________________
स्वः मोहनलाल बांठिया स्मृति ग्रन्थ
स्वर्णमुद्राओं की चौकी पर रखकर पंडित बोला- 'मैं इस दान का विसर्जन करता हूं। सेट साहब ! आपको आज तक कोई ऐसा विसर्जन करने वाला मिला ?” पंडित की बात सुन दर्शक स्तब्ध रह गए और सेठ निर्वाक हो गया। पंडित में अस्वीकार या विसर्जन की चेतना नहीं होती तो सेठ को अपनी भूल का भान नहीं हो पाता ।
कायोत्सर्ग है औषधि और अनुपान
भगवान महावीर ने कायोत्सर्ग की तरह काय, वचन और मन की शुद्धि से होने वाली उपलब्धियों की भी चर्चा की है । कायगुप्ति से कायिक स्थिरता प्राप्त होती है । वचनगुप्ति से निर्विचारता की स्थिति बनती है । मनोगुप्ति से एकाग्रता बढ़ती है । स्वास्थ्य प्राप्त करने में इनका भी पूरा योग है। जब कभी अधिक बोलने का प्रसंग आता है, थकान का अनुभव होने लगता है । वचनगुप्ति का प्रयोग करने से थकान दूर हो जाती है । यह मेरा अनुभूत प्रयोग है। मैं बहुत वर्षो से प्रायः प्रतिदिन कुछ समय के लिए मौन करता हूं । मौन से विश्राम मिलता है, आनन्द मिलता है । पर कायोत्सर्ग के साथ किए जाने वाले मौन की महिमा ही अलग है। अपनी इस अनुभूति को शब्द देते हुए मैंने कहा मन्यते मौनमारामः, मौनं स्वास्थ्यप्रदं मतम । कायोत्सर्गेण सयुक्तं, मौनं कष्टविमोचनम ।।
मैं मौन को आराम मानता हूं, स्वास्थ्यप्रद मानता हूं । मौन के साथ कायोत्सर्ग योग हो जाए तो वह सब प्रकार के कष्टों से छुटकारा दिलाने वाला हो जाता है। मौन हो, ध्यान हो, अनशन हो या और कोई अनुष्ठान हो, कायोत्सर्ग का महत्त्व सबके साथ है। जो लोग शारीरिक, मानसिक एवं आत्मिक स्वास्थ्य चाहते हैं, वे महावीर के इस महान बन्ध कायोत्सर्ग का प्रयोग करें । कायोत्सर्ग औषधि है और कायोत्सर्ग अनुपान है । यह स्वास्थ्य का राजमार्ग है । इस पर चलने वाला कोई भी व्यक्ति स्वस्थ जीवन जी सकता है ।
Jain Education International 2010_03
१४२
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org