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समय-समय पर इस संसार में ऐसे महापरुषों का जन्म होता है, जो समाज और संसार को एक नई दिशा, नतन आलोक प्रदान करते हैं, जिससे समाज व संसार लाभान्वित होता है एवं उनके निर्देशित पथ की ओर गति प्रगति बन जाती है। जिन्होंने स्वहित के साथ परहित में समाज उत्थान में अपना महान योगदान दिया। उनकी गरिमा एवं महिमा अपार है। समाज कल्याण में ही उन्होंने अपना सारा जीवन खपा दिया। वे कहा करते थे - समाज उत्कर्ष के लिये एवं आत्मकल्याण के लिये ही हमारा साधु जीवन है। आत्म-साधना एवं समाजोत्थान के कार्य कितने भी हों, करना हमारा कर्तव्य है। यही कारण है कि आप साधनामय जीवन-यापन करते हए आजीवन समाज-उत्थान के कार्य में हर घड़ी हर पल उद्यत रहे।
प० पंजाब देशोद्धारक श्री आत्मारामजी महाराज ने अपने जीवन की अन्तिम घड़ियों में शासन एवं पंजाब रक्षा का भार श्री विजय वल्लभ सूरीश्वर जी पर डालते हुए कहा - हे वल्लभ सरस्वती मन्दिरों की स्थापना तथा पंजाब की बीर भूमि में सत्य अहिंसा, एवं सदाचार का बीजारोपण कर इसकी सुरक्षा करना। क्योंकि इस प्रान्त में साधु-साध्वी के अभाव में धर्म भावना में शिथिलता आ चुकी है। इन शब्दों के साथ ही वे इस नश्वर दुनिया से चल बसे। वल्लभ के कर्ण में ये विचारों गूंजने लगे और वे दृढ़संकल्प के साथ अपने उत्तदायित्व को निभाने के लिए कार्यक्षेत्र में उतरे।
देश एवं समाज का कोई व्यक्ति अशिक्षित एवं भूखा-नंगा न रहे।प्राणिमात्र अहिंसा और सत्य की राह का अनुगमन करे, जैन एवं जैनेतर समाज प्रेम और एकता के सूत्र में आबद्ध हों, इस हेत देश के कोने कोने में अपने प्रभावशाली प्रवचनों से एक नई जागृति का शंखनाद किया।
उन्होंने सर्वप्रथम मध्यम वर्ग की ओर दृष्टिपात किया। क्योंकि मध्यम वर्ग समाज की रीढ़ है। उसके उत्थान के लिए आपने अनथक परिश्रम किया। इसके लिए प० श्री ने यह भीष्म प्रतिज्ञा की कि उनके उत्थान के लिए पांच लाख रुपये का फण्ड नहीं होगातोमैं दूध एवं दूध से बनी चीजें ग्रहण नहीं करूंगा की जादुई वाणी का अलौकिक प्रभाव पड़ा। बहनों ने आभूषणों एवं भाईयों ने रुपयों की वर्षा की। एक चौदह वर्षीय रमिला नामक बालिकाने प्रवचन-सभा में ही दो हजार रुपये एकत्रित किए। मध्यम वर्ग के लिए यह महान कार्य बम्बई में हुआ।
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गुरु वल्लभ की अमर स्मृति
- आचार्य विजय इन्द्रदिन्न सूरि
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