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स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
बढ़ होती है। यहां प्रश्न यह होता है कि ये सब एक साथ ही घटती बढ़ती होती है या इसमे कोई नियम है ? निर्युक्तिकार कहते है :
(काल की वृद्धि में जनता द्रव्य पर्या
“कालो चउण्ड वुड़ढी, कालो भइयब्वो खेत्र वुडढीए । वुडढीय द्रव्य पज्जव्व, भहयव्वा खेत्रकाल ।।
क्षेत्रादि चारों की वृद्धि होती है । क्षेत्र की वृद्धि होने से काल की भजता की वृद्धि भजनाएं जानना । )
“सुहुमो य होइ कालो तत्तो सुहुभ तरयं हवइ खेत्रं । अंगुल सेढी मेत्ते ओसप्पिणीओ असंखेज्जा ।।
(काल सूक्ष्म है, और उसमे क्षेत्र अधिक सूक्ष्म है क्यो कि अंगुल प्रमाण श्रेणी मात्र में असंरव्यात अवसर्पिणी के समय जितने प्रदेश हैं। )
काल स्वयं सूक्ष्म है और उस से क्षेत्र अधिक सूक्ष्म है। क्षेत्र से द्रव्य अधिक सूक्ष्म है और द्रव्य पर्याय उससे अधिक सूक्ष्म है। क्षयोपशम के कारण अवधिज्ञानी के काल का मात्र एक ही 'समय' बढे तो क्षेत्र के बहुत से प्रदेश बढ़ते है और क्षेत्र की वृद्धि होते द्रव्य की वृद्धि अवश्य होती है क्योंकि प्रत्येक आकाश प्रदेश में द्रव्य की प्रचुरता होती है और द्रव्य वृद्धि होने से पर्यायों की वृद्धि होती है, क्योकि हरेक द्रव्य की वृद्धि होने से पर्यायों की वृद्धि होती है क्योकि हरेक द्रव्य मे पर्यायों की बहुलता होती है।
दूसरी और अवधिज्ञानी के अवधि गोचरक्षेत्र की यदि वृद्धि हो तो काल की भजना जानना अर्थात काल की वृद्धि हो अथवा न भी हो । यदि क्षेत्र की बहुत अधिक वृद्धि काल की वृद्धि हो जाय, किन्तु यदि क्षेत्र की वृद्धि जरा सी भी जितनी भी वृद्धि हो तो काल की वृद्धि नहीं होती क्यों कि अंगुल जितना क्षेत्र यदि बढ़े और उसी प्रकार काल की वृद्धि हो तो असंख्यात उत्सर्पिणी जितना काल बढ़ जाय । अंगुल प्रमाण क्षेत्र में जितने प्रदेश है उनमें से हरेक समय में एक प्रदेश अपहृत करे तो असंख्यात अवसर्पिणी जितना काल व्यतीत हो जाय । अवधि गोचर क्षेत्र वृद्धि होतो द्रव्य पर्याय अवश्य बढ़ते हैं परन्तु द्रव्य पर्याय बढ़े तब क्षेत्र की वृद्धि हो या न भी हो ।
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अवधिज्ञान के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट ऐसे तीन प्रकार बतलाये जाते है । क्षेत्र की दृष्टि से प्रत्येक का अवधिज्ञान एक सरीखे माप का नहीं होता। फिर जितने क्षेत्र का
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