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________________ ११८ જ્ઞાનાંજલિ क्षमा और कार्यदक्षता--संसारमें यह कोई आश्चर्यका विषय नहीं है कि-महापुरुषों के जीवनमें उनके सामने अनेकानेक प्रतिस्पर्धी या निष्कारण मिथ्या विरोध करने वाले उठ खड़े होते हैं और उनके जीवन में कई तरहका अनुकूल-प्रतिकूल वातावरण पैदा होता रहता है, लेकिन यह तो आश्चर्यजनक है कि-इस अवस्थामें उनकी बुद्धि, प्रतिभा, धीरता अक्षोभ्य होती है । अपने चरितनायक इस बातके अपवाद कैसे हो सकते हैं ? आपके जीवनमें आपके सामने विरोध करने वाली अनेक व्यक्तियाँ उठ खड़ी होती रही हैं, कई तरहके अनुकूल-प्रतिकूल संयोग भी उपस्थित होते रहे हैं, फिर भी आपने अपनी एकनिष्ठ धर्मवृत्ति, प्रतिभा और कार्यदक्षताके द्वारा उन सबको निस्तेज एवं दूर कर दिया है। इतना ही नहीं किन्तु आप, तूफानमें आये हुए समुद्रमें अपने बेड़ेको शान्ति एवं धीरताके साथ पार ले जाने वाले विशिष्ट विज्ञानधारक सुकानीकी सौ कार्यदक्षतासे सदा अक्षुब्ध रहकर अपने ध्येय और कार्यको आगे पहुँचाते रहे हैं। आपने अपनेसे विरोध करनेवालों के लिये न कभी कोई विरुद्ध वातावरण फैलानेकी कोशिश की है और न उनके लिये अपने हृदयमें किसी भी तरहके वैर-वैमनस्यको स्थान तक दिया हैं। धन्य हो ऐसे क्षमाशील एवं कार्यदक्ष गुरुवर " श्री वल्लभ" को! । जैन समाजका भी धन्य भाग्य है कि आज भी उसके उदरमें ऐसे महापुरुष विराजमान हैं। धर्मोपदेशकता-- चरितनायक आचार्यवर श्री विजयवल्लभकी धर्मदेशना जिन्होंने सुनी है उन्हें इस बातका आश्चर्य न होगा कि---आपमें धर्मोपदेश देनेकी कितनी प्रौढ शक्ति है ? आपकी व्याख्यान देने की पद्धति व्यापक, ओजस्वी, पांडित्यपूर्ण एवं शान्त है। अतः आप किसी भी मत, सम्प्रदाय या गच्छान्तरके विषयमें विना किसी प्रकारका आक्षेप किये वास्तविक धर्मके रहस्यों का प्रतिपादन करते हैं। यही कारण है कि-देश-विदेश जहाँ कहीं आप पधारते हैं वहीं आपके व्याख्यानमें जैन हो या जैनेतर, स्वगच्छका हो या किसी दूसरे गच्छका, स्वसंप्रदायका हो या पर सम्प्रदायका, सभी निःसंकोचतया आते हैं और प्रसन्नतापूर्वक अपनो धर्मभावनाओंको पुष्ट बना कर सुलभबोधि एवं अल्पसंसारी बनते हैं। आपके धर्मोपदेशको सुन कर बड़े बड़े विद्वान भी मुग्ध हो जाते हैं । आपके शान्तरसपूर्ण धर्मोपदेशके प्रभावसे सैंकड़ों गाँवोंमें चिरकालसे चले आ रहे झगड़े एवं वैर-वैमनस्य शान्त हो चुके हैं। इसी कारणको लेकर जैन समाजको यह विश्वास हो गया है कि--शान्तिके पैगंबर समान इस महापुरुषके चरण जहाँ होंगे वहाँ आनन्द ही आनन्द और शान्ति ही शान्ति होगी । आज जैन समाज अपने इस प्रभावक चरितनायकको “ शान्तिका सन्देशवाहक "के नामसे पहचानता है। आपका उपदेश इतना व्यापक है कि-छोटे बड़े सभी आसानीसे समझ जाते हैं। धर्मचर्चाकी लब्धि-- चरितनायक आचार्यवरमें धर्मचर्चा करनेकी कोई अपूर्व लब्धि एवं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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