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आया। सन् 1950 में इस विद्यालय में 944 छात्र थे। यह संख्या शाखा पंजाब के प्रत्येक संघ में खलने की संभावना है। कार्यान्वित करने के लिए बम्बई में श्री आत्मानंद जैन सभा की 1970 मं बढ़कर 1969 तक हो गई। यद्यपि इस विद्यालय के
स्थापना हुई। गत 40 वर्षों में इस सभा ने सराहनीय कार्य किया आसपास गाँवों एवं कस्बों में अनेक मिडिल और हाई स्कूल खुल श्री आत्मानन्द जैन महासभा, पंजाब
है। इसका मुख्य लक्ष्य है साधर्मिक उत्कर्ष। साथ ही साथ सभा ने गए हैं, फिर भी इसकी प्रतिष्ठा सर्वाधिक होने के कारण इसमें
साहित्य भी प्रकाशित किया है। प्रतिवर्ष यह आचार्य विजय विद्यार्थियों की संख्या निरन्तर बढ़ती जा रही है। विद्यालय का
वल्लभ स्वर्गारोहण दिन भी बड़े समारोह पूर्वक मनाती है। यह नवीन भवन बड़ा भव्य और आकर्षक है यह विद्यालय हरियाणा युगबीर, पंजाब केसरी आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ संस्था निरंतर अपने महान लक्ष्य की ओर अग्रसर है। सरकार द्वारा मान्य अन्यतम विद्यालय है। इसके शिक्षण स्तर से सूरीश्वर जी म, एक महान समाजसुधारवादी और दूरदर्शी प्रभावित होकर विद्यालय के प्रिंसीपल को राष्ट्रपति ने सम्मानित आचार्य थे। उन्होंने अपने शिष्य उपाध्याय श्री सोहन विजय जी भी किया है। इस प्रकार यह विद्यालय निरंतर उन्नति के पथ पर म. को आज्ञा दी थी कि पंजाब में श्रावकों का संगठन करके उन्हें श्री आत्मानंद जैन यात्री भवन. अग्रसर है। एक सूत्र में बाँध लें। इस आज्ञा को हृदय में धारण कर उपाध्याय
पालीताणा जी म. ने सन् 1921 में आत्मानन्द जैन महासभा की स्थापना की।
इसके प्रथम सभापति श्री मोतीलाल बनारसीदास निवाचित हुए श्री आत्मवल्लभ जैन पाठशाला,
पंजाब केसरी श्री विजय वल्लभ सुरीश्वरजी म. के रोम-रोम लुधियाना
गत 60 वर्षों में महासभा ने अनेक महत्वपर्ण कार्य किये हैं. में पंजाब बसा हुआ था। उनकी यह हार्दिक भावना थी कि पंजाब जहाँ इसने समाज में संगठन की भावना जागत की तथा शिक्षा के का स्थान भारत के जैन समाज में गौरवपूर्ण हो। इसके लिये
प्रचार का व जैन धर्म के प्रचार की ओर ध्यान दिया, वहाँ महासभा उन्होंने अनेक प्रयत्न किए।इसी विचार से उन्होंने पालीताणा में युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी म. ने से सम्बन्धित अनेक क्षेत्रों में कई शिक्षण संस्थाओं की स्थापना की यात्रियों, विशषकर पजा
मालभित बोलब म
यात्रियों, विशेषकर पंजाबी यात्रियों की होने वाली कठिनाईयों का धार्मिक शिक्षा एवं संस्कार के लिए जगह-जगह जैन पाठशालाएँ गई। साधनहीन युवकों के लिए सोहन विजय जी उद्योगगृह खोला अनुभव किया और खुलवायी थीं। इन्हीं पाठशालाओं की एक जीवन्त श्रृंखला श्री गया।
पालीताणा में एक धर्मशाला बनाने की प्रेरणा दी। उन्हीं की आत्मवल्लभ जैन पाठशाला, लुधियाना है। इसकी स्थापना सन् साहित्यिक क्षेत्र में भी महासभा ने पर्याप्त साहित्य प्रकाशित
