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________________ केवल राजा ही उनका प्रवचन नहीं सुनते अपितु उनकी रानियां गुलामी से मुक्त होने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहा था। स्नेह एवं सद्भाव के उपदेश दिए। उनके प्रवचन में हिन्दू, भी पीछे न रहतीं। बीकानेर की महारानीने अपने प्राईवेट सेकेटरी नयी-नयी सामाजिक संस्थाएं सुधार का झंडा लेकर अस्तित्व में मुस्लिम, सिख आदि विविध धर्म के लोग समान रूप से आते रहते से कुछ रुपये श्रीफल और मेवे मिठाई देकर विजय बल्लभ को आ रही थीं। देश और समाज में हो रहे इस प्रकार के व्यापक थे। लाहौर में जब उन का प्रवेश होने वाला था, उसके पहले दिन आमंत्रित किया था प्रवचन करने के लिए। विजय वल्लभ ने भेंट परिवर्तन से स्वभावतः विजय वल्लभ प्रभावित हुए। जिनके ही हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो गए। जिस दिन प्रवेश होने वाला था। धन्यवाद पूर्वक लौटा दी। जाने के लिए मना कर दिया। रानी विचार की खिड़कियां खुली हुई हैं। जो समाज धर्म, और देश के उस दिन भी उसकी पुनरावृत्ति होने वाली थी। उसके लिए दोनों के अत्यन्त आग्रह पर यहां के गंगा थियेटर में प्रवचन रखा गया। हित के लिए चिंतित हों। जो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के गटों में जोरों से तैयारी हो रही थी।पर जैसे ही विजय वल्लभ का रानी और यहां के सेठ साहकारों की पत्नियां भी आयीं। राजस्थान अध्येता हों। वे इतने गहरे और व्यापक परिवेश से स्वभावतः नगर प्रवेश हुआ और सार्वजनिक प्रवचन हुए तो वे आश्चर्य की प्रथा के अनुसार बीच में पर्दा रखा गया और प्रवचन प्रारम्भ प्रभावित होंगे ही। . जनक रूप से गायब हो गए। जो कल एक दूसरे के खून के प्यासे हुआ। विजय वल्लभ के प्रवचन से यहां की रानी इतनी प्रभावित विजय वल्लभ के प्रवचनों में धर्म, देश और समाज की थे वे ही विजय वल्लभ के प्रवचन के बाद गले लगते हुए हुई कि उसने अपने बगीचे का नाम विजय वल्लभ बाग' रखा पराधीन भारत की परिस्थितियों का हबह चित्रण मिलता है। देश दिखाई दिए। कई मुसलमान उनके भक्त हा गए, कई मुस्लिम और जब तक वे बीकानेर में रहे प्रतिदिन प्राइवेट सेकेट्री से सकट्ररास परतन्त्र था। महात्मा गांधी की स्वतन्त्रता की ज्योति जल रही समाजों ने उन्हें अभिनन्दन पत्र भेंट दिए। सुखशाता (कुशल क्षेम) के समाचार पुछवाती रहीं। यह था थी। स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग और विदेशी चीजों का विरोध उनकी वक्तृत्व कला का प्रभाव। जोरों पर था। उस समय विजय वल्लभ ने मलमल के कपड़े उतार इसी प्रकार जैन समाज को भी उन्होंने नये आयाम दिए। उस विजय वल्लभ का सामाजिक दृष्टिकोण फैंके और खुरदरी खादी के मोटे कपड़े परिधान करने प्रारम्भ समय जैन समाज में शिक्षण का अभाव था। उन्होंने शिक्षण आचार्य श्रीमद विजय वल्लभ सरीश्वरजी महाराज को किए। उन्होंने प्रवचनों में इस बात की चर्चा की और महात्मा संस्थाएं स्थापित की। गरीब जैनों की बड़ी दुर्दशा थी। उसके आचार्य श्रीमद् विजयानन्द सूरीश्वर जी महाराज ने आधुनिक गांधी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि गांधी जी हिन्दुस्तान लिए फंड इकट्ठे किए। झगड़े और आपसी कलहों से समाज दृष्टि दी थी। विजय वल्लभ का सामाजिक दृष्टिकोण सधारवादी की स्वतन्त्रता के लिए इतने कष्ट उठा रहे हैं, इतना त्याग कर रहे खोखला हो रहा था उसे मिटाने का प्रयत्न किया। अनेक रूढ़ियां था। न तो उन्होंने प्राचीन रूढ़ियों को सर्वथा नकारा है न उसे हैं, इतना