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________________ ४४ ] જ્ઞાનાંજલિ नियुक्तियों का परिमाण किसी भी प्रकार निश्चित नहीं किया जा सकता । हाँ, इतना अवश्य है। कि - - चूर्णि - विशेषचूर्णिकारों ने कहीं-कहीं ' पुरातनगाथा, नियुक्तिगाथा' इत्यादि लिखा है, जिससे निर्युक्तिगाथाओंका कुछ ख्याल आ सकता है तो भी संपूर्णतया नियुक्तिगाथाओं का विवेक या पृथक्करण करना मुश्किल ही है. ऊपर जिन निर्युक्तिओं का उल्लेख किया है इनके अतिरिक्त ओघनियुक्ति, पिंडनिर्युक्ति और संसक्तनियुक्ति ये तीन नियुक्तियाँ और मिलती हैं. इनमें से ओघनियुक्ति आवश्यक नियुक्तिमेंसे और पिंडनियुक्ति दशवैकालिकनियुक्तिमेंसे अलग किये गये अंश हैं. संसक्तनियुक्ति बहुत बादकी एवं विसंगत रचना है. स्थविर आर्य भद्रबाहुविरचित नियुक्तियों के अलावा भाष्य और चूर्णियों में गोविंदनिज्जुत्तिका भी उल्लेख आता है, जो स्थविर आर्य गोविंदको रची हुई थी. आज इस नियुक्तिका पता नहीं है. यह नष्ट हो गई या किसी नियुक्तिमें समाविष्ट हो गई ? यह कहा नहीं जा सकता. निशीथचूर्णिमें इस प्रकारका उल्लेख मिलता है- 'तेण एगिंदियजीव साहणं गोविन्दनिज्जुत्ती कया" इनके अलावा और किसी नियुक्तिकारका निर्देश नहीं मिलता है. नियुक्तियोंकी रचना मूलसूत्रोंके अंशोंके व्याख्यानरूप होती है. संग्रहणियां -- संग्रहणियों की रचना पंचकल्प महाभाष्यके उल्लेखानुसार स्थविर आर्य कालककी है. पाक्षिकसूत्रमें भी “ससुत्ते सअत्ये सगये सनिज्जुत्तिए ससंगहणिए" इस सूत्रांशमें संग्रहणीका उल्लेख है. इससे भी प्रतीत होता है कि संग्रहणियोंकी रचना काफी प्राचीन है, आज स्पष्टरूपसे पता नहीं चलता है कि स्थविर आर्य कालकने कौनसे आगमोंकी संग्रहणियों की रचना की थी और उनका परिमाण क्या था ? तो भी अनुमान होता है कि -- भगवतीसूत्र, जीवाभिगमोपांग प्रज्ञापनासूत्र, श्रमणप्रति क्रमणसूत्र आदिमें जो संग्रहणियाँ पाई जाती हैं वे ही ये हों. इससे अधिक कहना कठिन है. - भाष्य- महाभाष्य - जैन सूत्रोंके भाष्य- महाभाष्यकारके रूपमें दो क्षमाश्रणोंके नाम पाये जाते हैं. १ संघदासगणि क्षमाश्रमण और जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण जैन आगमोंके महाकाय भाष्य - महाभाष्य निम्नोक्त आठ प्राप्य हैं। १ विशेषावश्यक महाभाष्य २ कल्पलघुभाष्य ३ कल्पबृहद्भाष्य ४ पंचकल्पभाष्य ५ व्यवहारभाष्य ६ निशीथभाष्य ७ जीतकल्पभाष्य ८ ओघनिर्युक्तिमहाभाष्य. कल्पलघुभाष्य एवं पंचकल्पमहाभाष्य के प्रणेता संघदासगणि क्षमाश्रमण हैं व विशेषावश्यक महाभाष्य प्रणेता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण हैं. दूसरे भाष्य- महाभाष्योंके कर्ता कौन हैं, इसका पता अभी तक नहीं लगा है. संवदासगणि जिनभद्रगणिसे पूर्ववर्ती हैं. श्रीजिनभद्रगणि महाभाष्यकार के नामसे लब्धप्रतिष्ठ हैं. जिन आगमों पर नियुक्तियों की रचना है उनके भाग्य, मूलसूत्र व नियुक्तिको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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