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। स्व: मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
न्याय के पांच अवयव प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन माने गए हैं। अक्षपाद गौतम के न्याय सूत्र ने भारतीय दर्शनों की सभी शाखाओं को प्रभावित किया है
और अपने मत को सिद्ध करने में न्याय को सामान्यतः प्रयोग में सब शाखाओं ने लिया है। न्याय सूत्र देश के बाहर भी पहुंचा, ऐसा लगता है। “रबोदेआवेष्ता" (महल १३) में वाग्पटु गौतम का उल्लेख मिलता है। अरकानी लिपि में नये न्याय की हस्तलिपियां मिलती है बौद्ध न्याय के साथ यह सूत्र तिब्बत व चीन पहुंचा व अमेरिका व योरोप के विद्वानों ने भी भारतीय न्याय में रुचि ली व तर्क शास्त्र को सर्वोच्च कलाव विज्ञान में स्थान दिया।
(२)वैदेषिक दर्शन और आचार्य कणाशे
आचार्य कणाद अनाज के धरती पर बिखरे कणों को खाकर एक तपस्वी का जीवन जीते थे। कहा जाता है कि भगवान शिव से महर्षि कणाद ने साक्षात्कार किया था
और उनकी कृपा व आदेश से वैशेषिक शास्त्र की रचना की, जिसमे वेद और वैदिक साहित्य के अनेक उल्लेख मिलते हैं। वैशेषिक दर्शन कहलाने वाला कणाद का एकमात्र उपलब्ध ग्रंथ सूत्रों में है, जो दश अध्यायों में है। इसलिए इसे “दशलक्षणी” भी कहते है। प्रत्येक अध्याय में दो आहिनक हैं पर ऐसा लगता है कि मूल सूत्रों में कालान्तर में बहुत परिवर्तन परिवर्द्धन किया गया है। प्रथम अध्याय में उन सभी प्रतिपाद्य विषयों के कोटियों की चर्चा है, जो पदार्थों में निहित रहते हैं (पदार्थ-कथन)। पहले आहिनक में पदाथों के जातित्व तथा सामान्य गुणों की चर्चा है तो दूसरे में सामान्य और विशेष की समीक्षा है। दूसरे अध्याय में पंचभूतों (भौतिक तत्वों) व दिशा और काल का विवेचन है। तीसरे अध्याय के पहले और दूसरे आहिनक में क्रमशः आत्मा और मन का विवेचन है। चौथे अध्याय में भौतिक शरीर
और उसके सहकारियों (तत अपयोगितृ) की व शरीर की चर्चा है। पांचवें अध्याय में शारीरिक व मानसिक कर्मों का,छठे अध्याय में बैदिक धर्म, दानधर्म और आश्रम धर्म का सातवें अध्याय में गुण, समवाय, निरपेक्ष व सापेक्ष गुणों का विवेचन है। आठवें अध्याय में निर्विकल्प व सविकल्प प्रत्यक्ष प्रमाण का, नौवें अध्याय में पदाथों के अभिज्ञान एवं दशवें अध्याय में अनुमान और उसके भेदो का सविस्तार वर्णन है ।
___ महर्षि कणाद के अनुसार भौतिक जगत की परोक्ष सत्ता ज्ञाता से निरपेक्ष व स्वतंत्र है। ज्ञाता को ज्ञान हो या न हो, वास्तविक जगत के पदाथों का अस्तित्व बना रहता है। वैशेयिकों के अनुसार पदाथों में द्रव्य तत्व वह है जिसमें गुण व कर्म होते है और जो
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