परिश्रम कर रहे हैं तो हमारा भी कर्तव्य है कि उनके जो समाज की प्रगति में बाधक बनती थीं उसे दूर करने का यथा पूर्णरूप से स्वीकारा ही। जिन रूढ़ियों को वे उचित, न्याय संगत कार्य में हाथ बटाएँ। हजारों लोग जेलों में जा रहे हों और तुम लोग सम्भव प्रयत्न किया। वे समाज को प्रगतिशील बनाना चाहते थे। एवं धर्म के अनुरूप समझते थे उन्हें स्वीकार करते थे और जिन बंगलों में ऐश करो, विदेशी कपड़े पहन कर अपनी सम्पन्नता का समाज में कोई अशिक्षित न हो, कोई निर्धन न हो, कोई रोगी न रूढ़ियों से न तो काई धर्म को लाभ होता है न समाज को जो केवल प्रदर्शन करो, यह सर्वथा अनुचित एवं अन्याय है। कहना न होगा हो, कोई दःखी न हो, कोई अनाथ न हो, कोई नंगा न हो। सभी रूढ़ि बनकर रह गयी हैं, जिनके पालन एवं प्रचलन से किसी भी कि विजय वल्लभ की प्रेरणा से हजारों लोगों ने खादी पहनना चालू शिक्षित हों। सभी सम्पन्न हों। संक्षेप में इतना कहा जा सकता है प्रकार का लाभ नहीं होता उन्हें अस्वीकार करते थे। कर दिया था। कि समाज को वे जीवंत, प्रगतिशील एवं उन्नतिशील देखना विजय वल्लभ ने ऐसे बहुत से कार्य किए हैं जो लोगों की दृष्टि चाहते थे। विजय बल्लभ का सामाजिक दृष्टिकोण सुधारवादी महामना मदन मोहन मालवीय और आचार्य विजय बल्लभ था। वे परिवर्तनशील समाज के साथ चलना धर्म मानते थे। में क्रांतिकारी हैं। रूढ़ि तोड़ कर या रूढ़ि से हटकर उन्होंने जो भी का पत्र व्यवहार होता था। उस समय साम्प्रदायिक दंगे हो रहे थे। कार्य किए वे सभी नियम एवं परम्परा में रह कर किए। उन्होंने विजय वल्लभ ने एक पत्र में लिखा था कि आजकल जो भगवान महावीर की उज्ज्वल श्रमण परम्परा के अनुरूप ही सभी हिन्दू-मुस्लिम दंगे हो रहे हैं उसके पीछे राजनीति का विजय वल्लभ और रूढ़िवादी आचार्य कार्य किए। उन कार्यों के पीछे अगर कोई उनका उद्देश्य था तो शत-प्रतिशत हाथ है। मैं गांवों और शहरों में पैदल घूमता है। यह कि प्रत्येक जैनी सुखी, सम्पन्न और विद्वान हो। उन्होंने गांवों में जहां राजनीति की। आचार्य विजय वल्लभ बीसवीं सदी के युगवीर आचार्य थे। तत्कालीन समाज को समझा। उसे किस चीज की आवश्यकता 'यगवीर' शब्द की व्याख्या गुजराती के सुप्रसिद्ध लेखक, परम है? समाज क्या चाहता है? उन्होंने समाज का मनोवैज्ञानिक हवा नहीं पहुंची है वहां दोनों के बीच बड़ा ही सौहार्द्र, स्नेह एवं गुरु भक्त स्वर्गीय रतिलाल दीपचन्द देसाई ने इस प्रकार की है अध्ययन किया, तब उन्हें पता चला कि समाज सधार चाहता है। सद्भाव का वातावरण है। साम्प्रदायिक दंगे असल में राजनीतिक 'यगवीर उसे कहा जाता है जो यग को समय को पहचानता है। समाज को नये युग की हवा लग गई थी समाज को सम्यक् मोड़ दंगे हैं। अगर साम्प्रदायिक दंगे बन्द करने हों तो राजनीति के युग के साथ चलता है। यग के साथ जी कर वह युग को जीत लेता देने की अत्यन्त आवश्यकता विजय वल्लभ ने समझी। वह समय प्रभाव को दूर किया जाए। सद्भाव एवं सौहार्द्र का प्रचार, प्रसार है इस लिए उसे युगवीर कहा जाता है। हर कोई यगवीर नहीं बन ही ऐसा था कि प्रत्येक भारतीय अपने धर्म, समाज एवं देश को एवं प्रभाव होना चाहिए। सकता। रूढ़ियों के साथ जीना। रूढ़िवादी बने रहना। लकीर का आगे लाने के लिए भगीरथ प्रयत्न करता था। भारत अंग्रेजों की विजय वल्लभ ने संकीर्ण साम्प्रदायिकता से ऊपर उठकर फकीर बनना। यगवीरता नहीं है। Jain Education www.jainelibrary.om
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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