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जीवनवृतमा
| जैन आगम के जागरूक प्रहरी |
-मांगीलाल लुनिया
स्व. श्री मोहनलालजी बांठिया का जन्म चूरू (राजस्थान) में बांठिया परिवार में सन १६०८ में हुआ। उनके पिता का नाम श्री छोटूलालजी था। वे दो भाई थे। उनके बड़े भाई का नाम सोहनलालजी था, जिनका युवावस्था में ही देहान्त हो गया था। उनके कोई सन्तान नहीं थी। अतः चूरू में रहने वाले परिवार के भरण-पोषण का भार भी उन्हीं के सिर पर पड़ा। अध्ययन में काफी कष्ट उठाकर भी कभी नहीं कतराये। युवावस्था होने पर इनका विवाह जियागंज के प्रतिष्ठित परिवार श्री बुधसिंहजी बोथरा की कन्या देबुदेवी से हुआ जो हरीसिंहजी निहालचन्द की दुहिंत्री थी।
वे स्वावलम्वी, स्वाभिमानी, परिश्रमी, मिष्टभाषी व मिलनसार प्रकृति के पुरुष थे। कलकते में पोद्दार छात्र निवास में रहते और उनके सहपाठी श्री रामचन्द्र सिंघी भी वहीं रहते थे। उन दिनों कलकत्ते में जैन श्वेताम्बर तेरापंथी विद्यालय २०, स्टाण्ड रोड में था
और वहां ओसवाल नवयुवक समिति ओसवाल समाज की एकमात्र संस्था में वे सुबह व्यायामशाला चलाते। वे उसी से जुड़े हुए थे, कसरत, लाठी चलाना, आदि में वे अग्रणी होकर भाग लेते। समिति का एक पत्र ‘ओसवाल नवयुवक' के नाम से प्रकाशित होता था। उसका सम्पादन करते। कलकत्ता ओसवाल नवयुवकों का संगठन शिक्षा का केन्द्र था। उसमें स्व. छोगमलजी चोपड़ा, श्री रायचन्दजी सुराणा आदि मनीषी थे। तेरापंथी विद्यालय में भी बच्चों के पठन-पाठन के काम में अपना अमूल्य समय देते थे। हर साल कलकता मैदान में एक आयोजन होता। वहां म्युजिकल चेयर, दौड़, कसरत प्रतियोगिता आदि का कार्य और कला का प्रदर्शन भी होता। वहीं पर नवयुवकों का एक दल जिसमें सर्वश्री तिलोकचन्द रामपुरिया, श्रीचन्द रामपुरिया, श्री रामचन्द्र सिंघी, श्री गोपीचन्द चोपड़ा, श्री नेमचन्द मुणोत, श्री नेमचन्द चोरड़िया, श्री गोपीचन्द धारीवाल आदि शिक्षाप्रेमियों का एक
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