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। स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
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वैज्ञानिकों ने सूक्ष्म जीवों के संबंध में शोध करके जो परिणाम निकाले हैं वे भी उनसे मिलते जुलते हैं। जो आगमों में लिखा है हजारों वषों पहले और जिन्हें हम आज तक मानते आये हैं।
मिट्टी पर्यावरण का एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंश है। मिट्टी यानी पृथ्वी की ऊपरी सतह चट्टानों के टूटने-फूटने से बनती है। मिट्टी में बालू के कण, खनिज, लवण कार्बनिक पदार्थ, जल, वायु व कई बड़े जीव जैसे केंचुआ, असंख्य सूक्ष्म जीव जैसे जीवाणु, एक्टिनोमाईसिटीज, कवक, शैवाल इत्यादि पाए जाते हैं। मिट्टी को उपजाऊ बनाने में इन सभी सूक्ष्म जीवों की विशेष भूमिका होती है। दरअसल पृथ्वी के ऊपर रहने वाले जीवों की अपेक्षा मिट्टी के अन्दर कहीं ज्यादा जीव रहते हैं।
मिट्टी एवं चट्टानो के चूर्ण में एक ही महत्त्वपूर्ण अन्तर होता है और वह यह है कि मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की गतिशील आबादी पाई जाती है जबकि चट्टानों के चूर्ण में इनका सर्वथा अभाव रहता है। चूंकि फसलों की जड़ें मृदा में सूक्ष्म जीवों की वृद्धि को प्रभावित करती हैं, इसलिये फसलों के उत्पादन से मृदा में सूक्ष्मजीवी प्रक्रियाएं बढ़ जाती है। यद्यपि किसी निश्चित मृदा में किसी भी सूक्ष्म जीव की आबादी निरन्तर परिवर्तनशील है। फिर भी सामान्यतः ये गतिशील संतुलन में रहते हैं। दरअसल मृदा एक व्यस्त जटिल प्रयोगशाला की तरह है, जहां निरन्तर अनन्त जीवों का समूह कार्यरत रहता है। इनकी सक्रियता से मृदा में अनेकानेक क्रियाएं सम्पन्न होती हैं।
यह कोई अतिशयोक्ति नहीं कि एक चम्मच ऊर्वर एवं नम मिट्टी में उतने ही सूक्ष्म जीव होते हैं जितनी कि विश्व की आबादी है (चार अरब से ज्यादा)। यदि प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में ऐसे सूक्ष्म जीवों की संख्या का अनुमान लगाना हो तो इसे इस प्रकार समझना होगा कि ३० से. मी. गहराई तक एक हेक्टेयर मिट्टी में इनका भार २-१० टन होगा।
मृदा सूक्ष्म जीवों में जीवाणु ही सर्वाधिक संख्या में होते हैं। ये सामान्यतया मृदाकणों से जुड़ी हुई छोटी कालोनियों के रूप में रहते है। एक ग्राम मिट्टी में तकरीबन दस करोड़ जीवाणु पाये जा सकते हैं किन्तु सर्वोत्तम सूक्ष्मदर्शी से भी इसका केवल १/१० वां भाग ही देखा जा सकता है।
मिट्टी में वनस्पति व जन्तुओं के अवशेष, गोबर इत्यादि इन्हीं सूक्ष्मजीवों के द्वारा देखते-देखते कार्बनिक पदार्थ में परिवर्तित होते हैं। अगर ये सूक्ष्म जीव न होते तो
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