मिलती रहे, उनके विचारों से कुछ प्राप्त किया जा सके, कुछ ग्रहण किया जा सके। जैन जगत में एक ऐसे ही युग पुरुष के गुणों का प्रसार जिनका जीवन सरिता के समान आरम्भ में लघु, फिर विराट और अन्त में असीम और अनन्त हो गया, देखने में आया, पढ़ने में आया, लेखों के माध्यम से लिखने में स्तुति करने में आया। जिन्होंने समाज को नवीन दिशा, नवीन चेतना, नवीन विचार, नवीन चिन्तन और नवीन संदेशों की अनुभूति कराई। ऐसे उस युग पुरुष, महान विभूति का नाम था "विजयवल्लभ सूरीश्वर"। जिन का जन्म संवत् 1927 कार्तिक शुदी द्वितीया के पावन दिवस बड़ौदा नगरी में हुआ। माता इच्छाबाई और पिता दीपचन्द जी बालक का नाम रखा "छगन"। ने द्वितीया का चांद किस प्रकार बढ़ता पूर्णिमा की सम्पूर्ण कलाओं से विकसित ही संसार को शीतलता एवं चांदनी प्रदान करता है और रात के अंधेरे में भटके जीवों को राह दिखाता है। उसी प्रकार द्वितीया को जन्म लेकर कुमार छगन ने माता पिता के वियोग से खिन्न हो कर विश्व की क्षणभंगुरता एवं असारता को परखकर, जानकर आत्मधन की खोज में बड़ौदा में ही जैनाचार्य Jain Education International गुरू आत्मा राज जी ने बालक के ज्ञान गर्भित विचारों एवं उत्कृष्ट ज्ञान पिपासा को अपनी अंतर्दृष्टि से भांप कर संवत् 1944 में भागवती दीक्षा दे छगन का उद्धार किया और मुनि वल्लभ विजय जी महाराज के नाम की उद्घोषणा पर शास्त्राध्ययन के लिये अपनी निश्रा में आश्रय दिया। शास्त्राध्ययन एवं गुरूचरण सेवा से परिष्कृत हो वल्लभ विजय जी का जीवन साधना की भट्ठी में तप पर और निखर गया और समाज के सामने उभरने लगा। न्यायाम्भोनिधि जैनाचार्य श्री आत्मारामजी महाराज ने सुयोग्य ज्ञानवान, शुद्ध विचारक दूरदर्शी, प्रज्ञा वाले अपने प्रशिष्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी को अपना पट्टधर बना समस्त जैन जगत विशेषतया पंजाब की भूमि पर सत्य, अहिंसा, सदाचार एवं मूर्तिपूजा का बीजारोपण कर पंजाब के जैन भाइयों की रक्षा एवं उनके उद्धार के लिये प्रशस्त किया और उनके उत्थान के लिये आदेश दिया। आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने गुरू देव के आदेशों को शिशोधार्य कर समाज की स्थिति को परखने हेतु, समाज की उठी आवाज को सुनने की खातिर पंजाब, मारवाड़, राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात एवं सौराष्ट्र के ग्राम ग्राम विहार कर समाज की रीढ़ की हड्डी मध्यवर्ग पर दृष्टिपात किया For Private & Personal Use Only और जाना कि जब तक मध्यवर्ग का उद्धार न होगा जब तक इसको खाने की रोटी, पहनने को कपड़ा और रहने को मकान न होगा, समाज उन्नत नहीं हो सकेगा। इसके लिये दृढ़ संकल्प किये। आत्मानन्द जैन महासभा के माध्यम से पंजाब में बढ़ रही सामाजिक कुरीतियों की रोकथाम की जिसके अन्तर्गत मध्यवर्ग पिस रहा था। बम्बई जाकर 5 लाख की धनराशि मध्यवर्ग की सहायतार्थ एकत्र की और उनकी स्थिति को उभारा। जगह-जगह मध्यवर्ग के उत्थान के लिये प्रचार करते रहे। आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज बाल्यावस्था से ही ज्ञानोपार्जन में रुचि रखते थे। शस्त्राध्ययन कर समाज को ज्ञानप्रकाश देते हुए ज्ञान की ज्योति जलाई उनका एक ही ध्येय था कि समाज में कोई बच्चा, किशोर अनपढ़ न हो इसके लिये जीवनभर प्रयास किया। और शिक्षा प्रसार के लिये बम्बई में श्री महावीर विद्यालय, पंजाब में गुरूकुल, कालिज, एवं शिक्षालय, राजस्थान में बालाश्रम आदि जगह-जगह सरस्वती मन्दिरों की स्थापना की। इसके लिये कई कष्ट सहने पड़े। कई बाधाओं से जूझना पड़ा, "कई विरोध सामने आये। कई प्रण करने पड़े। पर अपने लक्ष्य पर डटे रहे। अपने संकल्प में पूरे उतर कर जैन यूनिवर्सिटी के लिये विचार व्यक्त किया। जैन संस्कृति को कायम रखने हेतु जगह-जगह नवीन जिन मन्दिरों का निर्माण कराया। पंजाब में जहां मूर्तिपूजा लुप्त हो चुकी थी स्थान-स्थान पर हर क्षेत्र में जिन मन्दिरों का निर्माण करा जैन समाज का कल्याण किया और प्रभु मूर्ति, प्रभु पूजा, प्रभु दर्शन में आस्था को बढ़ावा दिया। आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज ने न केवल जैन जगत का कल्याण करने हेतु देश के कोने कोने में भ्रमण किया बल्कि समस्त मानवजाति के कल्याण के लिये जनता को जगाया। www.jainelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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