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________________ १०] જ્ઞાનાંજલિ स्याहियाँ बनाई जाती थीं उसी तरह ग्रन्थ आदिमें वर्णित विषयके अनुरूप विविध प्रकारके चित्रोंके आलेखनके लिये अनेक प्रकारके रंगोकी अनिवार्य आवश्यकता होती थी। ये रंग विविध खनिज और वनस्पति आदि पदार्थ तथा उनके मिश्रणमेंसे सुन्दर रूपसे बनाए जाते थे। यह बात हम हमारी आँखों के सामने आनेवाले सैकड़ों सचित्र ग्रन्थ देखनेसे समझ सकते हैं। रंगोका यह मिश्रण ऐसी सफ़ाईके साथ और ऐसे पदार्थोंका किया जाता था, जिससे वह ग्रन्थको खा न डाले और खुद भी निस्तेज और धुंधला न पड़े। लेखनी - जिस तरह लिखनेके लिये द्रव द्रव्यके रूपमें स्याही आवश्यक वस्तु हैं उसी तरह लिखनेके साधन रूपसे कलम, तूलिका आदि भी आवश्यक पदार्थ हैं। यद्यपि अपनी अपनी सुविधाके अनुसार अनेक प्रकारके सरकण्डे तथा नरकटमेंसे कलमें बना ली जाती थीं, फिर भी ग्रंथ लिखनेवाले लहिए या लेखकको सतत और व्यवस्थित रूपसे लिखना पड़ता था, इसलिये ख़ास विशेष प्रकारके सरकण्डे पसंद किए जाते थे। ये सरकण्डे विशेषतः अमुक प्रकारके बांसके, काले सरकण्डे अथवा दालचीनी की लकड़ी जैसे पीले और मज़बूत नरकट अधिक पसंद किए जाते थे। इनमें से भी काले सरकण्डे अधिक पसन्द किए जाते थे । इन सरकण्डोके गुण-दोषका विचार भी हमारे प्राचीन ग्रन्थों में किया गया है कि कलम कैसे बनानी तथा उसका कटाव कैसा होना चाहिए इत्यादि । कलमके नाप आदिके लिये भी भिन्न भिन्न प्रकारकी मान्यताएँ हमारे यहां प्रचलित हैं। मषीभाजन-दावात - स्याही भरनेके लिये अपने यहां काँचकी, सफाईदार मिट्टीकी तथा धातु आदि अनेक प्रकारकी दावातें बनती होगी और उनका उपयोग किया जाता होगा । परन्तु उनके आकार-प्रकार प्राचीन युगमें कैसे होगे - यह जाननेका विशिष्ट साधन इस समय हमारे सम्मुख नहीं हैं। फिर भी आज हमारे सामने दो सौ, तीन सौ वर्षकी धातुकी विविध प्रकारकी दावाने विद्यमान हैं और हमारे अपने ज़मानेके पुराने लेखक तथा व्यापारी स्याही भरनेके लिये जिन दावातों तथा डिब्बियोंका उपयोग करते आए हैं उन परसे उनके आकार आदिके बारेमें हमें कुछ ख्याल आ सकता है। सामान्य रूपसे विचार करने पर ऐसा मालूम होता है कि कांच या मिट्टीकी दावातोंकी तरह टूटनेका भय न रहे इसलिए पीतल जैसी धातुकी दावातें और डिब्बियाँ ही अधिक पसंद की जाती होंगी। ओलिया अथवा फांटिया - ग्रन्थ लिखते समय लिखाईकी पंक्तियाँ बराबर सीधी लिखनेके लिये ताड़पत्र आदिके ऊपर उस ज़मानेमें क्या करते होंगे यह हम नहीं जानते, परन्तु ताड़पत्रीय पुस्तकोंकी जाँच करने पर अमुक पुस्तकोंके प्रत्येक पन्नेकी पहली पंक्ति स्याहीसे खींची हुई दिखाई • देती है । इससे ऐसा सम्भव प्रतीत होता है कि पहली पंक्तिके अनुसार अनुमानसे सीधी लिखाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012058
Book TitleGyananjali Punyavijayji Abhivadan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamnikvijay Gani
PublisherSagar Gaccha Jain Upashray Vadodara
Publication Year1969
Total Pages610
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size15 MB
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