________________
प्रकाशकीय
जैनाचार्य श्री विजयानंद सूरि (श्री आत्माराम जी महाराज) के सयोग्य शिष्य और पट्टधर आचार्य श्री विजय वल्लभ सरि जी ने गरुदेव से आदेश और आशीवाद प्राप्त कर जैन-शासन और मानव-कल्याण के लिए जो अपर्व कार्य सम्पन्न किए, सर्वविदित हैं। उनकी कीर्ति को चिरस्थायी और चिरस्मरणीय बनाने के लिये दिल्ली में श्री विजय वल्लभ स्मारक की कल्पना साकार हुई। यह स्मारक आचार्य श्री के गौरव के अनुरूप बने, इसका विशेष ध्यान रखा गया। कहने की आवश्यकता नहीं कि यह स्मारक आकाश से वार्तालाप कर रहा है और आभा तथा उत्तुंगता में नगाधिराज हिमालय का उपमेय बन गया है।
श्री विजय वल्लभ स्मारक का अंजनशलाका-प्रतिष्ठा, महोत्सव आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरि, की निश्रा में वसंतपंचमी तदनुसार दिनांक 10.2.89 को सम्पन्न हो रहा है। स्मारक के कर्णधारों ने इस अवसर पर आचार्य श्री विजय वल्लभ सूरि की कीर्ति और उनके गरिमामय, अद्वितीय स्मारक के उपयक्त "आत्म-वल्लभ" स्मारिका प्रकाशित की, जिसे पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करते हए हमें अपार हर्ष हो रहा है।
प्रकाशन के पूर्व स्मारिका-समिति के सदस्य समय की कमी और कार्य के आधिक्य के कारण व्यग्र थे कि यह महान कार्य कैसे संभव होगा। कित् गुरु वल्लभ के आशीर्वाद और गुरुजनों की कृपा तथा सहयोगियों के अथक प्रयास से यह असम्भव कार्य आसानी से संभव हो गया।
स्मारिका की सफलता के लिये आचार्य श्री विजय इंद्रदिच सूरि जी का आशीर्वाद तो हमें प्राप्त ही था, आप श्री ने विभिन्न समितियों के लिए सुयोग्य और अनुभवी सदस्यों का नामांकन कर हमारा मार्ग पूर्णतः प्रशस्त कर दिया।
स्मारिका के संपादक-द्वय गणिवर्य श्री जगच्चन्द्र विजय और गणिवर्य श्री नित्यानंद विजय के नाम का आकर्षण स्मारिका के लिये वरदान सिद्ध हुआ। विशेष कर गणिवर्य श्री जगच्चन्द्र विजय जी ने अहर्निश सहायक संपादकों, साज-सज्जाकारों, परामर्शदाताओं, स्मारक-समिति के सदस्यों, विज्ञापन-प्रतिनिधियों एवं कार्य-समिति के सदस्यों का बहुमूल्य मार्ग-दर्शन किया जिससे "आत्मवल्लभ" को आकर्षक और उपयोगी बनाने में हमें आशातीत सफलता मिली।
बिना किसी का नामोल्लेख किए हम उन सभी सहयोगियों, सहकर्मियों और विज्ञापन-दाताओं के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करते हैं जिन्होंने अत्यन्त मनोयोगपूर्वक स्मारिका-प्रकाशन में अपना बहमुल्य योगदान प्रदान किया।
अन्त में सहृदय पाठकों से निवेदन है कि त्रुटियों की ओर ध्यान न देते हुए इसे संदर्भ-ग्रंथ के रूप में पढ़कर ज्ञान-वर्धन करें।
नरेन्द्र प्रकाश जैन सुदर्शन कुमार जैन you
For Private Female Only