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स्व: मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
निमन्त्रण है। इनमें पाया जाने वाला निकोटीन नामक विषैला पदार्थ भी खतरों से खाली नहीं है।
द्यूत आदि व्यसन भी मानसिक-तनाव और परेशानियों को वृद्धिगत करते हैं, जिन्दगी के अमन-चैन को बर्बाद कर देते हैं। जिसने इन्द्रिय संयम की साधना की है उसने जीवन को सरस बनाया है। जिसने रसना को वश में किया है उसने स्वस्थ जीवन प्राप्त किया है। आज स्वस्थ जीवन एवं मानसिक प्रसन्नता के लिए आहार और व्यसन-मुक्ति के पथ पर कदम-दर-कदम आगे बढ़ना ही गन्तव्य को प्राप्त करना है। साधर्मिक वात्सल्य
अनेक जातियों के अपने-अपने संगठन बन रहे हैं। धर्म के आधार पर भी अनेक संगठन बनते हैं। एक ही धर्म के अनुयायी लोगों में भाईचारे की भावना को पुष्ट करने वाला सूत्र है - साधर्मिक वात्सल्य । उस साधर्मिक बन्धु की हर कठिनाई को समझना, उसके प्रत्येक साधर्मिक बन्धु का विशिष्ट कर्तव्य है। साधर्मिक बंधु कौन? इस जिज्ञासा के संदर्भ में हमारे प्राच्य आचार्यों ने एक ही दृष्टि दी, एक ही दिशा दी। उन्होंने कहा:
अन्नन्न देस जाया, अन्नन्न आहार वडिय सरीरा। जिण सासणं पवण्णा, सव्वे ते बंधवा भणिया ।। तम्हा सव्व पयनेण, जो नमुक्कार थारयो।
सावणों सो वि दल्यो जहां परम बंधुओ ।। अलग-अलग देश में जन्मा, अलग-अलग आहार से संपोषित व्यक्ति भी साधर्मिक बंधु है जिसने जिन-शासन को स्वीकार किया है, जिसने नमस्कार महामंत्र को धारण किया है। साधर्मिक बंधु धर्म में स्थिर रहे, उसके धर्म स्थिरीकरण में साधर्मिक वात्सल्य का विशिष्ट स्थान है। साधर्मिक वात्सल्य से जातीय सदभाव वृद्धिगत होता है, साम्प्रदायिक समाव पुष्ट बनता है। वह व्यक्ति अपने साधर्मिक बंधुओं से शिक्षा, चिकित्सा, आजीविका आदि में आत्मीय सहयोग पाकर हर अभाव से निजात पा लेता है।
__अतः जैन जीवन शैली के ये नौ सूत्र जन-जन की शैली के मानक बिंदु बने । प्रत्येक व्यक्ति अपनी जीवन शैली की समीक्षा करे और इस जीवन शैली को स्वीकार कर नया आदर्श उपस्थित करे।
सामा
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