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________________ । स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ भारत के पट दर्शन व उनके प्रणेता - सोहनराज कोठारी पूर्व न्यायाधीश श्रमण संस्कृति से इतर ब्राह्मण संस्कृति व वैदिक धारा के स्वरूप में भारत में षटदर्शन प्रख्यात है, जिनका अध्ययन अनेक सिद्धान्त, मान्यताओं और प्रस्थापनाओं को जानने की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। अतः उन दर्शनों व उनके प्रणेताओं का संक्षिप्त परिचय इस निबन्ध में दिया जा रहा है। (१)न्याय दर्शन और उसके आचार्य गौतम न्याय दर्शन का आधार ग्रंथ है न्याय सूत्र, जिसके रचयिता महर्षि अक्षपाद गौतम हैं, जिसमें तर्क विद्या या वाद विद्या को व्यवस्थित ढंग से प्रतिपादित किया गया है। महर्षि गौतम का समय ई. पू. तीसरी सदी माना जा सकता है। गौतम के पूर्व भी वाद विद्या किसी न किसी स्वरूप में विद्यमान थी व उनके बाद भी इस विद्या पर अनेक ग्रंथ व टीकाओं की संरचना हुई है। न्यायसूत्र पांच अध्यायों में विभाजित है, जिनमें प्रत्येक अध्याय में दो आहनिक (प्रति दिन के पाठ) हैं। प्रथम अध्याय के प्रथम आहनिक में न्याय के सोलह प्रतिपाद्य विषयों की सूची दी गई है यथा प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, गल्प, वितण्डा, हेत्वाभास, छल, जाति (यल्त हेतु) और निग्रह स्थान (पराजय के स्थान) हैं। इनमे से नौ विषयों के प्रथम आहनिक में भेद और लक्षण बताए गये हैं, जिनका ज्ञान विद्या व तर्क विद्या में विशेष महत्व है। दूसरे आहनिक में सात विषयों के भेद तथा लक्षण बताए हैं जिनका सम्बन्ध वाद विवाद से है। दूसरे अध्याय के प्रथम आहनिक में संशय की परीक्षा के बाद इन चार प्रमाणों की समीक्षा की गई है यथा प्रत्यक्ष प्रमाण, अनुमान प्रमाण, उपमान प्रमाण और शब्द प्रमाण। इसमें पदार्थ और काल की भी परीक्षा की गई है। दूसरे आहनिक में अन्य प्रमाणों - वर्ण, पद, पदार्थ विषयों की चर्चा है। तीसरे अध्याय में प्रथम आहनिक में ज्ञान के प्रथम चार विषय आत्मा, शरीर, ____Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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