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________________ परमार क्षत्रियोद्धारक, चारित्र चूड़ामणि जैन दिवाकर आचार्य श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्न सूरीश्वरजी महाराज का देश के लिए संदेश Jain Education International नीचे से ऊपर तक देश के लोगों में नीति और न्याय का नितान्त अभाव हो गया है। लोग दूसरों को गिराकर स्वयं ऊपर उठना चाहते हैं। मनुष्य आज इतना आत्म केन्द्रित हो गया है कि उसे और किसी का ध्यान ही नहीं रह गया है। जाति, धर्म, समाज सर्वत्र संकीर्णता और साम्प्रदायिक भावना दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। उपर्युक्त कारणों से घर, परिवार, देश, संसार जहां देखिए वहाँ अशांति, कलह, हिंसा और उत्पीडन का साम्राज्य छाया हुआ है। सभी नागरिक अशांत और व्याकुल होकर शांति पाना चाहते हैं, पर वह दिन प्रतिदिन और दूर चली जाती है, ऐसी दशा में समस्या सुलझाने के लिए ज्यों ज्यों प्रयास किए जा रहे हैं त्यों त्यों स्थिति और बिगड़ती जा रही है, कुछ लोग तो हिंसा के बल पर अपनी समस्या का समाधान खोज रहे हैं। किन्तु यह निश्चित है कि जब तक लोगों में अहिंसा, प्रेम, परोपकार और त्याग की भावना विकसित और संबधित नहीं होगी तब तक सुख-शांति की स्थापना के सारे प्रयास व्यर्थ होंगे। सभी समस्याओं को सुलझाने के लिए भगवान महावीर स्वामी के उपदेश अहिंसा, प्रेम और अनेकान्तवाद पूर्ण रूपेण समर्थ हैं। 'शांति और सुख के लिए यही एक आदर्श मार्ग है। विजयन्द्रदिन सदि For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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