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________________ वल्लभ और वल्लभ स्मारक पाकिस्तान के असहाय निराधार - स्थिति में आए जैन एवं शिक्षा की सेवा कर रहे हैं। अजैन भाइयों की सहायता के लिए आपने बीकानेर में बड़े अम्बाला कालेज, अम्बाला हायर सेकेंडरी स्कूल भावभरे शब्दों में कहा कि मैं भिक्षुक हूँ भगवान महावीर का, कन्याशाला जगड़ीआ गरूकल होशियारपुर हायर सेकेंडरी, एवं गुरुदेव का एवं शासन का बाहर से आए शरणार्थी जैन, हिन्दू व बड़ौदा आणंद (विद्यालय) भावनगर अहमदाबाद पूना अंधेरीसिख जो पाकिस्तान से दुःखी होकर आए हैं, वे सहयोग के पात्र हैं। बम्बई आदि में महावीर विद्यालय की शाखाएंआपकी ही अनुकंपा उन्हें अपना भाई-बहन समझें उनकी सेवा करें और उन्हें का फल है और है आपके शिक्षा-प्रेम के जीते-जागते उदाहरण। -मनि श्री अमरेन्द्र विजय आत्मनिर्भर बनावें। आपके प्रभाव से उनकी सेवा व व्यवस्था की गई। समाज में उन्हें उचित स्थान मिला। योग की ओर भी आपने समुचित ध्यान दिया। हे गर्जर-लाल छगन प्यारे, सात क्षेत्रों के सिंचन के लिए, उन्हें शक्तिमान बनाने के उन्हें विद्याध्ययन की प्रेरणा दी। इतना ही नहीं उन्होंने उदारता | - क्यों भूलेगा पंजाब तुझे। लिए गुरुदेव सदैव चितित रहते थे। प्रयत्नशील थे। साधु-साध्वी दिखाते हुए विदुषी साध्वियों को प्रवचन हेतु आज्ञा दी। श्रावक व श्राविका दो क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं ये दो अन्य क्षेत्रों के आत्माराम ने दिया ज्ञान धन, सम्प्रदाय में रहते हुए भी आप संप्रदायातीत थे। आपके पूरक हैं। अन्य पांच क्षेत्रों के पोषक हैं। ये क्षेत्र बलवान होंगे तो पाकर अनुपम साज सजे।। विचारों से भी उदार थे। बम्बई की एक सभा में निकले थे उद्गार अन्य क्षेत्र स्वतः एवं सहज शक्तिशाली बन जाएंगें। इस बात के साक्षी हैं। मैं न जैन हं, न बौद्ध, न वैष्णव हं, न शैव,न आचार्य श्री ने गरीब-साधर्मिक बंधुओं की सहायता के लिए दिन कालए हिन्दू और न मुसलमान। मैं तो वीतराम देव के बताये हए पथ पर | मरुधर का अज्ञान – तिमिर हर, समाज का ध्यान आकर्षित किया। उन्हें प्रीतिभोज कराकर चलने वाला एक मानव हूं -एक यात्री हूं। ज्ञान-ज्योति को फैलाया। हजारों रुपये खर्च कर एवं लड्डू आदि खिला देना सच्चा साधर्मिक वात्सत्य नहीं है। उनके दःख दूर कर उन्हें पांव पर इन उदार वचनों को सुनकर बड़े नेता लोग भी प्रभावित हए वरकाना, फालना परों ने. खड़ा करना, आत्मनिर्भर बनाना ही सच्चा साधार्मिवात्सत्य है। गौरव अपना दिखलाया।। इनके उद्धार के लिए प० श्री ने ठोस कार्य किए। समय-समय पर समस्त जैन समाज की एकता के लिए वे निरंतर प्रयत्नशील तन, मन से पूर्णरूपेण सहयोग किया। थे। एक बार उन्होंने एकता के लिए अपनी मनोभावना इस रूप में ज्ञान-ज्योति तेरी पाकर के. शिक्षा के प्रति आप की अपूर्व रुचि थी। व्यावहारिक एवं प्रकट की थी यदि जैन समाज की एकता के लिए मुझे आचार्य माया-मोह विलीन हुए। आध्यात्मिक दोनों शिक्षाओं के लिए आपने जोर दिया। शिक्षा पदवी का भी त्याग करना पड़े तो मैं तैयार हूं। समाज के संगठन के विक पड़ता म तयार हू। समाज क संगठन के विजय वल्लभ की स्वयं प्रभा से. प्रचार की भावना आपमें कूट-कूट कर भरी थी। विद्वान व ज्ञानी लिए कितनी उत्कृष्ठ भावना एवं त्याग भावना थी। हिंसक सभी मलीन हुए।। ही ज्ञान की महत्ता समझ सकते हैं। आप सभी विषयों में पारंगत उनकी जादुई वाणी से श्री मोतीलाल नेहरू जैसे राष्ट्रीय नेता प्रकांड विद्वान थे। अतः शिक्षा के प्रचार-प्रसार में सहज ही ने आजीवन सिगरेट का परित्याग कर दिया। अनेक हिन्दुओं, आपकी रुचि थी। आपके अथक पुरुषार्थ से अनेक शिक्षा मुसलमानों ने मांसाहार का त्याग किया आप यगदष्टा यगवीर ह युगद्रष्टा! युग निमाता! संस्थाएं, निर्मित हुई। आचार्य थे। देश व समाज के लिए आपकी अनेकों महान् देन | भक्तों को तूने शरण दिया। देश के प्रायःसभी प्रांतों में आपने विद्यालय स्थापित किए। हैं। उनको सुख से भारत लाकर श्री महावीर विद्यालय शिक्षाक्षेत्र में आपकी अनुपम देन है। 84 वर्ष की दीर्घायु तक जीवन की अंतिम सांस तक आप उनका पावन उद्धार किया।। अनेक विरोधों के बवंडर में भी वह संस्था स्थापित हई.जो आज समाज व शासन के महान कार्य करते रहे। वह वल्लभ स्मारक अंकरित पणित एवं फलित है। जैन जगत् में आज वह मस्तक आपकी यशोगाथा का जीवंत प्रतीक है। यह अदभत तेरा स्मारक, ऊंचा किए खड़ी है। ज्ञानदान में अपना महान् योगदान दे रही है। यह श्री गरूदेव का एकमात्र महान स्मारक उनके महान गोडवाड़ की मरूभूमि के लिए आप सचमुच कलिकाल आदर्शों एवं संदेशों के लिए प्रचार-प्रसार में, सात क्षेत्रों की पुष्टि सबकी श्रद्धा का केन्द्र बने। कल्पतरू साबित हए। उस विकट भूमि में विचरण कर वरकाणा में अपना योगदान देकर उनकी भावनाओं को साकार करें उनके वह पावन तरागाथा का, एवं सादड़ी में आपने विद्यालय खोले, जो आज भी समुचित रूप से अपूर्ण कार्यों को पूर्ण करें इसी शभ मंगल कामना के साथ। अधिवक्ता शाश्वत बना रहे।। An Education, international Five S ale Only
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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