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स्वः मोहनलाल बाठिया स्मृति ग्रन्थ
अनपेक्षित एक बूंद भी घी क्यों जाए, हो अगर अपेक्षा मन-टन स्वयं बहाए। पाई भी व्यर्थ गमाई हुई हताशा,
हित निहित सामने तो श्रावक भामा शा . ।। श्रावक सम्बोध की संरचना कर परमपूज्य गुरूदेव ने श्रावक समाज को ऐसी ठोस सामग्री परोसी है जो आने वाली पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेगी। जिंदगी में महत्त्व न नए का होता है और न पुराने का, बस जागरूकता के साथ लक्ष्य के करीब पहुंचने की प्रक्रिया ही महत्त्वपूर्ण होती है। यह श्रावक की सम्पूर्ण जीवन-शैली है, जो उसे परिस्थिति, भाग्य या नियति के हाथों नहीं सौंपती, पुरुषार्थ का उपयोग कर निरन्तर आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। इसमें सुरक्षित रहता है-स्व का अस्तित्व, श्रावक का व्यक्तित्व और जैन धर्म का कर्तृत्व।
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