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जीव नवत
श्री श्रीचन्द चोरड़िया न्यायतीर्थ शिक्षा प्राप्त करके आये ही थे। उनकी रूचि व सहयोग मिला। इस काम में गति मिली और यह काम आगे बढ़ा। एक विषय को लेकर ३२ सूत्रों में जहां-जहां कोई विषय का वर्णन आता उसका संकलन एक स्थान पर करना जटिल कार्य था। उस पर गम्भीर चिन्तन करते हुए उनको एक सुलभ सरल मार्ग मिला। उन्होंने एक सौ विषय में बांटकर दशभलव प्रणाली से एक विषय के सैकड़ों उपविषय के रूप में इसकी परिकल्पना की। वे शास्त्रों की दो प्रतियां लेकर उसका अध्ययन करते, उनको विषयानुक्रम से बांटते और उसकी कतरन करके एक फाइल अलग से उस विषय की बनाते। इस तरह से १००१ फाइल बन गई। फिर दूसरी तरफ के सूत्र कटिंग से इस तरह का काम भी करते। इस काम में कई पण्डितों को वे वेतन देकर रखते। वर्षों तक वह काम चालू रहा। वह लिटरेचर अभी भी उनके घर पर सुरक्षित है। उन्होने लेश्या कोष का काम हाथ में लिया और देश-विदेश के विद्वानों की प्रतिक्रिया जानने के लिये उनको उसकी प्रतियां भेजी। उसका बड़ा स्वागत हुआ। इस काम को उन्होंने अपने खर्च से किया। उनकी इस कृति से उनकी बहुत ख्याति हुई। देश-विदेश के विद्वानों की सम्मति इसी पुस्तक में अलग से देखने को मिलती है।
दशमलव प्रणाली का सविस्तार वर्णन विद्वान लेखक श्रीचन्द चोरड़िया के योगकोष के प्रथम खण्ड में प्रकाशित कर दिया है।
__ जैसे कास्ट एकाउण्टेसी में पड़ता प्रणाली को जो स्थान है, जिसमें किसी भी प्रतिष्ठान का व्यौरा मशीन द्वारा मिल सकता है, वैसे ही अपनी सूझबूझ से इतने गम्भीर आगमिक विषय को सुगम व सहज रीति से करने व समझने के लिए इसका ईजाद कर दिया है। आचार्यश्री तुलसी का कलकत्ता में जब आगमन हुआ तो इसका निरीक्षण कर इस काम की सराहना करते हुए इस दिशा में रूचि दिखाई। प्रसंगवश आचार्यश्री ने उनको तत्वज्ञ श्रावक के रूप में सम्बोधित किया।
बत्तीस सूत्रों का हिन्दी में अनुवाद करने का हिमालय जितनी चढ़ाई का काम उनके सान्निध्य में वर्षों की तपस्या के बाद सम्पन्न हुआ है। दौलतसिंह कोठारी ने इसे एक कीर्तिमान बताते हुए कहा कि जैन दर्शन की सरल सुलभ जानकारी प्राप्त करने का यह आवश्यक काम हुआ है। इस हेतु सभी धर्मावलम्बी उनके प्रति कृतज्ञ हैं और रहेंगे।
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