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જ્ઞાનાંજલિ १४. णागज्जुणा तु पढंति
, ३०२ वृत्तिपत्र ३०३ पृ० १ १५. भदन्तनागार्जुनीयास्तु
,, ३१३ यहां पर आचारांगचूर्णि और शीलांकाचार्य रचित वृत्तिके जो पृष्ठ-पत्रांक आदि दिये गये हैं वे आगमोद्धारक पूज्य आचार्य श्री सागरानन्दसूरि सम्पादित आवृत्तिके हैं.
उपर्युक्त पंद्रह उल्लेखों में से पांच उल्लेख शीलांकीय वृत्तिमें नहीं हैं. बाकीके दस उल्लेख शीलांकाचार्यने दिये हैं. वे सभी उल्लेख आचारांगके प्रथम श्रुतस्कन्धकी चूर्णि-वृत्तिमें ही हैं. द्वितीय श्रुतस्कन्धकी चूर्णि-वृत्तिमें नागार्जुनीय-वाचनाका कोई उल्लेख नहीं है.
यहां आचारांग-चूर्णिमें से नागार्जुनीयवाचनाके जो पंद्रह उल्लेख उद्धृत किये गये हैं उनमें सात जगह अति पूज्यतासूचक ‘भदन्त' विशेषणका प्रयोग किया है जो अन्य किसी चूर्णि-वृत्ति आदिमें नहीं है. इससे अनुमान होता है कि इस चूर्णिके प्रणेता, जिनके नामका उल्लेख कहीं भी नहीं मिलता, कम-से-कम नागार्जुनीय परंपराके प्रति आदर रखने वाले थे.
(३) सूत्रकृतांगकी चूर्णिमें नागार्जुनीय वाचनाके जो उल्लेख मिलते हैं उन सभी स्थानों पर 'नागार्जुनीयास्तु' ऐसा लिखकर ही नागार्जुनीय वाचनाभेदका उल्लेख किया गया है जो प्रथम श्रुतस्कन्धमें चार जगह व दूसरे श्रुतस्कन्धमें नौ जगह पाया गया है. आचार्य शीलांकने अपनी वृत्तिमें 'नागार्जुनीयास्तु पठन्ति' लिखकर नागार्जुनीय-वाचनाका :उल्लेख चार जगह किया है. संभव है पिछले जमाने में नागार्जुनीय वाचनाभेदका कोई खास महत्त्व रहा न होगा.
प्रसंगवशात् एक बातकी सूचना करना हम यहाँ उचित समझते हैं कि सूत्रकृतांगचूर्णिकार 'अणुत्तरणाणी-अणुत्तरदंसी अणुत्तरणाणदसणधरो, एतेण एकत्वं णाण-दसणाणं ख्यापितं भवति' [श्रुत १ अध्य० २. उ० २ गा० २२] इस उल्लेखसे एकोपयोगवादी आचार्य सिद्धसेनके अनुयायी मालूम होते हैं.
(४) उत्तराध्ययनसूत्रकी चूर्णिमें चूर्णिकार आचार्यने पाँच स्थानों पर नागार्जुनीय वाचनाभेदका उल्लेख किया है. पाइय-टीकाकार वादिवेताल शान्तिसूरिजीने भी इन पांच स्थानों पर नागार्जुनीय वाचनाभेदका उल्लेख किया है. किन्तु सिर्फ एक स्थान पर नागार्जुनीयका नाम न लेकर 'पठ्यते च ' ऐसा लिखकर नागार्जुनीय वाचनाभेदका उल्लेख किया है. [पत्र २६४-१].
कुछ विद्वान् स्थविर आर्य देवर्द्धिगणिके आगम-व्यवस्थापन व आगम-लेखनको वालभी वाचनारूपसे बतलाते हैं, किंतु ऊपर वालभी वाचनाके विषयमें जो कुछ कहा गया है उससे उनका यह कथन भ्रान्त सिद्ध होता है. वास्तवमें वालभी वाचना वही है जो माथुरीवाचनाके ही समयमें स्थविर आर्य नागार्जुनने वलभीनगरमें संघसमवाय एकत्र कर जैन आगमोंका संकलन किया था.
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