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ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, स्नानादि श्रृंगार का त्याग चीजों को चौदह भागों में विभक्त किया गया है। प्रातः काल उठते 9. शयनः पलंग, बिस्तर, कुर्सी, गद्दी, तकिया आदि की संख्या करना चाहिए, प्रासुक पानी का प्रयोग करना चाहिए और ही मनुष्य को उन चीजों को निश्चित कर देना चाहिए कि आज मैं निर्धारित करना। यथाशक्ति उपवासादि तप करना चाहिए।
इतनी चीजों का प्रयोग करूँगा, शेष का त्याग। वे चौदह नियम 10. विलेपनः तेल, अत्तर, क्रीम, चंदन, साबुन आदि की संख्या इस प्रकार हैं:
निश्चित करना। 12. अतिथिसंविभाग व्रत।
1. सचित्तः मिट्टी, पानी, अग्नि, वायु और वनस्पति में जीव हैं। 11. बह्मचर्यः स्वस्त्री और स्वपति के लिए भी मर्यादा निश्चित
जिसमें जीव होता है उसे सचित्त कहा जाता है। इसीलिए करना। जिन्होंने लौकिक पर्व-उत्सवादि का त्याग कर दिया है निश्चित करना चाहिए कि आज मैं कितनी मिट्टी का प्रयोग 12. दिशिः अलग-अलग दिशाओं में जाने के लिए मील की वे अतिथि हैं अर्थात् जिन्होंने आत्मा की उन्नति के लिए करूँगा?
संख्या निश्चित करना। गृहस्थाश्रम का त्याग कर दिया है, स्व पर कल्याणकारी संन्यास
पीने या स्नान करने के लिए कितने पानी का प्रयोग करूँगा?
13. स्नानः दिन में कितनी बार स्नान करेंगे। मार्ग का जिन्होंने ग्रहण किया है ऐसे मुमुश्रु महात्माओं का
चूल्हा, गैस, हीटर आदि का कितना और कितनी बार प्रयोग 14
14. भत्तः भोजन, पानी, दूध और शरबत आदि कितने प्रमाण में अन्न-पानी और वस्त्रादि आवश्यक चीजों से स्वागत-सत्कार
लेंगे।
करूंगा। करने का नाम अतिथि संविभाग व्रत है। इस व्रत में ऐसी
पंखे आदि कितने और कितनी बार प्रयोग करूंगा। प्रतिज्ञा की जाती है कि जब तक अतिथि अर्थात् साध या साधर्मिक हरी वनस्पति का सब्जी के लिए एक या दो से अधिक प्रयोग
गृहस्थ का दिनकृत्य भाई खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करेगें तब तक मैं भी ग्रहण नहीं
नहीं करूंगा। करूंगा और उतनी ही चीजें खानी चाहिए जितनी की साधु
2. द्रव्यः खाने पीने की चीजों की संख्या निश्चित करना। गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों का आधार है। इसलिए यह महाराज बहोरते हैं। प्रातः काल उठते ही इस व्रत को धारण कर ।
3. विगयः मांस, मदिरा, शहद और मक्खन ये चार महाविगय जितना संस्कारी, सदाचारी, पवित्र और सुदृढ़ होगा उतना ही लेना चाहिए। और किसी को बताना नहीं चाहिए।
हैं। इनके सेवन से इन्द्रियों में विकार उत्पन्न होता है। अतः व्यक्ति सुखी और संतोषी होगा। उपर्युक्त पांच अणुव्रतों को चार मास, एक मास, बीस दिन या
इनका सर्वथा त्याग करना चाहिए। घी, तेल, दूध,दही और सूर्योदय से पहले जगना चाहिए। देवदर्शन, गुरुवंदन, एक रात के लिए भी ग्रहण किए जा सकते हैं।
गड या शक्कर तथा इनसे बनी चीजें मिष्ठान एवं तली हुई प्रतिक्रमण और सूर्यास्त से पहले भोजन कर लेना चाहिए। रात्रि इन बारह व्रतों के पालन से गृहस्थ अनेक बुरे कार्यों से चीजों का एक-दो-तीन या चार यथाशक्ति त्याग करना भोजन कभी नहीं करना चाहिए। अहिंसा की दृष्टि से और पापाचरण से बच जाता है। इन बारह व्रतों को अंगीकार करने से चाहिए।
स्वास्थ्य की दृष्टि से भी प्रत्येक व्यक्ति को रात्रि भोजन का सर्वथा पहले सम्यक्त्व प्राप्त करना अत्यन्त आवश्यक होता है। 4. वानहः चप्पल, जूते, सैंडल, बूट और मोजे की संख्या
त्याग करना चाहिए। गृहस्थ को प्रतिदिन का कार्यक्रम इस प्रकार सम्यक्त्व देव गुरु और धर्म पर पूर्ण और अटल श्रद्धा विश्वास
निश्चित करना।
निर्धारित करना चाहिए कि उसकी व्यावहारिक दुनिया को और रखने पर ही प्राप्त होता है।
आत्मा दोनों का लाभ हो। 5. तंबोलः पान, सुपारी, इलायची, मुखवास आदि की संख्या निर्धारित करना।
गृहस्थ के छह कर्तव्य इस प्रकार हैं। इन्हें प्रतिदिन करना 6. बस्त्रः कपड़े की संख्या निश्चित करना।
चाहिए। चौदह नियम 7. कुसुम फूलों की संख्या का परिमाण करना।
1. देवपूजा
4. संयम 8. वाहनः गड्डी, कार, स्कूटर, तांगा, हवाईजहाज आदि की 2. गुरुसेवा
5. तप बहुत सी चीजें मनुष्य को प्रतिदिन काम आती हैं। उन सब संख्या निश्चित करना।
3. स्वाध्याय
6. दान
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