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श्रद्धा-पुष्प
-मुनि श्री नवीनचन्द्र विजय
वल्लभ स्मारक मंगलकारी
-प्रो. "राम" जैन
यह निर्मित धरणी पर लाख लाख भावों का साकार रूप यह प्रज्वलित दीप शिखा है अखंड शाश्वत अनुप यह खड़ा नील गगन तर अविचल विमल महिमा-भरपूर यह शत-सहस्त्र कंठो का समह गीत सरस मधर यह उद्वेलित आस्था तंरगों का दृग सुखप्रद फेनिल स्वरूप यह पावन स्मृतियों का विमल मनभावन पुंज धनीभत बढ़कर यह सबसे स्मारक है विजय वल्लभ का श्रद्धा का पुष्प।
वल्लभस्मारक मंगलकारी हम इसकी शरण में आयेंगे। ममता, करुणा, मैत्री से हम, जगती को स्वर्ग बनायेंगे।।
सब धर्मो का है सार यही, सब जीवों का कल्याण करो। 'खद जीयो, जीने दो सबको", मानवता का उत्थान करो।। सब जग के प्राणी सखी रहें, हम यही भावना भायेंगे।।
(2) सब गच्छ, पंथ, के भाव मिटा, जग-वत्सलता अपनाना है
सहयोग, मैत्री, आजवता से आगे बढ़ते जाना है। सवि जीव कसै शासन रसिया निर्माण का साज सजायेंगे।
है आज विश्व क्या मांग रहा, है आज राष्ट्र क्या मांग रहा। हमने मिलकर मोचा ही नहीं, सब व्यर्थ प्रदर्शन भाग रहा। - जो मध्यममार्गी भाई हैं, हम उनको गले लगाये।।
विज्ञान पंग रह जायेगा, आध्यात्मिकता यदि साथ नहीं। हम इनका समन्वय यदि करलें तो इससे बड़ी सौगात नहीं। वल्लभ स्मारक के शिखरों से, शंख-ध्वनि यही गॅजायेंगे।।
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म्याद्वाद अहिंसा, संथम ही, जीवननिर्माण के साधन हैं। अवसान युद्ध, हिसा का हो, ऐटम का शान्ति प्रयोजन हो। वल्लभगुरू का सन्देश यही, हम घर-घर जाके सुनायेंगे।। Jain Education International
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