प्रेरणा का फल है कि पालीताणा में "श्री आत्मानंद जैन यात्री 1951 में हुई थी। तभी से यह पाठशाला गुरुदेव की कृपा से किया है। गत 32 वर्षों से महासभा अपना स्वतंत्र मासिक पत्र
भवन" (पंजाबी धर्मशाला) के नाम से एक प्रसिद्ध धर्मशाला कार्यकत्ताओं के परिश्रम से एवं श्रीसंघ के पूर्ण सहयोग से अपने "विजयानन्द' के नाम से प्रकाशित कर रही है।
विद्यमान है जिसमें यात्रियों को समस्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं और लक्ष्य की पूर्ति में अग्रसर है। श्रीसंघ की बालिकाओं में भी धार्मिक
जिसमें कोई भी पंजाबी यात्री ठहरकर गौरव अनुभव करता है।
सन् 1988 में इसका अधिवेशन आचार्य श्रीमद् विजयेन्द्र, शिक्षा देने के लिए श्री आत्मवल्लभ जैन कन्या पाठशाला भी इसी
दिन सूरीश्वरजी म. की निश्रा में हस्तिनापुर में हुआ। इस संस्था के अंतर्गत सुचारु रूप से चल रही है।
अधिवेशन में संरक्षक सुप्रसिद्ध उद्योगपति श्री अभयकुमार श्री पार्श्वनाथ उम्मेद जैन बालाश्रम ____ पाठशाला में दी जाने वाली शिक्षा का उद्देश्य समाज के ओसवाल, महामन्त्री श्री सिकन्दरलाल जैन निर्वाचित हुए। इस नन्हें मन्नों के कोमलकांत हदय में धर्म के प्रति अटल श्रद्धा विवेक, अधिवेशन के बाद महासभा नवीन उत्साह के साथ कार्यरत हुई नम्रता, परोपकार, सदाचार, धर्म प्रेम निःस्वार्थ सेवा और अपनी है।
युगवीर आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वर जी म. की आत्मा के गुणों का विकास करने में प्रयत्नशील बनाना है।
प्रेरणा से उन्हीं के शिष्य आचार्य प्रवर श्री ललित सूरि जी म.ने
पंजाब का प्रत्येक मूर्तिपूजक संघ इससे सम्बद्ध है। पाठशाला में बच्चों को जैन तत्वज्ञान, जैन खगोल, जैन
सन् 1932 में श्री पार्श्वनाथ उम्मेद जैन बालाश्रम की स्थापना भूगोल का ज्ञान कराया जाता है। तत्व ज्ञान की नियमित रूप से
उम्मेदपुर में की। जब बालाश्रम का श्रीगणेश हुआ तो मात्र 19 परीक्षाएं होती हैं। अच्छे अंक प्राप्त करने पर विद्यार्थी को श्री आत्मानंद जैन सभा.बम्बई
विद्यार्थी थे। धीरे-धीरे यह संस्था 140 तक पहुँची। पारितोषिक प्रदान किए जाते हैं। प्रतिवर्ष इसका वार्षिक उत्सव
सन् 1943 में भयंकर बाढ़ के कारण बालाश्रम क्षतिग्रस्त हो बड़े ही समारोह पूर्वक मनाया जाता है। पाठशाला की ओर से
गया। कई वर्षों के बाद इसका पुनरोद्धार हुआ। गुरुदेवों के धार्मिक पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं। इस प्रकार यह पाठशाला आचार्य श्रीमद् विजय वल्लभ सूरीश्वरजी म. ने साधर्मिक आशीर्वाद से इस समय यह बालाश्रम सुचारू रूप से चल रहा है आचार्य विजय बल्लभ के विचारों का साकार रूप है। इसकी बन्धु के उत्थान का उपदेश दिया था। उनके इस आदेश को और दिन-प्रतिदिन प्रगतिपथ पर अग्रसर हो रहा है। ww.jaipelibrary.org