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________________ डोम का निर्माण जैन स्थापत्य कला का एक उत्कृष्ट जिवन्त मुंह बोलती प्रतिमा रंगमंडप की पश्चिम दिशा में जिन श्री वासुपूज्य प्रभु का चर्तुमुख जिन-प्रासाद उदाहरण है जो सबको आश्चर्यचकित करता है। इसके लिये मंदिर में विराजमान जगवल्लभ पार्श्वनाथ प्रभु प्रतिमा की आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी शिक्षण संस्थाओं के पत्थरों की शिलाओं के गोलाई में 24 थर लगाये गये हैं जिनको छत्रछाया में एक भव्य पेडेस्टल पर सुंदर और कलात्मक मारबल निर्माण के साथ-साथ संस्कार बीज डालने के लिये जिन मंदिरों की पद्मशिला से स्थिर किया गया है प्रत्येक थर में 52 शिलायें हैं। के सिंहासन पर प्रतिष्ठित की जायेगी। यह प्रतिमा गुजरात के स्थापना भी आवश्यक मानते थे। उनके आदर्शों के अनुरूप सबसे पहले थर की प्रत्येक शिला 30x21" x 19" साईज की प्रसिद्ध मूर्ति शिल्पकार श्री कान्तिभाई पटेल द्वारा निर्मित की गई स्मारक भवन में ही पश्चिम भाग में (गुरु वल्लभ प्रतिमा पेडेस्टल है। जैसे-जैसे डोम की गोलाई उठती है वैसे-वैसे शिला की साईज है। । के पीछे) एक भव्य, कलात्मक तथा छोटा परंतु सुंदर चर्तुमुख छोटी होती जाती है। डोम के 12वें थर की ओर पद्मशिला की मंदिर का निर्माण किया गया हैं। मंदिर काक्षेत्रफल1515 व. फुट कारीगरी डोम का मुख्य आकर्षण है। पेडेस्टल के ऊपर डोल के साथ ही एक अत्यन्त आकर्षक बेसमेन्ट में चारों कोनों में जो चार कक्ष बने हैं उसी के ऊपर कमान का निर्माण किया गया है जो भव्यता प्रदान करती है। इस कमान पर सुंदर बेल की खुदाई की गई है। पेडेस्टल की फ्लोरिंग इस फ्लोर पर भी उसी साइज के चारों कक्षों का निर्माण किया इस जिनालय का शिलान्यास प.पूज्य साध्वी श्री मृगावती जी और उसके स्टेप्स गुलाबी रंग के संदर मकराना मारबल में । की शुभ निथा में ता. 21-4-1980 के दिन उदार दिल, परम गया है। निर्मित होगा। गरुभक्त और प्रसिद्ध उद्योगपति स्व. सेठ भोगीलाल लहेरचंद के इस भवन को फ्लोरिंग, तीनों तरफ की सीढ़ियों समेत परिवार के सदस्यों के वरद हस्तों से सम्पन्न हुआ था। मारबल की होगी। स्मारक भवन के मुख्य डोम, चार कक्षों के डोम और यह शिलान्यास स्मारक भवन के बेसमेन्ट के फ्लोर से 10 प्रवेशद्वार के कोल-काचला वाली डिजाइन के डोम के ऊपर फुट नीचे किया गया था। गर्भगृह के लिये शिलान्यास की सतह से गुरु वल्लभ प्रतिमा पेंडेस्टल जैन स्थापत्य कलानुसार सुंदर समारणों का निर्माण जो समस्त 42-5" की ऊँचाई तक ठोस ईंटों की चिनाई की गई है। यह जिस चरित्र नायक की याद में यह भव्य स्मारक का निर्माण निर्माण कार्य को भव्यता और सौम्यता प्रदान करेगें। सामरणों गर्भगृह का तल स्मारक के रंगमंडप के तल से 18-5" की ऊँचाई हो रहा है उस गुरु वल्लभ की 45" की सफेद बेदाग आरस की सहित भवन में दिखाया गया है। पर है। गर्भगृह के उत्तर और दक्षिण तरफ दो रंगमंडपों का निर्माण किया गया है। प्रत्येक की साईज 19-1" x 22-2" है। गर्भगृह 15-11" x 15-11" का है। प्रभु परिक्रमा के लिये दोनों रंगमंडपों को 3-0" चड़े सुंदर वरन्द्राओं से जोड़ा गया है। गर्भग्रह में जैनशिल्प शास्त्रानुसार आरस के पबासन पर 4 गदियाँ निर्मित की गई है जिन पर जैन विधिविधानुसार शासन देव-देवी आदि की मूतियाँ बनाई गई हैं। इन गद्दीयों पर 35" साईज की मुखमुद्रा वाली चार तीर्थंकरों की प्रतिमायें विराजमान की गई हैं। जिनका क्रम इस प्रकार हैं: दक्षिणाभिमुख - मुलनायक श्री वासुपूज्य प्रभु पूर्वाभिमुख - श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ प्रभु उत्तराभिमुख - श्री आदीश्वर प्रभु पश्चिमाभिमुख - मुनि श्री सवत स्वामी प्रभु चर्तमुख गर्भगृह में चारों प्रतिमाओं के सामने चार प्रवेश द्वार । बनाये गये हैं जिनकी कारीगरीदिलवाड़ा के मंदिरों की प्रतिरूप है। प्रतिमाओं के पीछे सुंदर भामंडल बनाये गये हैं जिन पर सुनहरी वर्क में अति आकर्षक खुदाई की गई है। प्रतिमाओं के ऊपर आरस के छत्र भी बनाये गये हैं। JainEducation international ForPrivateS.PermanelUCDnly. www
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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