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________________ समाज समाज उद्यान है, नर-नारी पुष्प-पौधे हैं। इस समाजोद्यान के बागवान हैं साधु-संत एवं समाज के अग्रणी। यदि इसे सुजल से नहीं सींचा गया और आवश्यकतानुसार पेड़-पौधों की कांट-छांट और देखभाल नहीं की गई तो उद्यान कुरूप होकर उजड़ जाएगा। चरित्र प्रतिनिधि लिया जाता है, स्व० लाला सुन्दर लाल जी बहुत वर्षों हीरों की कीमत उनकी चमक से होती है और मनष्य की कीमत उसके चरित्र से। तकप्रतिनिधित्वकरते रहे हैं और इस समयश्री राजकुमार जी इस महान् दायित्व को निभा रहे हैं। सभा के तत्वावधान में मानवता समय-समय पर विशाल और भव्य तीर्थ-यात्रा संघ की स्पैशल ट्रेन की व्यवस्था यहां से हुई। 1977 में श्री सम्मेद शिखर तीर्थ मानवता अखंड है, उसमें भेद भाव नहीं, ऊंच-नीच, धनवान, गरीब, तथा काले-गोरे का भेद यात्रा संघ का प्रबन्ध भी इस सभा ने किया। दोनों बार लगभग | दृष्टिकोण से होता है। 900-900 भाई-बहिनों ने तीर्थ यात्रा का लाभ लिया। हस्तिनापुर तीर्थ के लिए तो प्रतिवर्ष चार-पांच बार श्री संघ सामूहिक यात्रार्थ ज्ञान जाता है। इसके अतिरिक्त आचार्य भगवंत जहां भी विराजमान ज्ञान दीपक है, प्रेम उसका प्रकाश। ज्ञान और प्रेमयुक्त जीवन में जो ज्योति जलती है उसकी चमक होते हैं पyषणोपरांत श्री संघ क्षमापणा हेतु जाता है। सरलता है। श्री हस्तिनापुर तीर्थ दिल्ली के काफ़ी निकट होने के कारण श्री संघ की विशेष श्रद्धा इस तीर्थ के प्रति समर्पित है। तीर्थ के महावीर का संदेश लिए भाई-बहन यथाशक्ति द्रव्यदान देकर पुण्योपार्जन करते रहते हैं। भगवान महावीर ने अनेकान्तवाद का संदेश दिया था। उनका यह संदेश आज के खंडित, बिखरे हुए श्रमण भगवान महावीर स्वामी की 25वीं निर्वाण शताब्दी और दुःखी विश्व के लिए अमृतांजन है। धमधाम में राजधानी में मनाई गयी। श्रीसंघ ने इस अवसर पर विशिष्ट भूमिका निभाई। आचार्य विजय समुद्र सूरि जी महाराज हमें करना हैं का ऐतिहासिक नगरप्रवेश करवाया गया और शताब्दी संबंधी | हमें शोषणहीन समाज की रचना करनी है, जिसमें कोई भूखा प्यासा नहीं रहने पाये। तुम्हारी लक्ष्मी में कार्यक्रमों में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया गया। सभा में सारे पंजाब और पाकिस्तान से प्राप्त ग्रंथभण्डारों का संकलन है और राष्ट्र उनका भी भाग है। सेवा के लिए श्रीसंघ ने सदैव तन-मन-धन से अपना सहयोग दिया है। विदेशी आक्रमण हो, अकाल हो या अन्य प्राकृतिक विपत्ति, 'शुद्धाचरण सभी समय श्री संघ ने मुक्त हस्त से दिल खोलकर दान दिया है। शुद्धाचरण द्वारा जीवन को मंदिर के समान पवित्र बनाओ। पवित्र मंदिर में ही भगवान बिराजमान श्री आत्मानन्द जैन महासभा ने जब वल्लभ स्मारक के निर्माण का कार्यभार दिल्ली श्रीसंघ को संभाला तब श्री | होंगे। आत्मानन्द जैन सभा दिल्ली ने आगे आकर इस कार्य को सम्पन्न -विजय वल्लभ सूरि करने का संकल्प किया। dan Education International For Private & Penggal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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