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________________ महाराजा खारवेलसिरिके शिलालेखक १४वीं पंक्ति मान्य विद्वन्महोदय श्रीयुत काशीप्रसाद जायसवाल महाशयने कलिंगचक्रवर्ती महाराज खारवेल के शिलालेखका वाचन, छाया और अर्थ आदि बड़ी योग्यता के साथ किया है । तथापि उस शिलालेखमें अद्यापि ऐसे अनेक स्थान हैं जो अर्थकी अपेक्षा शंकित हैं । आजके इस लेखमें उक्त शिलालेखकी १४वीं पंक्तिके एक अंश पर कुछ स्पष्टीकरण करनेका इरादा है । वह अंश इस प्रकार हैअरहते पखीनसंसितेहि कायनिसीदीयाए यापनावकेहि राजभितिनि चिनवतानि वासा सितानि । - 37 46 ऊपर जो अंश उद्धृत किया गया है इसमें से सिर्फ जिसके नीचे लाइन की गई है इसके विषयमें ही इस लेखमें विचार करना है । श्रीमान् जायसवाल महाशयने इस अंशकी " कायनिषीद्यां यापज्ञापकेभ्यः " ऐसी संस्कृत छाया करके “कायनिषीदी (स्तूप) पर ( रहनेवालों ) पोप बताने वालों (पापज्ञापकों ), के लिये " ऐसा जो अर्थ किया है इसके बदले में उपरि निर्दिष्ट अंशकी छाया और इसका अर्थ इस प्रकार करना अधिकतर उचित होगा छाया - कायनैषेधिक्या यापनीय केभ्यः - यापनीयेभ्यः । अर्थ – (केवल मन और वचनसे ही नहीं बल्कि ) कायाके द्वारा प्राणातिपातादि अशुभ क्रियाओं की निवृत्ति द्वारा ( धर्मका ) निर्वाह करने वालोंके लिये । १ नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग ऐसा भी लिखा है । १० Jain Education International अङ्क ३ में २. देखो, नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग ८ अंक ३ " जो कदाचित् For Private & Personal Use Only • यापज्ञापक' कहलाते थे । " www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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