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भगवान वुद्ध
भारत में जन्म लेकर यहीं विचरण करने वाले इस महापुरूष की यशोगाथा भारत के बाहर चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलेंड, हिन्दचीन, श्रीलंका आदि देशों में आज हजारों वर्षों से अक्षुण्ण है । ईसा से लगभग ५६० वर्ष पूर्व वैसाखी पूर्णिमा के दिन इस महापुरूष का जन्म वर्तमान बिहार के कपिलवस्तु नगर में राजा शुद्धोधन के घर हुआ । ऐश्वर्य एवं भौतिक सुख-समृद्धि के तमाम साधन उपलब्ध होते हुए भी इस राजकुमार को लुभा नहीं सके । वृद्धावस्था, बीमारी एवं मौत की मंडराती छाया से वे सिहर उठे व जनता को इन असाध्य दुःखों से छुटकारा दिलाने के लिए वे छटपटा उठे - २६ बर्ष की भरी जवानी में वे अपनी धर्मपत्नी यशोधरा, इकलौते पुत्र राहुल व राज्य को छोड़कर दुःख के कारण व समाधानका चेतन करने के लिए अभि निष्क्रमित हो गए, योग, समाधि व अनाहार की साधनाओ मे वे वर्षो लगे रहे पर इच्छित फल न मिल सका। एक स्वर उनके कानो मे फूट पड़ा - वीणा के तारों को ढीला मत छोड़ दो, सुरीला शब्द नही निकलेगा, पर तारों को इतना कभी भी मत खीचो कि वे टूट जाये। बस, रास्ता मिल गया। वे नियमित आहार विहार और मध्यम मार्ग से योग साधना मे लग गए । ३५ बर्ष की अवस्था मे बोधिवृक्ष के नीचे उन्हे बोधि प्राप्त हुई। उसके बाद वे अपने विचारों का प्रसारण करने निकल पड़े । दुःख, उसके कारण व निवारण के लिए उन्होने अष्टांगिक मार्ग सुझाया जिसका हार्द इस प्रकार है- ( १ ) सम्यक ज्ञान (२) सम्यक संकल्प (३) सम्यक वचन (४) सम्यक कर्माण (हिंसा, दुराचरण से बचना ), (५) सम्यक आजीव (न्यायपूर्ण जीविका चलाना), (६) सम्यक ध्यायाम ( सतकर्म के लिए सतत उद्योग), (७) सम्यक स्मृति - लोभ आदि चित संतापो से बचना, (८) सम्यक समाधि - रागद्वेष रहित चित्त की एकाग्रता । इस आष्टांगिक आराधना से प्रज्ञा का उदय होता है जिसका फलित है निर्वाण अर्थात तृष्णा को बुझाना, वासनाओं का छूटना, दुःख का निवारण ।
भगवान बुद्ध ने धर्म के प्रचार के लिए भिक्षु भिक्षुणी संघ की स्थापना की जिसमे सहस्रों मुमुक्षु दीक्षित हुए जिन्होने सत्य, अहिंसा, प्रेम, करूणा, सेवा और त्याग से परिपूरित जीवन व्यतीत व लोगों को ऐसा ही जीवन बिताने की प्रबल प्रेरणा दी। ईसा सन ४८६ वर्ष पूर्व भगवान ने कुसीनगर में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया ।
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दर्शन-दिग्दर्शन
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