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સાલહુ દિશા સમ્બન્ધી પ્રાચીન ઉલ્લેખ
एयासि चेव अट्टहमंतरा अट्ठ हुँति अण्णाओ । सोलस सरीर उस्सय बाहल्ला सम्वतिरियदिसा ॥५३॥ ट्ठा पायताणं अहोदिसा सीसउवरिमा उड्ढा । एया अट्ठारस वी पण्णवगदिसा मुणेयव्वा ॥५४॥ एवं एकप्पियाणं दसह अट्ठण्ह चेव य दिसाणं । नामाई वुच्छामी जहक्कामं आणुवी ॥५५॥
पुत्र्वा १, य पुञ्चदक्खिण २, दक्खिण ३, तह दक्खिणावरा ४ चेव । अवरा ५, य अवरउत्तर ६, उत्तर ७, पुत्रवुत्तरा ८ चेव ॥ ५६ ॥ सामुत्थाणी १, कविला २, खेलिजा ३, खलु तहेव अहिधम्मा ४ | परिया ५, धम्मा ६, य तहा सावित्ती ७, पण्णवित्ती ८ य ॥५७॥
ट्ठा नेरइयाणं अहोदिसा उवमणि उ देवाणं ।
एयाई नामाई पण्णवगस्सा दिसाणं तु ॥ ५८॥
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इन गाथाओंमें से छप्पनवीं गाथामें चार दिशायें और दिशाओंके बीचमें रही हुई चार विदिशायें, इस तरह आठ दिशाओंके नाम हैं और ५७ वीं गाथामें उपरि निर्दिष्ट आठ दिशाओंके बीचमें स्थित आठ विदिशाओं के नाम हैं। जिनके क्रमसे ये नाम हैं—
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पूर्वा १, सामुत्थानी २, पूर्वदक्षिणा ३, कपिला ४, दक्षिणा ५, खेलिजा ६, दक्षिणापरा ७, अभिधर्मा ८, अपरा ९, परिया १०, अपरोत्तरा ११, धर्मा १२, उत्तरा १३, सावित्री १४, पूर्वोत्तरा १५, पण्णवित्ती १६ । इन दिशाओंमें अधोदिशा और देवदिशा या दिव्यदिशाको मिलानेसे अठारह प्रज्ञापक दिशायें होती हैं ।
दिशाओंकी विविधता के विषय में विशिष्ट परिचय पानेकी इच्छावालोंको आचारांगसूत्र नियुक्तिकी गाथा ४० से ६२ देखनी चाहिए ।
[ ' राजस्थान भारती', जुलाई - अक्टूबर, १९५४ ]
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