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________________ ६४ ] व्याकरण व कोश प्राकृतादि भाषाओंके व्याकरणों एवं देशी आदि कोशोंका विस्तृत परिचय प्राकृत भाषाके पारंगत डॉ० पिशलने अपने 'कम्पेरेटिव ग्रामर ऑफ दी प्राकृत लेंग्वेजेज ' ग्रन्थमें पर्याप्त मात्रा में दिया है, अतः मैं विशेष कुछ नहीं कहता हूं. इस युगमें महत्त्वपूर्ण चार प्राकृत शब्दकोश जैन विद्वानोंने तैयार किये हैं : १. त्रिस्तुतिक आचार्य श्री राजेन्द्रसूरिका अभिधानराजेन्द्र. २. पंडित हरगोविंददासका पाइयसद महण्णवो. ३. स्थानकवासी मुनिश्री रत्नचन्द्रजीका पांच भागों में प्रकाशित अर्धमागधी कोश. ४. श्री सागरानन्दसूरिका अल्पपरिचित सैद्धान्तिक शब्दकोश. काव्य और सुभाषित જ્ઞાનાંજાલ प्राकृत भाषा में रचित प्रवरसेनके सेतुबंध महाकाव्य, वाक्पतिराजके गउडवहो, हेमचन्द्रके प्राकृत द्वयाश्रय महाकाव्य आदिसे आप परिचित हैं ही. सेतुबंध महाकाव्यका उल्लेख निशीथसूत्रकी चूर्णिमें भी पाया जाता है. महाकवि घनपालने ( वि० ११वीं शती) अपनी तिलकमंजरी आख्यायिकामें सेतुबंध महाकाव्य व वाक्पतिराजके गउडवहोकी स्तुति जितं प्रवरसेनेन रामेणेव महात्मना । तरत्युपरि यत् कीर्ति सेतुर्वाङ्मयवारिधेः ॥ हृष्ट्वा वाकूपतिराजस्य शक्ति गौडवधोद्धराम्। बुद्धिः साध्वसरुद्धेव वाचं न प्रतिपद्यते ॥ ३१ ॥ इन शब्दों में की है. इसी कविने अपनी इस आख्यायिकामें प्राकृतेषु प्रबन्धेषु रसनिःष्यन्दिभिः पदैः । राजन्ते जीवदेवस्य वाचः पल्लविता इव ॥ २४॥ इस प्रकार आचार्य जीवदेवकी प्राकृत कृतिका उल्लेख किया है, जो आज उपलब्ध नहीं है. आचार्य दाक्षिण्यांक श्री उद्योतनकी कुवलयमाला कहा प्राकृत महाकाव्यकी सर्वोत्कृष्ट रसपूर्ण रचना है. हाल कविकी गाथा सप्तशती, वज्जालग आदिको सभी जानते हैं. इसी प्रकार लक्ष्मण कविका गाथाकोश भी उपलब्ध है. समय सुन्दरका गाथाकोश भी मुद्रित हो चुका है. बृहद्दिप्पनिकाकारने ' सुधाकलशाख्यः सुभाषितकोशः पं० रामचन्द्रकृतः " इस प्रकार श्री हेमचन्द्रके शिष्य रामचन्द्रके सुभाषितकोशका नामोल्लेख किया है, जो आज अलभ्य है. "L ऊपर जिन कथा - चरितादि ग्रंथोंके नाम दिये हैं, उन सबमें सुभाषितों की भरमार है. यदि इन सबका विभागशः संग्रह और संकलन किया जाय तो प्राकृत भाषा का अलंकार स्वरूप एक बड़ा भारी सुभाषित भण्डार तैयार हो सकता है. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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