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४.
३. कोटिसहित प्रत्याख्यान एक प्रत्याख्यान का अन्तिम दिन और दूसरे प्रत्याख्यान का प्रारंभिक दिन हो, वह कोटिसहित प्रत्याख्यान है ।
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१०.
अतिक्रान्त तप - वर्तमान में करणीय तप नहीं किया जा सके, उसे भविष्य में
करना ।
दर्शन दिग्दर्शन
नियंत्रित प्रत्याख्यान - नीरोग या ग्लान अवस्था में भी "मैं अमुक प्रकार का तप, प्रयुक्त अमुक- दिन अवश्य करूंगा” इस प्रकार का प्रत्याख्यान
करना ।
साकार प्रत्याख्यान - अपवाद सहित प्रत्याख्यान ।
अनाकार प्रत्याख्यान - अपवाद रहित प्रत्याख्यान ।
परिमाणकृत प्रत्याख्यान परिमाणयुक्त प्रत्याख्यान ।
निरवशेष प्रत्याख्यान परित्यागयुक्त प्रत्याख्यान ।
संकेत प्रत्याख्यान - संकेत या चिह्न सहित किया जाने वाला प्रत्याख्यान । जैसे - जब तक यह दीप नहीं बुझेगा या जब तक मैं घर नहीं जाऊंगा या जब तक पसीने की बूंदें नहीं सूखेंगी तब तक मैं कुछ भी न खाऊंगा और न पीऊंगा ।
अध्वा प्रत्याख्यान - मुहूर्त्त, पौरूषी आदि कालमान के आधार पर किया जाने
वाला प्रत्याख्यान ।
दत्ति, कवल, भिक्षा, गृह, द्रव्य आदि के
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अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य का सम्पूर्ण
देश उत्तरगुण प्रत्याख्यान के सात प्रकार प्रज्ञप्त हैं - १. दिग्ख २. उपभोगपरिभोग परिमाण ३. अनर्थ दण्ड विरमण ४. सामायिक ५. देशावकासिक ६. पौषधोपवास ७. अतिथिसंविभाग । अन्त में अपश्चिम मारणान्तिक संलेखना । ये सभी गुण - व्रत और आध्यात्मिक प्रयोग परम सुख प्राप्ति के हेतु बनते हैं ।
सुख दो प्रकार का होता है इन्द्रिय-सुख और अतीन्द्रिय सुख । इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त होने वाला सुख मनोज्ञ इन्द्रिय विषयों की उपलब्धि पर आधारित होता है । उनकी अनुपलब्धि में वह नहीं मिलता। उन सुखों में लिप्त होना दुःख का कारण बन जाता है आगम में इस सच्चाई को इस भाषा में प्रकट किया गया है।
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