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________________ श्री जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स -राजकुमार जैन, मानव की विचारशीलता एवं विवेक उसे सदैव विकास के कान्फ्रेन्स की स्थापना में सर्वाधिक योगदान स्वनामधन्य श्री साथ-साथ आत्म निरीक्षण के लिए भी प्रेरित करता है परिणामतः गुलाबचन्द्र जी ढढ्डा एम.ए. का था। कान्फ्रेन्स ने धार्मिक तथा व्यावहारिक शिक्षा के प्रसार में यथा मानव त्रुटियों को दूर करता, समस्याओं से जूझता उत्तरोत्तर संभव कार्य करते हुए जैन साहित्य, तत्वज्ञान और संस्कृति के उद्देश्य :- इस संस्था के उद्देश्य निम्नलिखित हैं:प्रगति करता है और यही प्रगति जब व्यक्ति से बढ़कर सामूहिक उच्च अध्ययन-संशोधन के लिए बनारस हिन्द विश्वविद्यालय में (1) समाज का उत्थान रूप धारण करती है तो समाज की उन्नति होती है। सहकार, जैन चेयर की स्थापना का अति महत्वपूर्ण कार्य किया था। (2) तीर्थ रक्षा यदव्यवहार, सहानभति, सेवा और समर्पण ये सामाजिक एकता (3) धार्मिक-व्यावहारिक शिक्षण साहित्य प्रकाशन के क्षेत्र में संस्था ने जैन डायरेक्टरी, जैन के मूल तत्व हैं जिस समाज में इन तत्वों का अवमूल्यन हो जाता है (4) जैन साहित्य का प्रचार ग्रन्थावली जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास, जैन गुर्जर कवियों, उसकी उन्नति रुक जाती है और समाज में इन आधारभूत तत्वों (5) सामाजिक सुधार सन्मति तर्क का अंग्रेजी अनुवाद इत्यादि महत्वपूर्ण ग्रन्थों का पर निरन्तर विचार होता रहता है। यदि किसी प्रकार की समस्या (6) मध्यम व गरीब भाई-बहिनों का उत्कर्ष प्रकाशन कर साहित्य प्रचार किया। संस्था की ओर से "जैन आ रही हो तो सुझाब ढूंढ़े जाते है और साथ ही कैसे आगे बढ़ें कैसे कान्फ्रेन्स हरेल्ड व जैनयुग" नाम के मुख्य पत्र भी प्रकाशित हुए। (7) संगठन नए मार्ग खोजे जाएं इस पर एक साथ मिल बैठकरविचार विमर्श "जैन युग" ने जैन विद्या के संशोधन से संबंधित निबन्ध किया जाता है और किसी निष्कर्ष पर पहुंच कर उसे क्रियान्वित यह संस्था उपरोक्त उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सतत प्रकाशित कर जैनेतर विद्वानों में भी प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। किया जाता है तो वह समाज अवश्यमेव संगठित होकर सफलता उनकी पूर्ति के लिए प्रत्यनशील रही है। परम पूज्य युगवीर कुछ साल पूर्व की गई 'दी बर्द्धमान को-आपरेटिव बैंक की आचार्य विजय वल्लभ सूरीश्वर जी महाराज साहब की नवयुगीन प्राप्त करता है। देश में विभिन्न सामाजिक संस्थाओं की स्थापना क्रान्तिकारी विचारधारा कान्फ्रेन्स के लिए वरदान सिद्ध हुई थी। स्थापना मध्यम वर्ग की सहायता करने की दिशा में छोटा सा के पीछे यही कारण है। समाज की कई रुढ़ियों और गलत परम्पराओं को दूर करने एवं किन्तु रचनात्मक ठोस कदम हैं। स्थापना :- "श्री जैन श्वेताम्बर कान्फ्रेन्स" नामक मध्यम व गरीब भाई-बहिनों की उन्नति में श्रद्धेय गरुदेव के जीव हिंसा के विरुद्ध भी कान्फ्रेन्स की ओर से समय-समय सामाजिक संस्था की स्थापना भी जैन समाज के उत्कर्ष के लिए प्रेरक प्रवचन एवं आशीर्वाद अत्यन्त उपयोगी थे। वे मध्यम पर विरोध किया गया और सफलता भी मिली। चिकित्सा के क्षेत्र सबमें भ्रातृभाव एवं सहयोग बढ़ाने के लिए की गई थी। समाज के पथप्रदर्शक साधवृन्द एवं शुभचिन्तक अग्रणी गृहस्थों की जागृति भोजन तक ही सीमित नहीं रखना चाहते थे अपितु उनके प्रति ति भोजन तक ही सीमित नहीं रखना चाहते थे अपित उनके प्रति बड़ौदा में वर्तमान गच्छाधिपति परमारक्षत्रियोद्वारक आचार्य के कारण इस संस्था की स्थापना का कार्य सम्भव हो सका था एवं आन्तरिक करुणाभाव और परस्पर वात्सल्यपूर्ण व्यवहार से श्रीमद् विजय इन्द्र दिन्न सरि जी म.सा. की प्रेरणा से निर्मित -संस्था का प्रथम अधिवेशन राजस्थान के फलौदी तीर्थ में विक्रम जोड़ना चाहते थे। यही कारण है कि "सेवा और सहाय" को विजय वल्लभ हॉस्पिटल एवं श्री जे.आर. शाह के अथक प्रयास से सं. 1958 भाद्रपद कृष्णा अष्टमी तदनुसार दिनांक 25-9-1902 सर्वाधिक महत्वपर्ण उद्देश्य मानकर कान्फ्रेन्स ने उसे मोनोग्राम निर्मित सूरत स्थित "महावीर जनरल हॉस्पीटल जैन समाज के कोश्रीमान् बख्तावरमल जी मेहता की अध्यक्षता में हुआ था। में अंकित किया है। गौरव हैं। dan Education international For Pre & Personal Use Only www.jainelibrary.om
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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