SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 405
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५०] જ્ઞાનાંજલિ ज्योतिष्करंडक प्रकीर्णक पर शिवनंदी वाचक विरचित 'प्राकृत वृत्ति' पाई जाती है, जो चूर्णिमें शामिल हो सकती है. आम तौरसे देखा जाय तो पीछले जमानेमें प्राकृतवृत्तियों को 'चूर्णि' नाम दिया गया है. फिर भी ऐसे प्रकरण अपने सामने मौजूद हैं, जिनसे पता चलता है कि प्राचीन कालमें प्राकृत व्याख्याओंको 'वृत्ति' नाम भी दिया जाता था, दशवैकालिकसूत्रके दोनों चूर्णिकारोंने अपनी चूर्णियोंमें प्राचीन दशवैकालिकव्याख्याका 'वृत्ति' के नामसे जगह जगह उल्लेख किया है. ऊपर जिन चूर्णियोंका उल्लेख किया गया है, उनमें से प्रायः बहुत-सी चूर्णिया महाकाय हैं । इन सब चूर्णियोंके प्रणेताओके नाम प्राप्त नहीं होते हैं, फिर भी स्थविर अगसिंह, शिवनंदि वाचक, जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, जिनदास महत्तर, गोपालिकमहत्तरशिष्य -इन चूर्णिकार आचायोंके नाम मिलते हैं. ___ चूर्णि-नियुक्तिओंकी रचना पिछले जमाने में बंद हो गई, किन्तु संग्रहणी, भाष्य-महाभाष्य, चूर्णिकी रचनाका प्रचार बादमें भी चालू रहा है. संस्कृत वृत्तियोंकी रचनाके बाद यद्यपि आगमों पर ऐसा कोई प्रयत्न नहीं हुआ है तो भी आगमोंके विषयोको लेकर तथा छोटे-मोटे प्रकरणों पर भाष्यमहाभाष्य-चूर्णि लिखनेका प्रयत्न चालू ही रहा है, यह आगे प्रकरणोंके प्रसंगमें मालूम होगा. ___ यहां पर जैन आगम और प्राकृत व्याख्याग्रन्थों का परिचय दिया गया है। ये बहुत प्राचीन एवं प्राकृत भाषाके सर्वोत्कृष्ट अधिकारियोंके रचे हुए हैं. प्राकृतादि भाषाओंकी दृष्टिसे ये बहुत ही महत्त्वके हैं. प्रकरण प्रकरण किसी खास विषयको ध्यानमें रखकर रचे गये हैं. मेरी दृष्टि से प्रकरणोंको तीन विभागोंमें विभक्त किया जा सकता है-तार्किक, आगमिक और औपदेशिक. तार्किक प्रकरण-आचार्य श्री सिद्धसेनका सन्मतितर्क, आचार्य श्री हरिभद्रका धर्मसंग्रहणी प्रकरण, उपाध्याय श्री यशोविजयजीकृत श्रीपूज्यलेख, तत्वविवेक, धर्मपरीक्षा आदिका इस कोटिके प्रकरणों में समावेश होता है. यद्यपि ऐसे तार्किक प्रकरण बहुत कम हैं, फिर भी इन प्रकरणोंका प्राकृत भाषाके अतिरिक्त तत्वज्ञानकी दृष्टिसे भी बहुत महत्त्व है. आगमिक प्रकरण-आगमिक प्रकरणों का अर्थ जैन आगमोंमें जो द्रव्यानुयोगके व गणितानुयोगके साथ संबन्ध रखने वाले विविध विषय हैं उनमेंसे किसी एकको पसंद करके उसका विस्तृत रूपमें निरूपण करनेवाले या संग्रह करनेवाले ग्रंथ प्रकरण हैं. ऐसे प्रकरणोंके रचनेवाले शिवशर्म, जिनभद्र क्षमाश्रमण, हरिभद्रसूरि, चन्द्रर्षि महत्तर, गर्गर्षि, मुनिचंद्रसूरि, सिद्धसेनसूरि, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy