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________________ काल पर गहराई से दृष्टिपात करने से भारत का सांस्कृतिक इतिहास भव्य गुफामंडपों, मंदिरों और शिल्पों के रूप में प्रकट होता है। यह इतिहास हमारे धर्म, संस्कृति, मानव जीवन की भावना, श्रद्धा, मान्यता और रूढ़ियों की झांकी प्रस्तुत करता है। - प्राचीन काल के वैदिक, जैन और बौद्ध धर्मों के अवशेष हमें देश में ही नहीं अपितु बृहत्तर भारत जावा, सुमात्रा, बर्मा आदि में भी देशकाल और शैली के अनुरूप पूजा योग्य सुन्दर मंदिरों और भग्न लेकिन भव्य खंडहरों के रूप में दिखाई देते हैं। इन्हें देखने से मालूम होता है कि सभी धर्मों के समय-समय पर अपनी स्थापत्य और शिल्प-शैलियों से एक दूसरे को प्रभावित किया है। फिर भी धार्मिक मान्यता, विचारों और तत्वों के अनुसार अपनी-अपनी विशेषताएँ कायम रखी हैं जो उनके अध्ययन से समझ में आ सकती हैं वरना स्थापत्यों और शिल्पों के सामान्य रूप को देखकर उन्हें अलग करना कठिन है। जैन धर्म ने वैदिकों और बौद्धों के साथ-साथ स्वतन्त्र रूप से भी अपनी धार्मिक मान्यता और भावना के अनुरूप स्थापत्य और शिल्प का निर्माण किया है। हम यहाँ उनकी विशेषताओं पर विचार करेंगे। प्राचीन नगर :- प्राचीन जैन साहित्य में कौशम्बी, चम्पा, वैशाली, श्रावस्ती आदि कई नगरों का उल्लेख मिलता है। कई नगरों के अवशेष भी हमारे सामने हैं। ये अवशेष प्राचीन स्थापत्यों और मानव जीवन के मूल्यों की झांकी प्रस्तुत करते हैं। उत्तर प्रदेश के बलरामपुर गाँव के पास श्रावस्ती नगर के अवशेष विद्यमान हैं जो आज सहेठ-महेठ के नाम से जाने जाते हैं। भारतीय पुरातत्व विभाग के अनुसार यहाँ बौद्ध और जैन धर्म प्रचलित थे। आज भी जैन और बौद्ध दोनों इसे पूज्य मानते हैं। जैन मान्यता के अनुसार श्री संभवनाथ जी और श्री चन्द्रप्रभु जी इन दोनों तीर्थकरों की यह जन्मभूमि है। श्री संभवनाथ जी का मंदिर आज भी वहाँ मौजूद है। स्तूपः स्तूपों का नाम सुनते ही हमारे मन में बौद्धों की याद आती है और सांची, भरहुत, अमरावती, नागार्जुन, कोण्डा आदि के स्तूप हमारे स्मृति पटल पर आ जाते हैं। लेकिन मथुरा के कंकाली टीले से निकले बौद्ध स्तूप के अवशेष उसे जैन स्तूप होने की संभावना प्रकट करते हैं। यहाँ की छोटी-बड़ी सभी शिल्पाकृतियाँ सराहनीय हैं। गुफा मंडप :- मानव-भावना के मंदिर, गुफा मंडप भारत भर में जगह-जगह देखे जा सकते हैं। बौद्ध, जैन और वैदिक धर्म के पथदर्शन के साथ-साथ उस समय की स्थापत्य कलाओं का भी इजहार करते हैं। उड़ीसा में भुवनेश्वर के पास उदयगिरी, खण्डगिरी की प्राचीन जैन गुफाएँ स्थापत्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। यहाँ की दो मंजिली रानी गुफा स्थापत्य की अनोखी मिसाल है। इस गुफा की दीवारों पर बनी कलाकृतियां चित्राकृषक हैं। मंदिर:- प्राचीन काल से लेकर वैदिक और जैन धर्म के गगनचुम्बी शिखरों वाले मनोहर मंदिर जगह-जगह नजर आते हैं। कोई अति प्राचीन खण्डहर है तो कोई सुरक्षित सुंदर पूजा योग्य मंदिर, जो अपने समय के राज्याश्रय, लोक-भावना, भव्य स्थापत्य और शिल्प शैलियों की यशोगाथा कहते हुए हमारे सामने प्रस्तुत हैं। वैदिक स्थापत्य के मूर्धन्य मंदिर, भुवनेश्वर, कोणार्क, खजुराहो, भोढ़ेरा, वैलूर, आईहोले, पत्तादिकल, महाबलीपुरम् आदि हैं। जैन धर्म के प्रभावशाली मंदिर शत्रुंजय, गिरनार, आबू, राणकपुर, सेवाड़ी, सिरोही, ओसिया, घाणेराव और गोमतेश्वर आदि हैं। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण जैन तीर्थों और मंदिर की संक्षिप्त सी-झांकी प्रस्तुत की जाती हैं। शत्रुंजय:- शत्रुंजय पर्वत की शिखाओं पर कभी ऊपर कभी नीचे पहाड़ों की छोटी-छोटी चट्टानों पर किलों में सुरक्षित सैकड़ों छोटे-बड़े शिखरों पर ऊँची-ऊँची ध्वजाएँ फहराती हैं। इस धर्मनगरी को प्रभात के हल्के धुंधले वातावरण में कोई ऊँचे स्थान से देखे तो हवा में उड़ती हुई इन्द्रपुरी-सी मालूम होती है। गुर्जर स्थापत्य शैली के साथ मुगल स्थापत्य का प्रभाव भी यहाँ लक्षित होता है। चौकोने शिखरों के ऊपर चारों ओर की अर्द्ध प्रस्फुटित शिखरों से मुख्यशिखर की शोभा बढ़ती है। शिखर और आम्लासार के बीच चारों ओर मानव या यक्षों के चेहरे बने हैं। शिखरों के बीच के भाग में सिंह की मूर्तियाँ स्थापित हैं। ये शोभा के लिए हो या धार्मिक मान्यता के लिए हों प्रत्येक वैदिक-जैन मंदिर में देखे जा सकते हैं। ऊँचे और सुन्दर कलाकृति वाले तांबा, पीतल या चांदी के पात्रों से मढ़े हुए ध्वज दंड के ऊपर लगी लम्बी ध्वजाएँ जैन मंदिरों की मुख्य विशेषता है। For Private & Personal Line Oply 23
SR No.012062
Book TitleAtmavallabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagatchandravijay, Nityanandvijay
PublisherAtmavallabh Sanskruti Mandir
Publication Year1989
Total Pages300
LanguageHindi, English, Gujarati
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size55 MB
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