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राणकपुर जैन मंदिर:- राजस्थान के मेवाड़ प्रदेश में सादड़ी के पास राणकपुर आदिजिनेश्वर का चौमुखजी मंदिर है। इस प्रकार की रचना हमें केवल जैन मंदिरों में ही मिलती है। कारण, जैन विचारधारा में केवली तीर्थंकर चौमुखी जग-कल्याणक वाणी की प्रभावना करते हैं तो इन्द्र उनके लिए समवशरण की रचना करते हैं। यहाँ एक पर्वताकार उच्चासन पर चार दिशाओं में मुख कर के या अलग-अलग तीर्थंकरों की चार मूर्तियाँ रखी जाती हैं। इसलिए यहां मुख्य मंदिर के चार द्वार बनाए जाते हैं और सभी मंदिरों की रचना हो जाती हैं।
चतुष्कोणीयः- चारों और घूमती दीवार के साथ-साथ शिखरों वाली देवकुलिकाएँ हैं। चारों दिशाओं में चार प्रवेश हैं जो हमें सीधे चौमुखी जी के मंदिर में ले जाते हैं। चार कोनों में शिखरबद्ध चार मंदिर हैं। यहां गुम्बज वाले 29 कक्ष हैं। ये कक्ष 420 खंभों पर खड़े हैं प्रत्येक खंभे की डिजाइन अलग-अलग है। फिर भी यह मंदिर संतुलित स्थापत्य का एक सुंदर नमूना है।
धरणशाह और रत्नशाह का बनवाया हुआ गगनचुम्बी सुंदर शिखर वाला यह जैन मंदिर देखने योग्य है। यह चौमुखी मंदिर मुख्य मंदिर की चारों दिशाओं और प्रवेशद्वार- झरोखों से सुशोभित हैं। शिखर पर और छोटे बड़े शिखर के आवरण लगे हैं। जालीदार डिजाइनें भी यहाँ नजर आती हैं। चारों कोनों पर ऊपर तक जाने वाले देवगवाक्ष नजर आते हैं। अम्लासार और शिखर के बीच चारों दिशाओं में यक्ष के मुख हैं। सबसे ऊपर के झरोखे पर सिहाकृतियाँ बनाई गई हैं। रंगमंडप के खंभे बेलबूटे, भूमितिमय पक्षियों की आकृतियाँ, विविध प्रकार की डिजाइनों से भरपूर हैं। वैसे यहाँ की छतें भी कलामय हैं। मुख्य मंदिर के बाहर की दीवारों पर देव देवियाँ, यक्ष-यक्षिणियों और कायोत्सर्ग मुद्रा में साधु या तीर्थंकरों की मूर्तियाँ सप्रमाण सुंदर भाव मुद्राएँ, आभूषण और दूसरे उपकरणों के साथ शिल्पकला की सुंदर शैली प्रकट करती है।
गोमतेश्वर :- दक्षिण भारत के चंद्रगिरि और इंद्रगिरी के बीच श्रमण बेलगोला में गोमतेश्वर अर्थात् बाहुबली की कायोत्सर्ग मुद्रा में एक ही पत्थर से 56 फीट की विशालकाय प्रतिमा भारतीय शिल्प कला का सुंदर उदाहरण है।
खुजराहो:- नौवीं, दसवीं शती के चंदेल राजाओं के राज्यकाल में शिल्प- महारथियों के हाथ से बने हिन्दू और जैन सम्प्रदायों के मंदिर अपनी शैली में स्थापत्य कला की पराकाष्ठा हैं। एक डेढ़ मील के क्षेत्र में बने विविधमतों के छोटे-बड़े तीस मंदिर हैं, जिनसे हमें लगता है कि चंदेल राजाओं की वहाँ प्रवृत्ति सर्वधर्ममतों में समभाव की रही होगी। जैन सम्प्रदाय के यहाँ छह मंदिर हैं। श्री पार्श्वनाथ का मंदिर कला का सुंदर नमूना है। इसका शिखर प्रायः अन्य सम्प्रदायों के समान जैसा हैं। लेकिन अन्य मंदिरों में छज्जे बाहर निकाले गए हैं जो इस मंदिर में नहीं है। मंदिर की बाहरी दीवारें सुंदर शिल्पायोजनों से संबलित हैं। इस क्षेत्र में घंटाई जैन मंदिर के अवशेष स्थापत्य कला के
सुंदर उदाहरण हैं। इसके खंभों की शिल्पकारी अति सुंदर है। चितौड़गढ़:- इ:- राजस्थान में मेवाड़ के विख्यात चितौड़गढ़ के ऊपर बना जैन मंदिर के सामने कीर्ति स्तम्भ स्थापत्य कला का सुंदर नमूना है। 30 फुट ऊँचे इस कलामय स्तंभ की आठ मंजिलें हैं। ऊपर जाते हुए यह मंजिलें कहीं चौड़ी तो कहीं संकरी हो जाती हैं। सभी मंजिलों के बाहर की दीवारें स्थापत्य और सुंदर शिल्पकारी से परिपूर्ण हैं। ऊपर आखिर में खंभों पर बना मनोहर विश्रामगृह है। पहली मंजिल पर बाहर की ओर कायोत्सर्ग मुद्रा में बनी तीर्थंकर की प्रतिमा और उसकी दोनों ओर यक्षों की मूर्तियाँ हैं। उसके ऊपर के भाग में पद्मासन मुद्रा में तीर्थंकरों की छोटी मूर्तियों की माला बनी हुई है। कीर्ति स्तम्भ, विजय स्तम्भ और रुद्रमाल आदि को देखकर लगता है कि हमारी धर्मभावना और कला प्रदर्शन केवल मंदिर स्थापत्यों के रूप में ही नहीं अपितु अन्य रूपों में भी उपलब्ध हैं।
सुमंत शाह
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