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________________ दर्शन-दिग्दर्शन विभा का प्रश्न है, अर्थवान अथवा प्रजनात्मक हिंसा के कुछ उदाहरण इसी गाथा के आरंभ में दिए गए हैं जिसमें कहा गया है कि कुछ व्यक्ति शरीर के लिए प्राणियों का बध करते हैं तो कुछ लोग चर्म, मांस, रक्त, हृदय, पित्त, चर्बी, पंख, पूंछ, केश, सींग, दंत, दाढ़, नख, स्नायु, अस्थि और प्राणियों की अस्थिमज्जा के लिए उनका बध करते हैं। यह स्पष्ट ही प्रयोजनात्मक हिंसा है। हिंसा करने के बेशक और भी प्रयोजन हो सकते हैं। एक अन्य गाथा, जिसे आयारो में बार-बार दोहराया गया है, के अनुसार मनुष्य हिंसा वर्तमान - जीवन के लिए प्रशंसा सम्मान और पूजा के लिए जन्म-मरण और मोचन के लिए, दुःख प्रतिकार के लिए करता है। (३६/१३०) इस प्रकार हम देखते है कि प्रयोजनात्मक हिंसा के कई विवरण हमें आयारो में मिलते हैं किन्तु अप्रयोजनात्मक (अणट्ठाए) हिंसा के कोई स्पष्ट उदाहरण हमें नहीं मिलता। परंतु एक गाथा में यह कहा गया है कि आसक्त मनुष्य हास्य-विनोद में (कभी-कभी) जीवों का बध कर आनंद प्राप्त करता है - अवि से हासमासज्ज, हंता णंदीति मन्नति। (१३०/३२) इसे स्पष्ट ही निरर्थक (अप्रयोजनात्मक) हिंसा कहा जा सकता है। इस प्रकार की हिंसा से मनुष्य को कोई लाभ नहीं होता सिवा इसके कि वह इस प्रकार की हिंसा करके एक अस्वस्थ सुख प्राप्त करे। इस प्रकार की निरर्थक हिंसा को हम क्रीड़ात्मक हिंसा भी कह सकते हैं। आयारो के अनुसार इस प्रकार की क्रीड़ात्मक हिंसा में केवल बाल और अज्ञानी लोग की प्रवृत्त हो सकते हैं क्योंकि इससे कोई मानव प्रयोजन तो सधता नही हैं, बल्कि इससे व्यक्ति निरर्थक ही अन्य प्राणियों से अपना बैर ही बढ़ाता है। अलं बालस्य संगेणं, वेरं वडढेति अप्पणो। (१३०/३२) आयारो में इस प्रकार जहां एक ओर प्रयोजन-सापेक्ष हिंसा की अर्थवान और निरर्थक विभा का उल्लेख मिलता है वहीं एक दूसरी विभा, जो काल - सापेक्ष है, भी बतलाई गई है। इसके अनुसार (दखिए, ४०/१४०, ऊपर उद्धरित i) कुछ व्यक्ति (हमारे स्वजनों की) हिंसा की गई थी (भूतकाल) इसलिए बध करते है तो कुछ।) इसलिए कि लोग हिंसा कर रहें हैं (वर्तमान), बध करते है तथा कुछiii) इसलिए भी हिंसा में प्रवृत्त होते हैं कि उन्हें २३ १Kा Jain Education International 2010_03 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012059
Book TitleMohanlal Banthiya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKewalchand Nahta, Satyaranjan Banerjee
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1998
Total Pages410
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size19 MB
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