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स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
दो शब्द
स्व. मोहनलाल बांठिया प्रबल पुरुषार्थी थे । उनकी सूझबूझ सबके लिए ग्रहणीय थी। उनका परामर्श सफलता के परिवेश में रहता । अपने जीवन में कभी उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा एवं उनके कदम सदैव मंजिल की ओर बढ़ते रहते। जैन वांग्मय की धूरी पर उनकी दृष्टि घूमती रहती । जैनागम के मन्थन में अपना सारा समय लगाया । आगमोत्तर विषयानुक्रम के अनुसंधान में उन्होंने मोती पिरोए । शोध कार्य के फलस्वरुप लेश्या कोष, क्रिया कोश ग्रंथों की उन्होंने रचना की । विषयानुवर्तिता का यह अनुक्रम तत्परता के साथ चलता रहता । उनका यह अनुराग जैनागम इतिहास का एक पठनीय पन्ना बना । ऐसे प्रतिभाशालीण अध्यवसायी श्रेष्ठ पुरुष की जीवन गाथाओं पर प्रस्तुत स्मृति ग्रन्थ उनके गुणों के अनुरूप बन पाया है ।
उनके विश्वस्त सहयोगी श्री केवलचन्द नाहटा ने ग्रन्थ को अपने कौशल से सजाया संवारा है। अनेक सुहृद जनों ने अपने संस्मरण में उनके जीवन को सही रूप में सृजित किया है । दर्शन - दिग्दर्शन में अनेक विद्वानों द्वारा रचित अभिलेखों ने ग्रन्थ को उपयोगी बना दिया
है ।
श्री बांठिया जैन दर्शन समिति के कर्णधार थे। जैन आगमों के शोध कार्य में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। उनके जीवनकाल में यद्यपि ५-६ ग्रंथ ही प्रकाशित हो सके, परन्तु आपने १५० विषयों पर शोधकार्य कर पाण्डुलिपियां तैयार की जो जैन दर्शन समिति की बहुमूल्य सम्पत्ति है । आपकी विशेषताओं और जैन दर्शन समिति को दिये गये योगदान को ध्यान में रखते हुए जैन दर्शन समिति की साधारण सभा में स्व. मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रंथ प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया ।
मुझे प्रसन्नता है कि श्री केवलचन्द नाहटा ने इस कार्य को क्रियान्वित करने का पूरा भार अपने कन्धों पर लिया । यह उनके अथाह परिश्रम का फल है कि यह ग्रंथ प्रकाशित हो सका है। मैं उन सभी महानुभावों के प्रति अपना आभार व्यक्त करता हूं, जिन्होंने अपनी लेखनी से व आर्थिक रूप से हमें इस ग्रंथ को प्रकाशित करने में सहयोग दिया ।
Jain Education International 2010_03
- गुलाबमल भण्डारी अध्यक्ष, जैन दर्शन समिति
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