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________________ आचार्य विजय वल्लभ अखण्ड बाल ब्रह्मचारी थे। संयम समाज उस के लिए प्राण न्यौछावर करेगा। विजय वल्लभ का अधिक प्रस्तुत और सामयिक हैं। वे दीर्घदर्शी थे। आगत पचास और चारित्र की साक्षात प्रतिमा थे। उनमें अद्भुत आत्म बल, विशाल भक्त वर्ग उनके लिए प्राण न्यौछावर करता था। चाहे वर्षों में किन कार्यों और विचारों का प्रचलन होगा वह उनकी पैनी गुजराती हो, चाहे राजस्थानी। पंजाब की भूमि तो वैसे भी समर्पण दीर्घदृष्टि ने देख लिया था। वह समय आ गया है तो वे विचलित न होते थे। बम को भी पानी बना देने की ताकत की भूमि है। पुरानी पीढ़ी आचार्य विजय वल्लभ को समर्पित थी। उन्होंने संयम से प्राप्त की थी। चारित्र के प्रभाव से उन्हें वचन और हैं' में बहुत अन्तर है नयी पीढ़ी में संस्कार, श्रद्धा और भक्ति वल्लभ शासन में कार्यरत मुनिगण और गुरु भक्तों का यह सिद्धि मिली थी। जो वे कह देतेवहहोकर रहता था। जिसको में स्पष्ट अंतर दृष्टिपात होता है। श्रद्धा और भक्ति की रिक्तता से कर्तव्य हो जाता है कि वे वल्लभ शासन को एक सुगठित और आशीर्वाद मिलता था वह निहाल हो जाता था। भरी नयी पीढ़ी को संस्कार निष्ठ बनाना अत्यन्त आवश्यक है। अद्धितीय शासन बनायें। गुरु वल्लभ द्वारा संस्थापित संस्थाओं, युग परिवर्तन की दिशा की ओर तेजी से दौड़ रहा है। गुरु विचारों और कार्यों को हजार गुण आगे बढ़ाया जाए। गुरु भक्तों विजय वल्लभ और गुरु भक्तों की नयी पीढ़ी भक्तों की पुरानी पीढ़ी को चाहिए कि वह नयी पीढ़ी को सुसंस्कारों का बच्चा-बच्चा वल्लभ शासन को समर्पित हो। वल्लभ शासन से सिंचित कर सही राह दिखाएं तभी गुरु के ऋण से वे उऋण हो के प्रत्येक सदस्य में समर्पण और एकता जीवंत होनी चाहिए। संसार में कुछ विभूतियां ऐसी होती हैं जिनका नाम और काम सकते हैं और यही गुरुदेव के प्रति सच्चा तर्पण होगा। समर्पण और एकता से युगीन कार्य किए जा सकते हैं। आज दिल्ली कालजयी हो जाता है। ऐसी ही एक विभूति आचार्य विजय इस प्रकार आचार्य विजय वल्लभ का व्यक्तित्व एवं कृतित्व में वल्लभ स्मारक पर वल्लभ शासन की नजर टिकी हुई है। वल्लभ हैं। उनका नाम और कार्य कालजयी है। विजय वललभ ने सर्वदेशीय और बहु आयामी था। उन्हें गए आज तीन दशक से उससे कई आशाएँ हैं वल्लभ शासन को। उनके विचारों और एक नवीनसमाजका प्रयत्न किया जोव्यक्ति समाज का गुरु होऔर अधिक समय बीत चुका है। पर उनके कार्य और विचार जीवन्त कार्यों का अधिकाधिक प्रचार और प्रसार ही उनके लिए हमारा समाज के लिए निस्वार्थ भाव से कुछ कार्य करेगा, तो स्वभावतः हैं और रहेंगे। वे तीस वर्ष पहले जितने प्रस्तुत थे आज उस से भी सच्चा स्मारक होगा। . सबसे पहले समाज में सुगन्ध फैलाने से पहले अपने में सुगन्ध भरो। दूसरों को सुधारने से पहले स्वयं को सुधारो। नव युवकों से अपना चरित्र बल विकसित करो। राष्ट्र के सुनागरिक बनो। राष्ट्र और समाज तुम्हें आशाभरी दृष्टि से देख रहा है। देशप्रेम, मानवता, प्राणिमात्र के लिये मैत्रीभाव रखते हए अच्छे कामों की सगन्ध संसार में फैलाओ। सच्चासह धर्मी वात्सल्य साधर्मिक भाई को भरपेट भोजन करा देना ही साधर्मिक वात्सल्य नहीं है, पर उसे पांवों पर खड़ा करना, उसके सभी प्रकार के कष्टों को दूर करना ही सच्चा साधर्मिक वात्सल्य है। -विजय वल्लभ सूरि विजय वल्लभ आचार्य वल्लभ सूरि जी के जीवन की मुझ पर गहरी छाप पड़ी है। जैनों की दानवृत्ति को आचार्य श्री ने शिक्षा-क्षेत्रों की ओर मोड़ दिया। उन्होंने जाति और धर्म को भेदभाव नहीं माना। उनकी समाज-सुधार की प्रवृत्ति अत्यन्त ही प्रगतिशील थी। इन्होंने खादी के वस्त्र पहने और दारूबंदी के कार्यक्रम में पूर्ण सहाकार दिया। in Education in -श्री मोरार जी देसाईay.org for PrivateBPurnionalDHEcons
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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